क्या ‘नोटबंदी’ से काले धन की व्यवस्था खत्म हो सकेगी

Edited By ,Updated: 05 Jan, 2017 12:09 AM

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कालेधन की अर्थव्यवस्था से निपटना बहुत प्रशंसनीय है। इसी काम को अंजाम देने के लिए प्रधानमंत्री ने उच्च कीमत के करंसी नोटों को बंद करने की घोषणा की...

कालेधन की अर्थव्यवस्था से निपटना बहुत प्रशंसनीय है। इसी काम को अंजाम देने के लिए प्रधानमंत्री ने उच्च कीमत के करंसी नोटों को बंद करने की घोषणा की है लेकिन अधिकतर विश£ेषकों का मत है कि  भारत में काले धन की अर्थव्यवस्था को समाप्त करना तो दूर की बात, इस तरीके से इस पर छोटा-मोटा प्रहार भी नहीं किया जा सकता।

नोटबंदी की नुक्सपूर्ण अवधारणा इस भ्रम पर आधारित है कि काला धन केवल नकदी के रूप में ही होता है। सरकार ने नोटबंदी का कदम यह सोच कर उठाया है कि एक बार नकदी रूपी काला धन व्यवस्था में से बाहर खींच लिया जाएगा तो काले धन की अर्थव्यवस्था स्वत: ही समाप्त हो जाएगी यह तो ऐसा मानने जैसा है कि बंद कमरे में से आक्सीजन सोख ली जाएगी तो सभी बुरे लोग मर जाएंगे। लेकिन वहां बैठे हुए अच्छे लोग भी तो मौत के शिकार हो जाएंगे।   ऊपर से बुरे लोगों के पास  यदि  आक्सीजन मास्क जैसे बचाव के तरीके होंगे और अच्छे लोगों के पास नहीं होंगे तो क्या होगा?

नोटबंदी का राजनीतिक परिणाम और तदानुरूप इसके प्रभाव को संसद में भी महसूस किया गया जब जनता  (खासतौर पर गरीब लोगों) को दरपेश  कठिनाइयों के मद्देनजर  लगभग सारा विपक्ष इसके विरुद्ध एकजुट हो गया।  हालांकि संसद के बाहर असहमतियां भी थीं और 28 नवम्बर को रोष दिवस के मौके पर विपक्ष के मतभेद खुल कर सामने आ गए।

जनता के व्यवहार से तो ऐसा लगता था कि इसने काफी हद तक प्रारंभिक दौर में यह बात स्वीकार कर ली थी कि सरकार  काले धन से निपटने पर गंभीर है। जन मानस में काला धन और काली अर्थव्यवस्था एक ही चीज है और देश के लिए यह बहुत बड़ी लानत है। कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि प्रधानमंत्री ने गरीबों के साथ-साथ अमीरों को भी बैंकों के बाहर कतारों में खड़ा करके गरीब-अमीर का फर्क मिटा दिया है।

जिस किसी ने भी नोटबंदी का विरोध किया उसे सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा  ‘काले धन वाले’  का ठप्पा लगा दिया गया। क्योंकि कोई भी यह लेबल नहीं लगवाना चाहता था इसलिए राजनीतिक पाॢटयों ने खुल कर नोटबंदी के विरुद्ध बोलने के मामले में काफी झिझक दिखाई।

अभी तक उन्हें यह पता नहीं चल रहा कि प्रारंभिक दिनों में नोटबंदी का स्वागत करने के बाद जनता अपना गुस्सा किस प्रकार व्यक्त करेगी? सरकार यह दलीलें देती आ रही है कि लोगों की कठिनाइयां अल्पकालिक हैं और प्रधानमंत्री ने जनता से 50 दिन की अवधि मांगी थी। उन्होंने कहा था कि इस अवधि के बाद स्थितियां न केवल सामान्य हो जाएंगी बल्किपहले से भी बेहतर बन जाएंगी। बहुत से विश£ेषक भी अभी तक इस बारे में निश्चित नहीं हैं कि क्या ऐसा हो पाएगा।

