माकपा के लिए अपनी शैली बदलने का समय

Edited By ,Updated: 22 May, 2022 06:04 AM

time for cpi m to change its style

देश में कम्युनिस्ट पार्टी की सबसे बड़ी शाखा सी.पी.आई. ‘माक्र्सवादी’ (माकपा), जिसकी स्थापना पुच्छलपल्ली सुंदरय्या, ई.एम.एस. नंबूदरीपाद, हरकिशन सिंह सुरजीत, प्रमोद दासगुप्ता, ए.के. गोपालन, बी.टी. रणदिवे, एम. बसवा पुनिया, पी. राममूर्ति और ज्योति बसु...

देश में कम्युनिस्ट पार्टी की सबसे बड़ी शाखा सी.पी.आई. ‘माक्र्सवादी’ (माकपा), जिसकी स्थापना पुच्छलपल्ली सुंदरय्या, ई.एम.एस. नंबूदरीपाद, हरकिशन सिंह सुरजीत, प्रमोद दासगुप्ता, ए.के. गोपालन, बी.टी. रणदिवे, एम. बसवा पुनिया, पी. राममूर्ति और ज्योति बसु जैसे दिग्गजों द्वारा की गई थी, 2019 के चुनाव में सिर्फ 3 लोकसभा सीटें जीत पाई।

1964 में अपने गठन के बाद पहली बार, पार्टी ने पश्चिम बंगाल में एक भी सीट प्राप्त नहीं की। 1989, 1996 और 2004 में केंद्र में सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली माकपा अब समय की सरकार की विश्वासपात्र नहीं है। कम्युनिस्टों की विफलता निश्चित रूप से दक्षिणपंथी राजनीति और सांप्रदायिकता के प्रभाव और अधिकार को बढ़ाएगी और यह राष्ट्र के लिए स्वस्थ्यकर नहीं है। 

भारत की स्वतंत्रता के बाद चीन-सोवियत विभाजन और चीन-भारत युद्ध जैसी घटनाओं की एक शृंखला ने 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन का नेतृत्व किया। टूट कर बनी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ‘माक्र्सवादी’ चुनावों में सदस्यता और प्रदर्शन दोनों मामलों में मजबूत हुई। वर्ग और जन संघर्षों को संचालित करने में माकपा का शानदार रिकॉर्ड रहा है। यह वामपंथ का सबसे बड़ा दल है। यह कभी 3 राज्यों में वामपंथी नेतृत्व वाली सरकारों का नेतृत्व कर रहा था, जो अब एक रह गई है। 

1950 के दशक की शुरूआत में, भारत में राजनीतिक सत्ता पर कब्जा करने के तरीके को लेकर संयुक्त भाकपा बुरी तरह से विभाजित थी। उग्रवादी आवाजों ने ‘चीनी रास्ते’ या हिंसक साधनों के माध्यम से सत्ता पर कब्जा करने की वकालत की और दूसरा समूह ‘भारतीय रास्ते’ या भारतीय संविधान की सीमाओं के भीतर रह कर सत्ता पर कब्जा करने के पक्ष में था। चीनी रास्ते की वकालत करने वाले चंद्र राजेश्वर राव विभाजन के बाद सी.पी.आई. (एम) के साथ नहीं गए। राजेश्वर राव के साथ चीनी मार्ग की वकालत करने वाले माकिनेनी बसवा पुनिया 1964 में विभाजन के बाद सी.पी.आई. (एम) के पोलित ब्यूरो सदस्य बन गए। 

पुच्छलपल्ली सुंदरय्या माकपा के संस्थापक सदस्य और तेलंगाना में किसान विद्रोह के नेता थे। 1936 में, सुंदरय्या अविभाजित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य बने। वे 1948 और 1952 के बीच भूमिगत हो गए। 1952 में उन्हें केंद्रीय समिति के लिए फिर से चुना गया। वह पोलित ब्यूरो के लिए भी चुने गए, जो पार्टी का सर्वोच्च मंच है। जब पार्टी नेतृत्व भारत-चीन युद्ध के समय सरकार का समर्थन करने के पक्ष में था, सुंदरय्या ने पार्टी के प्रमुख नेतृत्व की नीतियों के विरोध में अपने पदों से इस्तीफा दे दिया। नवंबर 1962 के दौरान भारत-चीन युद्ध के समय उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। विभाजन के बाद सुंदरय्या को इसके महासचिव के रूप में चुना गया था। वे 1976 तक लगातार पार्टी के महासचिव रहे। 

