दुनिया एक महामारी से दूसरी के बीच अटकी हुई

Edited By ,Updated: 04 Apr, 2021 04:18 AM

the world is stuck from one epidemic to another

भारत एक भयानक वायरल महामारी की चपेट में है। यह बर्ड फ्लू से भी बदतर, स्वाइन फ्लू से काफी बदतर है। इसमें 91 प्रतिशत की मृत्यु दर है जबकि यह मुख्य रूप से कुत्तों में होती है, यह सभी प्रकार की बिल्लियों में फैल सकती है और भगवान जा

भारत एक भयानक वायरल महामारी की चपेट में है। यह बर्ड फ्लू से भी बदतर, स्वाइन फ्लू से काफी बदतर है। इसमें 91 प्रतिशत की मृत्यु दर है जबकि यह मुख्य रूप से कुत्तों में होती है, यह सभी प्रकार की बिल्लियों में फैल सकती है और भगवान जाने किन-किन अन्य जानवरों को भी हो सकती है। हत्यारा घातक कैनाइन पारवो वायरस (सी.पी.वी.) है। 

पूरे भारत से प्रकोप की सूचना मिली है। हजारों पिल्ले मर गए हैं। मेरे अपने पीपल फॉर एनिमल शैल्टर में कई हजार मामले भर्ती किए गए हैं। मंगलौर से सिलीगुड़ी तक कई आश्रय बंद हो गए हैं और उन्होंने सामान्य दुर्घटना के मामलों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है क्योंकि वे मर रहे पारवो पीड़ित जानवरों से भरे पड़े हुए हैं। प्रत्येक आश्रय एक युद्ध क्षेत्र बना हुआ है जिसमें अस्थायी ड्रिप स्टैंड रखे गए हैं या स्वयंसेवक आई.वी. फ्लूड को पकड़े हुए खड़े हुए हैं जो धीरे-धीरे मर रहे शरीरों में जा रहे होते हैं।

सरकार इस वायरल महामारी की मौजूदगी से भी इंकार करती है। जहां वे बर्ड फ्लू महामारी के दौरान लाखों पक्षियों को गला घोंट कर मारने और जलाने के लिए जल्दी में थे क्योंकि उन्हें लगा कि यह मनुष्यों को प्रभावित करेगा, उन्होंने पारवो वायरस को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया है -शायद इसलिए क्योंकि उन्हें लगता है कि यह मनुष्यों को प्रभावित नहीं करेगा। अत: सरकार गरीब लोगों और सड़क पर रहने वाले जानवरों को टीका लगाने से इंकार करती है और सरकारी अस्पतालों में पारवो मामलों का उपचार नहीं करती है क्योंकि उनका कहना है कि उनके पास ड्रिप और एंटीबायोटिक्स के लिए बजट नहीं है।

सभी भारतीय पशु चिकित्सकों में से 80 प्रतिशत सरकार द्वारा नियोजित होते हैं और वे सरकारी क्लीनिकों में आराम से बैठते हैं जो सुबह 10 बजे खुलते हैं और दोपहर 2 बजे बंद हो जाते हैं -जबकि लाखों जानवर अनुपचारित मर जाते हैं। यदि आप उन्हीं पशु चिकित्सकों को जाकर मुर्गियों का गला घोंटने के लिए कहें, तो वे खुशी-खुशी एेसा करेंगे। पारवोवाइरीडे के जींस परिवार से कैनाइन पारवो वायरस (सी.पी.वी.-2ए और सी.पी.वी.-2बी) के दो प्रमुख स्ट्रेन हैं। यह संक्रमित मल, उल्टी, रक्त, स्पर्श, सतहों, कपड़ों आदि से फैलता है। आश्रय, केनाल, क्लीनिक, सार्वजनिक पार्क एेसे प्रमुख स्थान हैं जहां वायरस दुबक जाता है। इसका पसंदीदा शिकार युवा पिल्ला है, लेकिन आमतौर पर टीका न लगाए गए कुत्ते असुरक्षित हैं। पता न लगने या बाद के चरण में पता लगने पर यह 48-72 घंटों के भीतर हमेशा घातक होता है। 