सरकार ने भी नोटबंदी का जो भूत बोतल से निकाला है उसके बारे में निश्चय से कुछ नहीं पता कि इसके परिणाम क्या होंगे इसीलिए काली अर्थव्यवस्था पर अंकुश लगाने के लिए यह हर रोज नई घोषणाएं और आदेश जारी करती आ रही है। इससे केवल यही आभास मिलता है कि इस योजना पर पहले से अच्छी तरह ङ्क्षचतन-मनन नहीं किया गया था।

वैसे भी इस प्रकार की जटिल योजना का कार्यान्वयन तो बेहतरीन से बेहतरीन वक्त में भी कठिन होता है। जैसा कि हर किसी को विदित है काले धन के सृजक नए-नए तरीके ढूंढने में बहुत उस्ताद होते हैं। उन्होंने नौकरशाही और बैंकिंग तंत्र की त्रुटियां ढूंढने में भी देर नहीं लगाई और इसीलिए नोटबंदी की घोषणा को गच्चा देने के नए-नए तरीके ढूंढते आ रहे हैं। अब सरकार ने यह स्वीकार कर लिया है कि बंद की गई सारी करंसी बैंकों में आ गई है। इसलिए नोटबंदी से और कोई लाभ होने की संभावना नहीं।

सरकार ने अपने खातों में वॢजत नोट जमा करवाने वाले लोगों पर टैक्स लगाने के लिए आनन-फानन में लोकसभा  में संशोधित टैक्स विधेयक पारित करवा लिया है। यदि पूरी नकदी बैंकों में वापस आ रही है तो निश्चय ही काला धन जमा करवाया जा रहा है। जन-धन खातों और बैंकों में बहुत अधिक पैसा जमा हो रहा है। जिस हड़बड़ी में इस विधेयक को पारित करवाया गया है उसके मद्देनजर इसमें कई त्रुटियां रहना स्वाभाविक है और शायद ये तब सामने आएंगी जब अदालतों में इन्हें चुनौती मिलेगी।

इसके अलावा बैंकों में धन जमा करवाने वाले लोग हो सकता है इस  पैसे को पूर्व वर्ष की आय के रूप में घोषित करें जिसके लिए संशोधित रिटर्न फाइल की जा सकती है और  चालू वर्ष में भी जिसकी रिटर्न आगामी सितम्बर तक दायर हो सकती है। ऐसा करना पूरी तरह वैध होगा और यदि आयकर विभाग ने इसे स्वीकार न किया तो उसे अदालतों में चुनौती मिलेगी।

प्रधानमंत्री ने भाजपा विधायकों और सांसदों को अपने बैंक खातों के विवरण देने को कहा है ताकि उनके पास मौजूद पैसे के बारे में जानकारी मिल सके। प्रधानमंत्री ऐसा करके जनता को दिखाना चाहते हैं कि काले धन के विरुद्ध उनके अभियान में पारदॢशता बढ़ती जा रही है।

लेकिन  यह सुनिश्चित कैसे होगा कि बैंकों में प्रतिबंधित नोट जमा करवाने वालों या विधानकारों द्वारा सही तस्वीर प्रस्तुत की जा रही है? आखिर काली आमदन  पैदा करने वाले लोग कभी भी अधिकारियों को सही जानकारी नहीं देते।

चूंकि उच्च कीमत के अधिकतर करंसी नोट बैंकिंग तंत्र में वापस आ रहे हैं, ऐसे में सरकार को भी यह लगता है कि काली अर्थव्यवस्था की समाप्ति शायद नहीं हो रही है। इसी कारण एक नया दाव खेलते हुए सरकार ने ‘कैशलैस अर्थव्यवस्था’ का अभियान शुरू कर दिया जो काफी लाभदायक सिद्ध हुआ।

यह भी कहा जा रहा है कि काली अर्थव्यवस्था के विरुद्ध अभियान में नोटबंदी तो केवल  पहला कदम है और भविष्य में ऐसे कई अन्य कदम उठाए जाएंगे। यह समझने के लिए कि वास्तव में क्या चल रहा है, इन मामलों का सावधानीपूर्वक विश£ेषण करने की जरूरत है।

कारण राजनीतिक हैं न कि आॢथक लेकिन इनके आॢथक परिणामों को अल्पकालिक व दीर्घकालिक दोनों ही परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है क्योंकि ये राजनीतिक गणित को प्रभावित करने की भी सामथ्र्य रखते हैं।                     

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