जीते कोई भी : पाक में सेना का दबदबा कायम रहेगा

Edited By ,Updated: 09 Feb, 2024 05:21 AM

whoever wins army s dominance will continue in pakistan

पाकिस्तान सेना को अलविदा कहने के समय पूर्व सेना प्रमुख जनरल जावेद कमर बाजवा ने 22 नवम्बर 2022 को एक सार्वजनिक बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि सेना राजनीति में दखलअंदाजी बंद करेगी, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के नापसंद और जनरल बाजवा के...

पाकिस्तान सेना को अलविदा कहने के समय पूर्व सेना प्रमुख जनरल जावेद कमर बाजवा ने 22 नवम्बर 2022 को एक सार्वजनिक बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि सेना राजनीति में दखलअंदाजी बंद करेगी, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के नापसंद और जनरल बाजवा के चहेते लैफ्टिनैंट जनरल आसीम मुनीर को 24 नवम्बर को पाकिस्तान के 30वें प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने देश का 17वां सेना प्रमुख नियुक्त किया। 

सेना प्रमुख मुनीर ने अब जबकि पाकिस्तान में 8 फरवरी को सम्पन्न आम चुनाव से पहले विशेष तौर पर विद्यार्थी वर्ग से मुलाकात करते समय वोटों के लिए खरीद-फरोख्त जैसे धंधे को अपराध घोषित करते हुए कहा था कि सेना लोकतंत्र में विश्वास रखती है। उन्होंने यह भी कहा कि सेना उस समय तक विधान पालिका और कार्य पालिका में दखल नहीं देती जब तक कि हालात काबू से बाहर न हो जाएं। इन चुनावों में बेशक पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ या कोई अन्य जीत हासिल करे मगर पाकिस्तान के जरनैलों का दबदबा कायम ही रहेगा। इन सब बातों को जानने के लिए पूर्व की बातों पर नजर दौड़ाना जरूरी है। 

पाकिस्तान सेना के पहले कत्र्ता-धर्ता जनरल अयूब खान ने 17 जनवरी 1951 को सेना की कमान संभाली और वह लगभग 8 साल सेना प्रमुख के पद पर रहे। अयूब खान ने हमेशा ही इस बात की वकालत की थी कि सेना को सियासत से दूर रखा जाए मगर जब 24 अक्तूबर 1954 को देश की राष्ट्रीय असैंबली भंग कर दी गई तो अयूब खान ने रक्षामंत्री का पद भी मंजूर कर लिया मगर सेना प्रमुख का पद नहीं छोड़ा। ऐसा कुछ ही बाद में जनरल परवेज मुशर्रफ ने किया। 

राष्ट्रपति सिकंदर मिर्जा ने 7 अक्तूबर 1958 को राजनीतिक पार्टियों, संसद, राज्य सरकारों और संविधान को भंग कर पाकिस्तान में मार्शल लॉ लगा दिया। और अयूब खान को मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर दिया। 24 अक्तूबर 1958 को अयूब खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने और सिकंदर मिर्जा को देश निकाला दे दिया गया। जनरल याहिया खान ने 26 मार्च 1969 को देश की बागडोर संभाली और एक बार फिर से पाकिस्तान में मार्शल लॉ लगा दिया। 

जुल्फिकार अली भुट्टो ने थोड़े समय के लिए 20 दिसम्बर 1971 को लोकतंत्र की बहाली तो की मगर भुट्टो को 4 अप्रैल 1979 को फांसी दे दी गई। कुछ इस तरह ही जनरल वहीद काकर ने नवाज शरीफ के साथ किया और फिर मुशर्रफ ने भी नवाज शरीफ को गद्दी से उतार दिया। जनरल बाजवा के सहयोग से इमरान खान देश के प्रधानमंत्री बने। जब लैफ्टिनैंट जनरल आसीम मुनीर की बतौर आई.एस.आई. की कारगुजारी प्रधानमंत्री को रास न आई तो उसने 2019 में मुनीर को एक ओर कर दिया। फिर बतौर सेना प्रमुख मुनीर ने इस बात का बदला लेना था। जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ दर्ज 170 मामलों में एक हफ्ते के अंदर अदालतों ने तीन बार सजा सुनाई। 

पहले 30 जनवरी को गुप्त दस्तावेज लीक होने के मामले में 10 साल, फिर अगले दिन भ्रष्टाचार से संबंधित तोशाखाना मामले में इमरान और उसकी पत्नी बुशरा को 14-14 वर्ष की सजा और अब 3 फरवरी को गैर-इस्लामी निकाह होने पर दोनों को 7-7 साल की सजा सुनाई गई। इसके साथ ही इमरान और इसके कई साथियों को चुनाव लडऩे से अयोग्य करार दे दिया गया। इमरान का चुनाव चिन्ह (बल्ला) भी वापस ले लिया गया। यह सब कुछ लोकतंत्र के रक्षक कहे जाने वाले सेना प्रमुख की मर्जी के बगैर कैसे संभव हो सकता है? 

बाज वाली नजर : पाकिस्तानी सेना का दस्तूर ‘जो अड़ा, सो झड़ा’ बरकरार रहेगा। कर्जे के बोझ के नीचे दबा पाकिस्तान इस समय आॢथक, राजनीतिक, संवैधानिक, न्यायिक, कार्यपालिका, सामाजिक और खाद्यान्न संकट से गुजर रहा है। बेतहाशा महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गुरबत और अल्पसंख्यक समुदायों पर हर किस्म के जुल्म ढहाए जा रहे हैं। पाकिस्तान और ईरान के दरमियान आतंकी हमले और ब्लूचिस्तान में हो रहे धमाकों की स्थिति आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित कर रही है। सबके चहेते क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान का घेरा काफी विशाल है और सेना में भी कुछ लोग उसके अभी भी प्रशंसक हैं। मगर जब उसका बल्ला ही हाथों से खिसक गया तो जेल में बंद खिलाड़ी कैसे खेलेगा? 

इन गंभीर चुनौतियों के समक्ष पाकिस्तान को किसी ऐसे मजबूत नेता की जरूरत है। लोगों की नजरें मियां नवाज शरीफ पर टिकी हुई हैं। वैसे भी वह भारत के साथ अच्छे संबंध बनाने के चाहवान हैं। मगर बाजवा ने उसकी पेश न चलने दी। फिर भी दोनों देशों के दरमियान पिछले वर्ष 25 फरवरी को युद्ध विराम लागू करने की योजना और गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब कोरीडोर का निर्माण बाजवा की ही देन थी। जनरल मुनीर के कारण तो आतंकी सरगर्मियां बढ़ी हैं। इस कारण भारत सचेत ही रहे।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)
 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!