5 ट्रिलियन की ‘अर्थव्यवस्था’ का सवाल ही पैदा नहीं होता

Edited By ,Updated: 12 Jan, 2020 03:01 AM

there is no question of an economy of 5 trillion

देश के आर्थिक हालात बहुत खराब हैं और दिन-ब-दिन बदतर होते जा रहे हैं। यह मोदी सरकार की नोटबंदी तथा जी.एस.टी. नीतियों का सीधा परिणाम है। यह कहना है भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् तथा सांख्यिकी पर नवनियुक्त स्थायी कमेटी के चेयरमैन प्रणव सेन का। उनका...

देश के आर्थिक हालात बहुत खराब हैं और दिन-ब-दिन बदतर होते जा रहे हैं। यह मोदी सरकार की नोटबंदी तथा जी.एस.टी. नीतियों का सीधा परिणाम है। यह कहना है भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् तथा सांख्यिकी पर नवनियुक्त स्थायी कमेटी के चेयरमैन प्रणव सेन का। उनका कहना है कि आर्थिक संकट मोदी सरकार द्वारा  अर्थव्यवस्था के प्रति अपने गलत व्यवहार के कारण पैदा हुआ है। यदि सरकार ने मुश्किलों को स्वीकार करने से  इंकार किया तो यह और भी खराब हो जाएगी। सरकार ने नोटबंदी तथा जी.एस.टी. के परिणामों को बताने से इंकार किया। ‘द वायर’ को दिए गए 53 मिनट के साक्षात्कार के दौरान सेन ने मुझसे कहा कि 2016-17 के बाद जी.डी.पी. वृद्धि को मापने के आर्थिक आंकड़े ज्यादातर सरकार का अनुमान कार्य था। यह इसलिए क्योंकि अर्थव्यवस्था का 45 प्रतिशत वाला अनौपचारिक सैक्टर औपचारिक सैक्टर के व्यवहार तथा मंसूबों के आधार पर मापा गया। जिस समय हम यह जानते हैं कि अनौपचारिक सैक्टर कितनी बुरी तरह नोटबंदी के कारण बर्बाद हुआ तब यह बढ़ाई बिल्कुल गलत हो सकती है। 

युवा बेरोजगारी गम्भीर चिंता का विषय
प्रो. सेन ने युवा बेरोजगारी के बारे में विशेष तौर पर गम्भीर चिंता जताई जो कि ताजा सर्वे के दौरान 2011-12 में 90 लाख से बढ़कर 2017-18 में करीब अढ़ाई करोड़ हो गई। अनौपचारिक सैक्टर में नोटबंदी के प्रभाव के चलते युवा बेरोजगारी की मुश्किल बहुत बढ़ गई क्योंकि ज्यादातर युवा वर्ग अनौपचारिक सैक्टर में नौकरियां ढूंढता है। उसके बाद कुछ वर्षों तक ट्रेनिंग लेने के बाद यह उम्मीद करता है कि वह अर्थव्यवस्था के औपचारिक क्षेत्रों की तरफ बढ़ जाएगा। हालांकि नोटबंदी के बाद के समय में अनौपचारिक सैक्टर ने नौकरियों के लिए आवेदन मांगने बंद कर दिए जिसका मतलब यह हुआ कि पिछले तीन वर्षों के दौरान युवा वर्ग जिसने अनौपचारिक सैक्टर में नौकरियां हासिल नहीं कीं, वह बेरोजगार हो गए। 

देश में डर का माहौल व्याप्त
प्रणव सेन का मानना है कि देश में व्याप्त डर के माहौल को खत्म किया जाए जिसने कि उद्योगपतियों तथा समाज के विस्तृत वर्गों को अपनी चपेट में ले रखा है। विशेष तौर पर सेन राहुल बजाज के मशहूर बयान का जिक्र करते हुए कहते हैं कि ऐसे डर निवेश में बाधा डाल रहे हैं। निवेश एक लम्बी अवधि की प्रतिबद्धता है तथा उद्योगपति यह प्रतिबद्धता तब तक नहीं दिखाएंगे जब तक कि वे असुरक्षा तथा डर के माहौल से बाहर न निकलें। 

