विकास दुबे मरा नहीं अभी शायद कभी ‘मरेगा भी नहीं’

Edited By ,Updated: 20 Jul, 2020 02:05 AM

vikas dubey is not dead maybe he will never die either

सब कह रहे हैं कि पुलिस की गोली से विकास दुबे मर गया परन्तु मैं बड़े विश्वास के साथ और बहुत सोच कर लिख रहा हूं कि विकास दुबे मरा नहीं। वह अभी है और शायद कभी मरेगा भी नहीं। उसके प्राण उसके शरीर में नहीं थे। बचपन में अपने गांव में सुनी सबसे रोचक...

सब कह रहे हैं कि पुलिस की गोली से विकास दुबे मर गया परन्तु मैं बड़े विश्वास के साथ और बहुत सोच कर लिख रहा हूं कि विकास दुबे मरा नहीं। वह अभी है और शायद कभी मरेगा भी नहीं। उसके प्राण उसके शरीर में नहीं थे। बचपन में अपने गांव में सुनी सबसे रोचक कहानी-एक अत्याचारी राक्षस था। सबको मारता था। उसे जब भी मारा जाता था तो मर कर भी जीवित हो जाता था। उसके प्राण शरीर में नहीं थे। दूर जंगल की अंधेरी गुफा में रखे एक पिंजरे के तोते में थे-बाद में जब तोता मारा गया तो वह राक्षस मरा था। विकास दुबे के प्राण भी बहुत दूर राजनीति की गुफा में, सत्ता की राजनीति के पिंजरे में भ्रष्ट, राजनीति के तोते में हैं। अभी तक वहां कोई पहुंचा नहीं और जब तक वहां कोई नहीं पहुंचेगा तब तक विकास दुबे मर कर भी जीवित रहेगा। 

बड़े ध्यान से सोचिए, विकास दुबे कब बना, बढ़ा, शक्तिशाली हुआ और इतना उपद्रव किया, जब दिल्ली में एक सर्वश्रेष्ठ आदर्श प्रधानमंत्री श्री मोदी जी बैठे और कानपुर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मुख्यमंत्री के रूप में सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ योगी बैठे हैं। यदि श्री मोदी और श्री योगी के होते हुए भी विकास दुबे इतना उपद्रव करता रहा तो विश्वास करिए वह कभी मरेगा नहीं। 

आजादी के बाद प्रारंभ में भारत की राजनीति सेवा और नैतिकता की राजनीति थी। कुछ दिन के बाद सत्ता का नशा चढ़ने लगा। भ्रष्टाचार बढ़ने लगा। जनता बहुत अधिक चिंता करने लगी। तभी एक राष्ट्रवादी देशभक्त नेता उस समय के हिंदू महासभा के अध्यक्ष डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी मतभेद होने के कारण नेहरू मंत्रिमंडल से बाहर आए। हिंदू महासभा के अध्यक्ष होते हुए भी उन्हें महात्मा गांधी जी के आग्रह पर कांग्रेस सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। वे भारतीय संस्कृति और आदर्शों के आधार पर एक राजनीतिक दल बनाना चाहते थे। उसी समय एक राष्ट्रवादी देशभक्त संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कुछ प्रमुख विचारक नेता इसी प्रकार से सोच रहे थे। कुछ बुद्धिजीवी नेता इस विचार के थे कि भारत  स्वतंत्र हो गया। कांग्रेस को अंग्रेज डा. हयूम ने स्थापित किया। वह राष्ट्रवाद विहीन है। साम्यवादी दल रूस से प्रेरणा लेता है। 

भारत में भारत की मिट्टी और संस्कृति से जुड़ा एक दल चाहिए। डा. मुखर्जी संघ के संघचालक गुरु गोलवरकर जी को मिले। उन्होंने स्पष्ट कहा कि संघ तो केवल सांस्कृतिक कार्य ही करेगा परन्तु अपने कुछ प्रमुख संघ नेताओं को मुखर्जी के साथ देकर नया राजनीतिक दल बनाने का आशीर्वाद दिया। 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई। न्यूयार्क के एक प्रमुख समाचार पत्र ने लिखा था-‘‘भारत में एक महान नेता थे और एक महान संगठन था-दोनों मिले और भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई।’’ 

