बिहार की राजनीति के ‘दो वारिस’

Edited By Updated: 13 Oct, 2020 02:02 AM

two heirs  of bihar s politics

क्या बिहार के दो युवा नेता तेजस्वी यादव (राजद) तथा चिराग पासवान (लोजपा) अपने पिता लालू प्रसाद यादव तथा रामविलास पासवान के खाली स्थान को भर पाएंगे। लालू तथा पासवान दशकों से बिहार की राजनीति के श्रेष्ठ खिलाड़ी रह चुके हैं। इन नेताओं ने 80 के दशक के...

क्या बिहार के दो युवा नेता तेजस्वी यादव (राजद) तथा चिराग पासवान (लोजपा) अपने पिता लालू प्रसाद यादव तथा रामविलास पासवान के खाली स्थान को भर पाएंगे। लालू तथा पासवान दशकों से बिहार की राजनीति के श्रेष्ठ खिलाड़ी रह चुके हैं। इन नेताओं ने 80 के दशक के अंत में राजनीति की सोच को समझ कर प्रभावशाली कांग्रेस पार्टी को चुनौती दी और कुछ हद तक इसमें सफल भी रहे। 

हालांकि लालू इस समय चारा घोटाला में रांची की जेल में बंद हैं और पासवान जी का पिछले हफ्ते देहांत हो चुका है। तेजस्वी तथा चिराग को अब अपनी स्पष्ट भूमिका निभानी होगी। दोनों ही नेता दो महत्वपूर्ण जातीय समूहों यादव तथा दलितों का बिहार में नेतृत्व कर रहे हैं। इन दोनों जातियों के पास 24 से 30 प्रतिशत के अनुमानित मत हैं। इसी का फायदा उठाने के लिए उनके पिताओं ने इन दोनों युवा नेताओं को अपना राजनीतिक वारिस घोषित किया था। 

39 वर्षीय तेजस्वी विपक्षी गठबंधन जिसे महागठबंधन कहा जाता है (कांग्रेस, वामदल तथा कुछ अन्य छोटी पार्टियां इसका हिस्सा हैं), को दुर्जय सत्ताधारी जद (यू)-भाजपा गठजोड़ का सामना करना होगा। तेजस्वी एक युवा, महत्वाकांक्षी तथा साफ-साफ बोलने वाले नेता हैं और उन्होंने अपने पिता लालू से राजनीति के कुछ गुर सीखे हैं। अपने विपक्षियों को बेअसर करने के लिए उन्होंने जल्द ही मौके को दोनों हाथों से लपक लिया। 

तेजस्वी के समक्ष कई चुनौतियां हैं। पहली चुनौती बिखरे हुए झुंड को इकट्ठा करने की है। रघुवंश प्रसाद सिंह जोकि लालू यादव के बेहद निकट तथा विश्वासपात्र थे तथा उन्होंने पार्टी के उपाध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया था, की मौत पिछले माह हो चुकी है। मतभेद की आवाजें शिवानंद तिवारी तथा कुछ अन्य विधायकों से उबर रही हैं, जो राजद को छोड़ नीतीश कुमार की जद (यू) में शामिल हो रहे हैं। हालांकि तेजस्वी ने विरासत में लालू का नाम, पहचान तथा उनकी राजनीतिक विरासत को पाया है, मगर हमें देखना है कि क्या तेजस्वी लालू का वोट बैंक भी विरासत में पाएंगे या नहीं। 1990 में भाजपा नेता लाल कृष्ण अडवानी की प्रसिद्ध रथ यात्रा को लालू ने रोका था, जो उनकी एक बड़ी कार्रवाई थी। उनके पास धर्मनिरेपक्ष साख थी। सभी संभावनाओं के चलते लालू का पूरा वोट बैंक तेजस्वी के साथ रहेगा। 

इसके बाद युवा मत का नम्बर आता है। बिहार में चार करोड़ युवा मतदाता हैं जिन पर लक्ष्य भेदा जा सकता है। तेजस्वी ने अपना सोशल मीडिया प्लेटफार्म, पोस्टर, नारेबाजी तथा चुनावी गीतों का निर्माण किया है। हालांकि उन्होंने 9वीं कक्षा तक पढ़ाई की है मगर उन्हें अंग्रेजी बोलने में महारत है। तेजस्वी को एक लम्बा रास्ता तय करना है क्योंकि उनके पास राजनीतिक चतुराई की कमी है। दूसरा यह कि उनके पास अपनी उपलब्धियों को दर्शाने के लिए कुछ भी नहीं है क्योंकि वह केवल 20 महीनों के लिए ही उपमुख्यमंत्री पद पर रहे। तीसरा, लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव तथा बेटी मीसा भारती के दावों को नकारते हुए तेजस्वी को अपना राजनीतिक वारिस घोषित किया जिसके चलते परिवार में ईष्र्या तथा समस्याएं पैदा हो गईं। तेजस्वी को इन सब बातों का हल निकालना होगा। 

चौथी बात यह है कि तेजस्वी 26 वर्ष की आयु में उपमुख्यमंत्री बने तथा अब मुख्यमंत्री बनने का इंतजार कर रहे हैं। 2017 में जब महागठबंधन खत्म हुआ तब वह विपक्ष के नेता बने तथा अब महागठबंधन के नेता हैं। अब समय है कि वह अपना नेतृत्व कौशल दिखाएं। दूसरी तरफ चिराग पासवान की कहानी अलग है। वह एक फिल्म अभिनेता बनना चाहते थे मगर दूसरे विचार के अंतर्गत उन्होंने अपने पिता के साथ राजनीति का दामन थामा और जल्द ही पार्टी प्रमुख बन गए। वह पार्टी के कई महत्वपूर्ण निर्णयों में शामिल थे, जिनमें बिहार विधानसभा चुनावों में अकेले चुनाव लडऩा शामिल है। 

उन्होंने बिहार में नीतीश के नेतृत्व वाला राजग छोड़ा है। रामविलास पासवान को वायु दिशा दर्शक माना जाता था तथा उन्होंने लम्बे अर्से तक 8 प्रधानमंत्रियों के साथ सेवा कार्य किया है। तेजस्वी यादव तथा चिराग को सशक्त जद (यू)-भाजपा गठबंधन को झेलना होगा जिसने नेतृत्व, अनुभव, धन शक्ति तथा चुनावी मशीनरी को सही ढंग से स्थापित किया है।-कल्याणी शंकर 
 

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