प्रो. सेन ऐसी शंकाओं तथा डर के बारे में भी खुलकर बोलते हैं कि सरकार असहमत लोगों के प्रति असहिष्णु है तथा कभी-कभार यह आलोचकों को दंडित करने वाला व्यवहार अपनाती है और इसका ताजा उदाहरण जामिया, ए.एम.यू. तथा जे.एन.यू. की घटनाएं हैं। वह पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के बयान से भी सहमत हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि शंका तथा डर ने आॢथक वृद्धि को जकड़ रखा है। सरकार को कोई मुश्किल न होगी यदि वह पी.एम. किसान योजना, मनरेगा तथा मूलभूत ढांचे जैसी स्कीमों पर खर्च बढ़ाकर मांग को और बढ़ाए। केन्द्र सरकार का घाटा 5.5 प्रतिशत हो चुका है और यदि राज्य सरकारों तथा पब्लिक सैक्टर यूनिट (पी.एस.यू.) का घाटा भी जोड़ लें तो कुल मिलाकर राष्ट्रीय घाटा 11.5 प्रतिशत हो जाएगा। प्रो. सेन ने दृढ़ता से एक समाचार पत्र के 9 जनवरी के लेख में अरविंद पनगढिय़ा द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को भी नकारा है जिसमें उन्होंने कहा था कि वित्तीय घाटा टार्गेट को किसी भी लागत पर बनाए रखा जाना चाहिए। सरकार का मुख्य कत्र्तव्य वित्तीय घाटे टार्गेट को सुरक्षित करने से ज्यादा आर्थिक वृद्धि पुनर्जीवित करने का होना चाहिए। 

प्रो. सेन भूमि तथा श्रम सुधारों के हक में हैं तथा कहते हैं कि वर्तमान आॢथक संकट श्रम सुधारों के लिए एक गलत समय है। उद्योगपतियों को कर्मचारियों को रखने और निकाल देने का हक उनकी काम करने की क्षमता को बढ़ाएगा। ये सभी सुधार अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवित होने के बाद ही किए जाने चाहिएं न कि जब यह उदासी देख रही हो। 2025 तक 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का प्रश्र ही पैदा नहीं होता। 

अर्थव्यवस्था में विश्वास खो रहे उद्योगपति तथा युवा वर्ग
प्रो. सेन ने आगे कहा कि उद्योगपति तथा भारतीय युवा वर्ग दोनों ही अर्थव्यवस्था में अपना विश्वास खो रहे हैं तथा भविष्य के नतीजों की ओर देख रहे हैं। वास्तविकता यह है कि निवेश की वृद्धि एक प्रतिशत के नीचे रहेगी तथा निवेश दर मात्र 28.1 प्रतिशत रहेगी। वर्तमान परिदृश्य में उद्योग में गैर इस्तेमाल क्षमता के चलते ज्यादा निवेश करने की कोई जल्दबाजी नहीं है। इस संदर्भ में सेन का मानना है कि कार्पोरेट दर में गलत समय पर कटौती की गई। यह निवेश को प्रोत्साहित करने में असफल हुई तथा इसने सरकार के राजस्व को भी घटा दिया। दूसरे शब्दों में सरकार शिखर पर चढ़ने की बजाय ढलान की ओर चली गई। इस विश्वास के डगमगाने के कारण भारत का युवा वर्ग जो कि बेरोजगार है, ने रोजगार तलाशने की तरफ देखना बंद कर दिया है। इस वर्ग ने अर्थव्यवस्था तथा भविष्य में अपना विश्वास खो दिया और इसके विपरीत निरुत्साहित हो सरकार के प्रति अपना मोहभंग कर बैठा। भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश के प्रति सवाल उठाए जा सकते हैं। 

प्रो. सेन का आगे कहना है कि सरकार का सबसे अहम कार्य आने वाला बजट है। सरकार को मनरेगा, पी.एम. किसान योजना तथा ग्रामीण सड़कों में और अधिक पैसा लगाकर मांग को प्रोत्साहित करना होगा। जमीनी स्तर पर पैसे को नीचे लाने के लिए ये आश्वस्त रास्ते हैं, जहां पर इसकी ज्यादा जरूरत है तथा इसको तत्काल रूप से खर्च करना होता है। 

सरकार के निजी आयकर में कटौती करने के सुझाव का सेन दृढ़तापूर्वक विरोध करते हैं। ऐसा करने से इसका प्रभाव 30 से 50 मिलियन लोगों के सीमित वर्ग पर पड़ेगा। दूसरा ये ज्यादा बचत करने वाले हैं, इस कारण टैक्स में कम प्रतिशत की बचत कर नए और ताजा उपभोग पर खर्च करेंगे। वह मूलभूत सरंचनाओं पर खर्च करने का समर्थन करते हैं। मगर जिन परियोजनाओं में वित्त पोषित करना है उसे ध्यानपूर्वक तरीके से चुनना होगा। नई परियोजनाएं जिनकी अवधि लम्बी होती है, को शुरू करने की तुलना में मौजूदा परियोजनाओं पर पैसा खर्च करना चाहिए। मगर इस बात को यकीनी बनाया जाए कि दो वर्ष की अवधि में सम्पूर्ण होने वाली ये परियोजनाएं एक वर्ष के भीतर ही पूरी हो जाएं।-करण थापर

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