हर राज्य में एक मूक नरसंहार चल रहा है, लेकिन सरकारी नगर पालिकाएं, स्वास्थ्य प्राधिकारी, पशुपालन विभाग अल्पावधि या दीर्घावधि उपायों के साथ प्रत्युत्तर देने से इन्कार करते हैं। केवल एक जिले-उत्तर दिनाजपुर में सरकारी औषधालय में कोई ड्रिप स्टैंड या आई.वी. फ्लूड उपलब्ध नहीं होने के चलते एक सप्ताह में 100 प्रतिशत मृत्यु दर के साथ 342 मामले आने के बाद एक पारवो टीकाकरण शिविर आयोजित किया गया था। पूरे देश में पशु चिकित्सा सरकारी क्लीनिक आपूर्ति, बुनियादी ढांचे, जनशक्ति की कमी तथा कभी-कभी पानी की आपूर्ति और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाआें के अभाव में इस बुनियादी उपचार को भी संभालने में असमर्थ हैं। 

बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए बड़े पैमाने पर सार्वजनिक संदेशों का प्रसार किया जाना चाहिए था। जहां हमारे यहां बर्ड फ्लू के बारे में जानकारी का प्रसार किया जा रहा है-और इसमें से अधिकांश पूरी तरह कचरा है, सरकार इस घातक वायरस के बारे में पूरी तरह से खामोश है-जो समय के साथ पशुजन्य भी सिद्ध होगा। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने बाघों के आसपास के कुत्तों के लिए एक नसबंदी कार्यक्रम के लिए कहा है। यह रिजर्व के बफर जोन में ‘प्रतिरक्षण बफर’ बनाना और रैबीज के साथ-साथ कैनाइन डिस्टैंपर के प्रति टीकाकरण को शामिल किए जाने की बात कहता है। कैनाइन पारवो वायरस इसके दायरे में शामिल नहीं है। लेकिन यहां तक कि उनकी मूल मांग का भी अनुपालन नहीं किया गया है। 

भारत में सड़क के और समुदाय के कुत्तों के टीकाकरण के प्रयास काफी हद तक जानवरों को खाना खिलाने वाले स्वयंसेवकों या गैर-लाभकारी पशु कल्याण संगठनों पर निर्भर हैं। सरकार (पशु चिकित्सा विभाग/ पशुपालन विभाग/ नगरपालिका प्रशासन) द्वारा वित्त पोषित सीपीवी के प्रति टीकाकरण अभियान स्वस्थ कुत्ता आबादी सुनिश्चित करने का मार्ग प्रशस्त करेगा। एक बाध्यकारी मामला वन हैल्थ एप्रोच से लिया जा सकता है - एक एेसी नीति जो जन स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और हमारे सांझा पर्यावरण के पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य के बीच परस्पर जुड़ाव को पहचानती है। 

इस दृष्टिकोण का समर्थन वन हैल्थ प्लेटफार्म इनिशिएटिव द्वारा किया गया है, जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू. एच.आे.), संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (यू.एन.एफ.ए.आे.), यूनाइटेड स्टेट्स सैंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवैंशन (सी.डी.सी.) और वल्र्ड आर्गेनाइजेशन फॉर एनिमल वैल्फेयर (आे.आई.ई.) के अग्रणी विशेषज्ञ शामिल है। अब समय आ गया है जब दुनिया एक वायरल महामारी से दूसरी के बीच में अटकी हुई है। सरकार के लिए यह समय बुद्धिमतापूर्ण ढंग से इसकी योजना बनाने का है कि प्रत्येक वायरस से कैसे निपटा जाए। इस बीच क्या कोई एेसा राज्य है जो इस पर ध्यान दे रहा हैं?-मेनका संजय गांधी

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