क्या बरकरार रहेगी नेहरू और कांग्रेस की विरासत

Edited By ,Updated: 12 May, 2019 11:53 PM

will the continuation of nehru and congress legacy

1948 में हिन्दू कोड बिल को पेश करते समय बी.आर. अम्बेदकर ने कहा था कि यह बिल मुख्य तौर पर उत्तराधिकार के मसले को हल करेगा। हिन्दू उत्तराधिकार कानून दो परम्पराओं से आया है जिन्हें मित्ताक्षरा और दयाभाग कहा जाता है। मित्ताक्षरा के अनुसार किसी हिन्दू...

1948 में हिन्दू कोड बिल को पेश करते समय बी.आर. अम्बेदकर ने कहा था कि यह बिल मुख्य तौर पर उत्तराधिकार के मसले को हल करेगा। हिन्दू उत्तराधिकार कानून दो परम्पराओं से आया है जिन्हें मित्ताक्षरा और दयाभाग कहा जाता है। मित्ताक्षरा के अनुसार किसी हिन्दू पुरुष की सम्पत्ति केवल उसकी सम्पत्ति नहीं होती। यह संयुक्त तौर पर पिता, पुत्र, पौत्र, पड़पौत्र की सम्पत्ति होती है। इन चारों का सम्पत्ति में जन्म सिद्ध अधिकार होता है। जब इन चारों में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है  तो उसका भाग उसके उत्तराधिकारियों को नहीं मिलता बल्कि शेष बचे तीन लोगों को मिलता है। यह कानून संयुक्त परिवार की परम्परा से पैदा हुआ है तथा यह उस समय से चलता आ रहा है जब मुख्य सम्पत्ति भूमि हुआ करती थी। जब कोई परिवार छोटा हो जाता है तो इस तरह की सम्पत्ति को बांटना मुश्किल होता है लेकिन  क्योंकि सम्पत्ति का संयुक्त स्वामित्व होता है, चारों में से कोई भी बंटवारे की मांग कर सकता है।

क्या है दयाभाग
दयाभाग में किसी हिन्दू पुरुष की सम्पत्ति उसकी व्यक्तिगत सम्पत्ति होती थी और उसके पास यह पूर्ण अधिकार होता था कि वह अपनी मर्जी से सम्पत्ति का प्रबंधन कर सकता है, इसका अर्थ यह है कि यदि उसके पिता और दादा तथा उसका बेटा जीवित हैं तो वे उसकी मृत्यु पर अपने आप उसकी सम्पत्ति के मालिक नहीं बन सकते।

अम्बेदकर चाहते थे कि दयाभाग सिस्टम को पूरे देशभर में लागू किया जाए। अम्बेदकर कुछ अन्य बदलाव भी लागू करना चाहते थे जो सभी परिवार की महिलाओं के उत्तराधिकार संबंधी अधिकारों से संबंधित थे। पाठक जानते ही होंगे कि यह बिल पास नहीं हुआ था और अम्बेदकर ने त्यागपत्र दे दिया था। यह इसलिए पास नहीं हो सका क्योंकि संविधान सभा परम्परावादी थी। इसके सदस्य  अम्बेदकर के इस प्रस्ताव से सहमत नहीं थे कि मित्ताक्षरा सिस्टम को समाप्त कर दिया जाए और दयाभाग को पूरे देश में लागू कर दिया जाए; इन लोगों को सबसे ज्यादा समस्या महिलाओं को सम्पत्ति में अधिक अधिकार मिलने को लेकर थी। यह  उनको स्वीकार्य नहीं था। उनकी आपत्तियां ये थीं कि महिलाओं को दहेज दिया जाता था; दूसरे शादी करके दूसरे घर में जाने पर उन्हें उस घर की सम्पत्ति भी मिल जाती थी; और यदि महिलाओं को ये अधिकार दे दिए जाएंगे तो लोगों के पास भूमि बहुत कम रह जाएगी क्योंकि इसके टुकड़े हो जाएंगे।

