सैनिकों का ‘उत्साह’ बढ़ाने वाली विश्व की पहली घटना

Edited By ,Updated: 26 Jul, 2020 03:02 AM

world s first event to increase soldiers  enthusiasm

2 जुलाई,1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी जी का संघर्ष के दौरान ही जवानों की पीठ थपथपाने के लिए सीमा पर जाने का और सैनिकों का उत्साह बढ़ाने का समाचार आया तो सारा देश रोमांचित

2 जुलाई,1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी जी का संघर्ष के दौरान ही जवानों की पीठ थपथपाने के लिए सीमा पर जाने का और सैनिकों का उत्साह बढ़ाने का समाचार आया तो सारा देश रोमांचित हो उठा, क्योंकि इस तरह के संघर्ष के दौरान सीमा पर जा कर सैनिकों का उत्साह बढ़ाने वाली यह विश्व की पहली घटना थी। 

नरेन्द्र मोदी उस समय पार्टी के राष्ट्रीय महामन्त्री और हिमाचल के प्रभारी थे, उनसे चर्चा हुई और यह निर्णय लिया कि हिमाचल के भी बहुत सारे सैनिक सीमा पर तैनात थे और कई शहीद हो रहे थे इसलिए हमें भी कारगिल जाना चाहिए। हमने सैनिकों के लिए खाद्य सामग्री (पका-पकाया भोजन), तौलिए, बनियानें व अन्त:वस्त्र इत्यादि लिए और 4 जुलाई को हम (नरेन्द्र मोदी, विधानसभा अध्यक्ष गुलाब सिंह और मैं) हैलीकॉप्टर से शिमला से श्रीनगर पहुंच गए। रात्रि भोज पर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री, डा. फारुक अब्दुल्ला काफी देर तक बातें करते रहे और वह इस बात से प्रसन्न थे कि भारत के किसी अन्य प्रदेश का मुख्यमंत्री भी सीमा पर युद्ध के दौरान जा रहा था। 

अगले दिन (5 जुलाई) प्रात: ही जब हम हैलीपैड से कारगिल की तरफ रवाना होने लगे तो डा. फारुक अब्दुल्ला फिर आ गए और हमें बताया कि अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का प्रधानमंत्री वाजपेयी जी को फोन आया है और उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ मेरे पास पहुंच  गए हैं, आप भी युद्धविराम की घोषणा कर दो और अमरीका आ जाआे, कोई रास्ता निकालते हैं परन्तु प्रधानमन्त्री वाजपेयी जी ने उन्हें क्या उत्तर दिया इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी। 

हम श्रीनगर से कारगिल के लिए उड़े और सारे रास्ते में यही शंका बनी रही कि कहीं पंडित नेहरू की तरह वाजपेयी जी भी युद्ध विराम की घोषणा करके समझौते के चक्कर में न उलझ जाएं। हम कारगिल में उतरे तो पाकिस्तान की तरफ से गोलाबारी हो रही थी, ब्रिगेडियर नन्द्राजोग हमें सारी स्थिति समझा रहे थे। हमने खाने का सामान और कपड़े आदि सैनिकों के हवाले कर दिए ताकि सीमा पर जवानों तक भी यह पहुंच सके। 

वहां पर भूमिगत एक बहुत बड़ा मोर्चा बना हुआ था जिसमें सैंकड़ों लोग बैठ सकते थे, माइक लगा हुआ था, मुझे बोलने के लिए कहा गया, जब मैं संबोधित कर रहा था तभी एक अधिकारी बहुत प्रसन्न मुद्रा में आया और कहा कि प्रधानमंत्री ने उत्तर दे दिया। हम भी उत्तर जानने के लिए उत्सुक थे। अधिकारी ने बताया कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि जब तक एक भी घुसपैठिया कारगिल में है तब तक न युद्ध विराम होगा और न ही मैं देश छोड़कर कहीं जाऊंगा। यह सुनते ही अटल बिहारी वाजपेयी जिन्दाबाद के नारे लगने शुरू हो गए। हमें बताया गया कि सेना के अधिकारियों और कर्मचारियों में यह उत्साह इसलिए है कि एक एेसा प्रधानमंत्री देश को मिला है जो वह करता है जो सेना चाहती है। सेना परमाणु बम चाहती थी तो प्रधानमंत्री ने देश को आणविक शक्ति बना दिया और इस बार पाकिस्तान से हिसाब चुकता करना चाहते थे वही बात प्रधानमंत्री ने कह दी। 