मेरा सौभाग्य है कि मैं 1948 से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और 1951 में भारतीय जनसंघ और फिर जनता पार्टी और अब भारतीय जनता पार्टी से जुड़ा हुआ हूं। पार्टी का प्रारंभ एक आदर्शवादी, चरित्रवान, ईमानदारी की राजनीति करने वाली पार्टी के रूप में हुआ। पार्टी की पांच निष्ठाएं थीं। सबसे प्रमुख थी मूल्य आधारित राजनीति। छोटी-सी पार्टी ने जिसमें न राजा-महाराजा थे न कोई बड़े नेता थे। धीरे-धीरे पूरे देश का ध्यान आकॢषत किया। अधिकतर कार्यकत्र्ता संघ के चरित्रवान, देशभक्त स्वयं सेवक थे। पार्टी आगे बढ़ती गई। कई पड़ाव आए परन्तु आदर्श नहीं छोड़े। श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी बड़े गौरव से कहते थे- हम केवल सरकार बदलने के लिए नहीं हैं हमें तो पूरा समाज बदलना है। पार्टी का यही सबसे बड़ा गुण था। उस समय तक जनता कांग्रेस के भ्रष्टाचार से परेशान हो रही थी। उस परिस्थिति में चरित्रवान कार्यकत्र्ता और पार्टी का आदर्शवाद ही सबसे बड़ा आकर्षण था। पार्टी को जनता का समर्थन मिला और आज हमारी पार्टी विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। 

जनसंघ का 1952 का पहला चुनाव संघ के स्वयं सेवकों ने ही लड़ा था। जनसंघ का संगठन तो कहीं बना ही नहीं था। मैं कांगड़ा में प्रचारक था। मुझे चुनाव प्रचार करने के लिए पालमपुर भेजा गया। उस समय पंजाब नैशनल बैंक निजी बैंक था। उसके मालिक लाला योध राज कांगड़ा लोकसभा के जनसंघ के प्रत्याशी बने। खूब धन खर्च किया गया परन्तु बहुत अधिक वोटों से जनसंघ की जमानत जब्त हुई। लगभग  सभी जगह पार्टी बुरी तरह हारी। उसके तुरन्त बाद लुधियाना में संघ के प्रचारकों की तीन दिन की बैठक हुई। उसमें गुरु गोलवरकर जी आए थे। मुझे याद है सभी प्रचारकों के चेहरों पर चुनाव की हार से भयंकर निराशा थी। मेरी तरह सभी ने चुनाव का काम किया था। गुरु गोलवरकर जी सबकी निराशा भरी बातें सुनते थे और मुस्कुराते थे। अंतिम समारोह के उनके भाषण की तीन बातें आज भी याद हैं। 

उन्होंने  कहा-‘‘आपको किसने कहा था कि पहले चुनाव में ही जनसंघ जीतेगा। मुझे तो सब पता था-याद रखो इस बार केवल बीज बोया गया है सींचेंगे तो पौधा बढ़ेगा और विश्वास रखो फल भी लगेंगे-लेकिन एक बात याद रखना राजनीति और विशेषकर सत्ता की राजनीति फिसलन भरी होती है। आज के कांग्रेस के नेता भी कभी आदर्शवादी, देशभक्त होते थे। आदर्शों को मत भूलना। भविष्य उज्जवल है।’’ यह सब कह कर अंत में कहने लगे, ‘‘इन सबसे भी अधिक एक और महत्वपूर्ण बात-आप सबने जनसंघ बना दिया-रास्ता दिखा दिया। आप संघ के प्रचारक हैं उन्हें सहयोग दो परन्तु तुम सब जनसंघ को भूल जाओ। शाखा के चरित्र निर्माण के काम में लग जाओ। आज लगभग 68 वर्ष के बाद भी गुरु गोलवरकर जी की बातें याद करता हूं तो सोचता हूं-काश उन बातों पर पूरा अमल किया होता तो आज ऐसी स्थिति पैदा न होती जिसमें विकास दुबे पैदा होते रहते हैं।-शांता कुमार (पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र. और पूर्व केन्द्रीय मंत्री)

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