1948 में इन मूलभूत मुद्दों पर चर्चा करने का कारण यह था कि पिछले 90 वर्षों में धार्मिक रीति-रिवाजों में बहुत कम सुधार हुए थे। 1857 में ईस्ट इंडिया कम्पनी से ब्रिटिश महारानी द्वारा सत्ता अपने हाथ में लेने के बाद अंग्रेज सुधारवादी नहीं थे। 1857 के विद्रोह का एक कारण (सर सैयद की एक किताब के अनुसार) यह था कि भारतीय ब्रिटिश शासकों द्वारा उनकी परम्पराओं में हस्तक्षेप से  नाराज थे। 1829 में सती प्रथा खत्म कर दी गई थी और 1850 में धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों की सम्पत्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए एक विधेयक पेश किया गया था। यह वह समय था जब ब्रिटेन और अमरीका में शक्तिशाली दासता विरोधी आंदोलन चल रहा था और सत्ताधारी लोग यह महसूस कर रहे थे कि उन्हें अपने अधिकारों का प्रयोग करके पारम्परिक संस्कृति की जगह आधुनिकता को लागू करना चाहिए।

सुधारों से पीछे हटे अंग्रेज
1857 की क्रांति, जिसमें लाखों लोग मारे गए थे, के बाद अंग्रेजों ने निर्णय लिया कि वे हिन्दुओं और मुसलमानों के सुधार का काम उन पर ही छोड़ देंगे। वे विवादास्पद मसलों, उन बातों जो भारत पर शासन करने और अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने में विघ्न डालती थीं, में नहीं उलझना चाहते थे। कांग्रेस द्वारा छुआछूत को हमारे संविधान के आर्टीकल 17 के तहत समाप्त किया गया। उससे पहले 1920 के दशक में देशभर में हिन्दू  दलितों को मंदिर में प्रवेश करने से बलपूर्वक रोक रहे थे। इसी तरह के रुढि़वाद के कारण अम्बेदकर के उत्तराधिकार सुधार पास नहीं हो सके। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह कांग्रेस की संविधान सभा थी। उस समय भाजपा अस्तित्व में नहीं आई थी।

यहां तक कि नेहरू सरकार के समय में भी हिन्दुत्व की आवाज का प्रतिनिधित्व करने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे (जिन्होंने जनसंघ की स्थापना की, जो बाद में भाजपा बनी)  जो सरकार में शामिल होने के लिए कांग्रेसी बने। हमें यह मानना होगा कि इसके सांसदों में रूढि़वादिता के बावजूद कांग्रेस इस सुधार को पास करने में कामयाब रही। ऐसा इसलिए संभव हो सका क्योंकि यह एक उदारवादी विचारधारा वाली पार्टी थी जिसका नेतृत्व नेहरू जैसा महान व्यक्ति कर रहा था।

दक्षिण एशिया में केवल भारत ही ऐसा देश है, जिसका संविधान धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान इस्लामिक देश हैं जहां कोई भी गैर मुसलमान व्यक्ति किसी बड़े पद पर आसीन नहीं हो सकता। मालदीव भी इस्लामिक राष्ट्र है। श्रीलंका का संविधान बौद्ध मत को प्राथमिकता देता है, बंगलादेश का संविधान बिस्मिल्लाह उर रहमान इर रहीम से शुरू होता है। भूटान की सरकार और धर्म दोनों बौद्ध राजा द्वारा नेतृत्व किए जाते हैं। 2008 तक नेपाल एक हिन्दू राष्ट्र था जहां कार्यकारी शक्तियां एक क्षत्रिय राजा के पास होती थीं जैसा कि मनु स्मृति में वर्णित है।

केवल भारत ही संवैधानिक तौर पर धर्मनिरपेक्ष रहा है। क्यों? यह इसलिए नहीं कि भारत हिन्दू बहुल देश है। नेपाल भी हिन्दू बहुल देश है। अंग्रेजों के यहां से जाने पर भारतीयों को किसी ने यह नहीं कहा कि हम हिन्दू राष्ट्र चाहते हैं अथवा हम अपने संविधान में धार्मिक पहलुओं को शामिल करना चाहते हैं। केवल कांग्रेस के कारण हमारा देश धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र बना। ऐसे समय में जबकि दूसरी राजनीतिक शक्ति अधिक प्रभावशाली है, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नेहरू और कांग्रेस की विरासत बरकरार रहती है अथवा हम नई दिशा में आगे बढ़ते हैं।  —आकार पटेल

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!