वापसी पर डा. अब्दुल्ला के सुझाव अनुसार हम बाबा अमरनाथ के दर्शन करने गए तो उसी समय युद्ध मोर्चे से वापस आ रहे जवान भी वहां पहुंचे। मोदी जी ने एक जवान से उसकी गन (बंदूक) ली और बड़ी गम्भीरता से उसका निरीक्षण किया। सायंकाल श्रीनगर पहुंचकर हम अस्पताल में घायल सैनिकों से मिलने गए, उन्हें भी सामान बांटा, एक घायल सैनिक को जब हमने सामान देना चाहा तो उसने हाथ बढ़ाकर पकड़ा नहीं, हम उसके पास के टेबल पर सामान रखकर यह सोचते हुए आगे बढ़ ही रहे थे कि यह शायद किसी बात पर नाराज है, तभी एक अधिकारी तेजी से आया और उसने हमें बताया कि माइन ब्लास्ट में उस सैनिक के दोनों हाथ और दोनों पैर उड़ गए थे ।

हम फिर वापस मुड़े औेर उसके सिर पर हाथ रखकर पूछा, ‘‘बहुत दर्द होता होगा’’, उसने उत्तर दिया ‘‘पहले होता था, कल शाम से नहीं हो रहा है’’ । हमने पूछा क्या कोई दर्द निवारक दवाई या टीका (इंजैक्शन) लगा? उसने कहा ‘‘नहीं, कल शाम (4 जुलाई को) टाइगर हिल वापस ले लिया, मेरा दर्द खत्म हो गया,’’ यह शब्द सुनकर हम सब भावुक हो गए। घायल सैनिकों को सामग्री देने हम ऊधमपुर, कसौली, चंडीमन्दिर और दिल्ली के अस्पतालों तक गए हर जगह वीर सैनिकों की वीरता की बातें सुनने का मिलीं ।

हिमाचल के 52 जवान शहीद 
हुए थे, मैं सभी के घर गया और हर घर में दिल को छू लेने वाली बातें सुनीं, कुछ एक आप से सांझा कर रहा हूं :-
पालमपुर में बैठे हम अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा जी के पार्थिव शरीर का इंतजार कर रहे थे, कारगिल युद्ध के प्रथम शहीद कै. सौरभ कालिया की माता जी और कै. विक्रम बत्रा की माता जी साथ -साथ बैठीं थीं। श्रीमती कालिया साथ बैठी श्रीमती बत्रा को ढांढस बंधा रही थीं। 

हमीरपुर जिले के बमसन चुनाव क्षेत्र के नौ लोग शहीद हुए थे। बगलू गांव के शहीद राज कुमार के घर जा रहा था। उसके बुजुर्ग पिता को कैसे ढांढस दूंगा? पहाड़ी चढ़कर उनके आंगन में पहुंचा तो गले लगते हुए हवलदार खजान सिंह ने कहा, ‘‘धूमल साहब, बेटे तो पैदा ही इसलिए किए जाते हैं, पढ़ें, लिखें और जवान होकर फौज में भर्ती होकर देश की रक्षा करें’’।

दोनों पोतों को मुझसे मिलाते हुए कहा ये भी पढ़कर फौज में भर्ती होकर देश की सेवा करेंगे। मुझे कहा कि दिल्ली जाएंगे तो वाजपेयी जी को कहना कि जवानों की कमी हो तो 82 वर्ष का हवलदार खजान सिंह आज भी हथियार उठाकर देश की रक्षा के लिए लडऩे के लिए तैयार है। आज कारगिल विजय दिवस के अवसर पर देश इन शहीदों की शहादतको और परिवार वालों के जज्बे को सलाम करता है, वंदन-अभिनन्दन करता है।-प्रेम कुमार धूमल(पूर्व मुख्यमंत्री, हि.प्र)

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