2008 में कोयंबटूर में आयोजित 19वीं सी.पी.एम. पार्टी कांग्रेस ने पार्टी में गलत रुझानों के खिलाफ एक सुधार अभियान का आह्वान किया, जो सही सिद्धांतों पर पार्टी को एकजुट और मजबूत करने के लिए था। उद्देश्य को कहां तक प्राप्त किया जा सका और अभियान अपनी वास्तविक भावना में संवर्ग के नीचे कितनी दूर तक पहुंंचा है, ज्ञात नहीं है। इसमें कोई शक नहीं कि विदेशी मूल्यों और विचारों ने माकपा के नेताओं और कार्यकत्र्ताओं को प्रभावित किया। धन के संकेंद्रण के साथ-साथ, सभी स्तरों पर व्यवसाय-राजनेता गठजोड़ का निर्माण कॉर्पोरेट और व्यावसायिक हितों और राजनीतिक व्यवस्था के बीच परस्पर जुड़ाव है। यहां तक कि माकपा की केंद्रीय समिति ने भी पाया कि राजनीति में, विशेष रूप से चुनावों में धन-बल की भूमिका अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ गई है और माकपा के कार्यकत्र्ता इसके अपवाद नहीं हैं। 

पार्टी की अधिकांश सदस्यता में नए सदस्य शामिल होते हैं, जिन्हें अभी पार्टी के बुनियादी दृष्टिकोण को हासिल करना और उन्हें अभी भी वर्ग और जन संघर्षों में शामिल किया जाना है। ऐसी स्थिति पार्टी के भीतर सभी प्रकार के सामंती, बुर्जुआ (अभिजात वर्ग) और निम्न बुर्जुआ प्रवृत्तियों को जन्म देती है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने नोट किया कि पार्टी की अग्रणी समितियों में मजदूर वर्ग, गरीब किसानों और खेतिहर मजदूरों का केवल 30 प्रतिशत ही है। साम्यवादी मानदंडों के उल्लंघन भी पैदा हुए हैं। संसदीय दृष्टिकोण और चुनावी अवसरवाद के चलते, माकपा द्वारा जन आंदोलनों, संघर्ष शुरू करने और पार्टी के निर्माण की उपेक्षा की जा रही है। 

माकपा कैडर के बीच संसदीय अवसरवाद में स्पष्ट वृद्धि के कारण, पार्टी के टिकट से इन्कार करने पर व्यक्तिगत कामरेडों की संख्या ने विद्रोह का सहारा लिया। पार्टी में पैसे, शराब और अन्य भ्रष्ट आचरणों का इस्तेमाल बढ़ा है। चुनाव में धन का इस्तेमाल उन राज्यों में भी अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया है, जहां पार्टी नाम के लिए अस्तित्व में है। 

पार्टी को खतरा महसूस होता है जब कुछ नेता और कार्यकत्र्ता कम्युनिस्ट मानकों और मूल्यों पर खरा उतरने में विफल होते हैं। पार्टी एक भव्य जीवन शैली, आलीशान घर बनाने, शादियों पर बड़ी मात्रा में खर्च करने और बड़े पैमाने पर उत्सवों का आयोजन करने के लिए अपवाद नहीं है। ऐसे कामरेडों के उदाहरण हैं, जिन्होंने संपत्ति अर्जित की है और आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक खर्च करते हैं।

ऐसे कई मामले हैं जिनमें पार्टी नेता एन.जी.ओ. चला रहे हैं, जिनके पास फंड के इस्तेमाल के लिए कोई नियंत्रण या जवाबदेही नहीं है। रियल एस्टेट प्रमोटर, ठेकेदार और शराब ठेकेदार माकपा कैडर और निर्वाचित पदों पर बैठे लोगों के साथ संबंध स्थापित करना चाहते हैं। विशेष रूप से चुनावी खर्च को पूरा करने के लिए सामूहिक संग्रह के बजाय व्यक्तियों और संपन्न वर्गों से बड़ी मात्रा में धन इकट्ठा करने की प्रवृत्ति बढ़ गई है। इसका लेखा-जोखा ठीक से नहीं रखा जाता और संबंधित समितियों के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाता। 

इस पृष्ठभूमि में अब माकपा के लिए आत्मनिरीक्षण करने और लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने का समय है। दक्षिणपंथी राजनीति का मुकाबला करने के लिए धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और समाजवादी ताकतों की समान विचारधारा वाली शक्तियों के साथ गठबंधन करना उनका आवश्यक कत्र्तव्य है।-वनम ज्वाला/नरसिम्हा राव

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!