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भारत को घेरने के लिए चीन ने सीमा के नजदीक बनाए 16 एयरबेस

Edited By ,Updated: 28 Jul, 2021 05:55 AM

to encircle india china built 16 airbases near the border

पिछले साल गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों में अब तक 12 राऊंड बातचीत हो चुकी है लेकिन तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा। भारत-चीन के बीच अभी पूर्वी लद्दाख

पिछले साल गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों में अब तक 12 राऊंड बातचीत हो चुकी है लेकिन तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा। भारत-चीन के बीच अभी पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में भी तनाव बरकरार है। इसी बीच चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अचानक तिब्बत का दौरा किया, जिसके बाद यह बात दुनिया के सामने आई कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारी मात्रा में सेना, असला-बारूद और सैन्य साजो-सामान जुटाने में लगा हुआ है। 

भारत से सटे चीनी इलाकों में एक-दो नहीं, बल्कि चीन 16 हवाई पट्टियां बना रहा है। इनमें कुछ पुराने एयरबेस हैं, जिनका चीन विस्तार करवा रहा है, कुछ नए बना रहा है। इनमें से कई एयरबेस ऐसे हैं जिनका नागरिक और सैन्य दोनों तरह से इस्तेमाल करने पर चीन काम कर रहा है। खुफिया सूत्रों से मिली खबर के अनुसार चीन इस समय जिन 16 हवाई पट्टियों पर काम कर रहा है, उनमें से अधिकतर लद्दाख, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के अलावा कुछ भारत, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं के जोड़ से ज्यादा दूर नहीं हैं। 

इन हवाई पट्टियों में से सबसे ज्यादा उसके दक्षिण-पश्चिमी प्रांत शिनच्यांग में हैं, जो भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और रूस के साथ अपनी सीमाएं जोड़ता है। यह क्षेत्र लद्दाख से ज्यादा दूर नहीं है। यह वही क्षेत्र है जो पिछले एक साल से भारत और चीन के बीच सैन्य संघर्ष का केन्द्र रहा है। इसके अलावा चीन अपने दो नए एयरबेस अरुणाचल प्रदेश से लगे अपने इलाके में बना रहा है, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि ये वर्ष 2022 तक तैयार हो जाएंगे। 

चीन के साथ अभी तक 12 राऊंड की वार्ता से कोई नतीजा नहीं निकला। इसका एक मतलब यह भी हो सकता है कि जहां एक तरफ चीन भारत को बातों में उलझाए रखना चाहता है, वहीं दूसरी तरफ अपनी सैन्य तैयारियां बहुत तेजी से कर रहा है। जब चीन की सैन्य तैयारियां पूरी हो जाएंगी, तब वह भारत पर हमला कर सकता है। भारतीय सीमा के करीब बने चीनी सैन्य हवाई अड्डों में अरिगुंसा, बुरांग और ताक्सकोर्गन महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन्हें सैन्य उपयोग के साथ-साथ नागरिक उपयोग के लिए भी तैयार किया गया है। 

ताक्सकोर्गन चीन के पश्चिमी शिनच्यांग प्रांत में स्वायत्त ताजिक काऊंटी है, जो चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पूर्वी पामीर पठार पर बसी है, जो कुनलुन, कराकोरम, हिन्दूकुश और तियानशान पर्वतीय दर्रों के बीच स्थित है। इस क्षेत्र की सीमाएं अफगानिस्तान के वाखान दर्रे, ताजिकिस्तान के गोर्नो-बदखशां प्रांत और पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान से मिलती हैं। यहां पर चीन ने अपनी एक नई हवाई पट्टी बनाई है। 10,000 फुट की ऊंचाई पर मौजूद यह हवाई अड्डा भारत के सियाचिन इलाके से काफी नजदीक है। यह हवाई अड्डा अत्याधुनिक तकनीक से लैस है। 

चीन ने अपने पश्चिमी छोर पर हवाई अड्डे के निर्माण का काम पिछले वर्ष गलवान घाटी में संघर्ष के दौरान शुरू कर दिया था। शिनच्यांग प्रांत में चीन-पाकिस्तान सीमा के नजदीक बने इस हवाई अड्डे को लद्दाख में होने वाली गतिविधियों पर नजर रखने के उद्देश्य से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह हवाई अड्डा चीन के लिए एक रणनीतिक आधार है। शिनच्यांग उईगर स्वायत्त प्रांत क्षेत्र में स्थित यह हवाई अड्डा ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा के नजदीक बना है। चीन इसे किसी भी हालत में जून 2022 तक शुरू कर देना चाहता है और उस समय तक चीन भारत को कई दौर की बातचीत में उलझाकर समय खरीद रहा है। 

वैसे रणनीति के लिहाज से कराकोरम दर्रा बहुत महत्वपूर्ण है। भारत और चीन दोनों के लिए यह क्षेत्र बहुत महत्व रखता है क्योंकि चीन की बैल्ट एंड रोड परियोजना की सड़क, जो काशगर से निकलकर पाकिस्तान की ग्वादर बंदरगाह तक जाती है, वह इसी कराकोरम क्षेत्र से होकर गुजरती है। कराकोरम दर्रे वाले पूरे क्षेत्र में चीन ने कम से कम पांच हवाई अड्डे बनाए हैं और इनमें अत्याधुनिक सैन्य उपकरण भी लगाए हैं। होतान, शाचे, काशी (काशगर) ताक्सकोर्गन और युतियन वांगफंग इस क्षेत्र में बने सबसे महत्वपूर्ण एयरबेस हैं। 

इसके अलावा चीन का होतान एयरबेस, जो लद्दाख से बहुत नजदीक है और कराकोरम दर्रे से करीब 250 किलोमीटर दूर है, पर चीन ने अपने जे सीरीज समेत कई अत्याधुनिक लड़ाकू विमान तैनात किए हैं। गत वर्ष दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद से यह एयरबेस बहुत सक्रिय है। इसे देखते हुए साफ तौर पर समझा जा सकता है कि चीन भारत के खिलाफ कितनी तेजी से अपने सैन्य साजो-सामान को बढ़ा रहा है और भारत को बातों के दौर में उलझाकर सटीक समय की प्रतीक्षा में है। हालांकि भारत भी चीन की हर हरकत पर अपनी पैनी नजर रखे हुए है लेकिन उसकी हर चाल से अब सतर्क रहने की जरूरत है और जरूरत पडऩे पर चीन को ईंट का जवाब पत्थर से देना समय की मांग है।

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