विदेश नीति के मामले में सारे देश को एकजुट होना चाहिए

Edited By ,Updated: 11 Jun, 2021 05:20 AM

the whole country should be united in the matter of foreign policy

राजदूतों, जो भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी थे, के एक समूह ने हाल ही में एक पत्र प्रकाशित किया जिसमें उनके कुछ पूर्व सहयोगियों द्वारा प्रधानमंत्री के खिलाफ आलोचना करने की

राजदूतों, जो भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी थे, के एक समूह ने हाल ही में एक पत्र प्रकाशित किया जिसमें उनके कुछ पूर्व सहयोगियों द्वारा प्रधानमंत्री के खिलाफ आलोचना करने की प्रार्थना की गई थी ताकि विदेशों में उनकी छवि खराब की जा सके। लगभग 3 वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारियों द्वारा गठित 200 की मजबूत सं या वाले सी.सी.जी. (संवैधानिक व्यवहार समूह) में कुछ पूर्व आई.एफ.एस. अधिकारी थे जिनमें 2 विदेश सचिव शामिल थे। 

एक समय था जब व्यक्तिगत आई.एफ.एस. सहयोगी अपनी रुचि के विषयों पर लिखते थे लेकिन सी.सी.जी. ने एक इकाई के तौर पर डोमेन नॉलेज के अभाव के कारण देश की विदेश नीतियों के कदमों की छानबीन नहीं की।

मेरा पूर्व भारतीय राजदूतों के फोरम के साथ कोई झगड़ा नहीं है। इसके विचार मेरे लिए उतने ही मायने रखते हैं जितने कि सी.सी.जी. में  मेरे आई.एफ.एस. सहयोगियों के।  मैंने अपने प्रधानमंत्रियों की विदेशी यात्राओं का आनंद उठाया है और विदेशी नेताओं के साथ मुलाकातें की हैं। इसने उन देशों के साथ हमारी समझ में सुधार करने में मदद की है। भारतीय पर्यटकों के साथ विदेशों में जरा अधिक नम्रतापूर्वक व्यवहार किया जाता था। 

केवल एकमात्र अवसर जब मैंने महसूस किया कि हमारे प्रधानमंत्री ने गलती की है, टैक्सास के ह्यूस्टन में जहां उन्होंने ‘हाऊडी मोदी’  के दौरान भारतीय लोगों के साथ मुलाकात की थी। तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति दूसरे कार्यकाल की बाट जोह रहे थे और हमारे प्रधानमंत्री ने सोचा कि यह उन्हें खुश करने का अच्छा अवसर है। उन्होंने ‘देसी नारा’ उछाला कि ‘अगली बार ट्रंप सरकार’। एक मित्रवत देश की चुनावी स्पर्धा में किसी भारतीय नेता द्वारा एक पक्ष लेना उचित नहीं था। जैसा कि सभी जानते हैं कि यह जुआ असफल रहा। 

विदेश नीति के मामले में मेरा मानना है कि सारे देश को एकजुट होना चाहिए। हमें एक के तौर पर सोचना तथा कार्य करना चाहिए। पूर्व में हमारे विशाल पड़ोसी के संबंध में पूर्व राजदूतों के मंच द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को उसी भावना से स्वीकार किया जाना चाहिए जिससे वे प्रतिपादित किए गए। यहां तक कि यदि सी.सी.जी. ने कोई अन्य पूर्व आई.एफ.एस. अधिकारी यह महसूस करता है कि कूटनीति से अलग तरह से निपटा जाए तो ऐसे विचारों को हमारी सीमाओं तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। यदि वे विकल्पों के विस्तार में मदद करते हैं तो उन्हें हमारी निर्णय निर्माण प्रक्रिया में योगदान देना चाहिए। 

मैं पूरी तरह से सुनिश्चित हूं कि कोई भी देशभक्त भारतीय हमारे अपने देश के हितों के अनुरूप अन्य देशों के साथ हमारे संबंध चाहेगा। इसलिए हमारे हमवतनों में विभाजन, जिन्होंने किसी समय देश की विदेश सेवा में एक साथ काम किया है, मेरी राय में एक अच्छा घटनाक्रम नहीं है। खंडता एक ऐसा घटनाक्रम है जिसने इस हद तक हमारी राजनीति को जकड़ लिया है जैसा कि पहले कभी नहीं हुआ था। मगर रक्षा तथा विदेशी मामले दो ऐसे क्षेत्र हैं जहां एकता के साथ कोई सौदा नहीं किया जा सकता। 

यह बात मुझे अपने लेख के असल मकसद की ओर ले आती है। सरकार अपनी विभिन्न नीतियों तथा कार्रवाइयों, जिन्होंने संवैधानिक नैतिकता को चोट पहुंचाई है, की आलोचना करने के लिए सेवानिवृत्त आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई.एफ.एस. अधिकारियों से परेशान हैं। उन्हें चुप रहने के लिए सरकार ने केंद्रीय पैंशन नियमों में संशोधन किया है ताकि पैंशन रोकने का डर दिखा कर सेवानिवृत्त अधिकारियों को डराया जा सके। मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार ने भी आई.बी. तथा रॉ के पूर्व कर्मचारियों के साथ कुछ ऐसा ही करने का प्रयास किया था लेकिन अपनी भावनाओं को काबू करके समझदारी दिखाई। 

मोदी जी की सरकार चाहती है कि खुफिया तथा सुरक्षा अधिकारी, आई.बी., रॉ, डी.आर.आई., ई.डी., एन.सी.बी. के पूर्ववर्ती अधिकारी तथा 13 अन्य संगठनों, कुल 18 के अधिकारी किसी भी विषय पर पत्रिकाओं तथा समाचार पत्रों में लेख लिखने अथवा पुस्तकें छापने से पूर्व इन संगठनों के प्रमुखों से क्लीयरैंस लें।

स्वाभाविक है कि इस कदम का उद्देश्य इन खुफिया तथा सुरक्षा संगठनों के पूर्व सदस्यों को डराने तथा उनका मुंह बंद रखने और उनके दिमाग को विश्राम देना है। एकमात्र संगठन जिसमें मैंने काम किया और उसने सूची में स्थान बनाया है, वह है सी.आर.पी.एफ.। गुजरात में सा प्रदायिक जटिलता सुलझाने के लिए मेरा चयन होने से पूर्व मैंने 6 वर्ष एक डी.आई.जी.पी. तथा 1985 के 5-6 सप्ताह इसके महानिदेशक के तौर पर बिताए हैं। 

मुझे कोई ऐसा राज नहीं पता जो मैं सी.आर.पी.एफ. के बारे में सांझा कर सकूं और अपने लेखों में मैं केवल इसके लोगों के इस्तेमाल की आलोचना  करता हूं जिन्हें भीड़ों को तितर-बितर करने, व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। यदि मैं अभी भी सी.आर.पी.एफ. के डी.जी. की कुर्सी पर होता तो मेरे किसी पुराने सहयोगी द्वारा मुझसे इजाजत मांगने पर मैं किस तरह प्रतिक्रिया देता?-जूलियो रिवैरो(पूर्व डी.जी.पी.पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)

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