‘सड़कों पर घायल होता- भारत का आर्थिक विकास’

Edited By Updated: 12 Jan, 2021 05:18 AM

wounded on the roads  india s economic development

आर्थिक विकास में सड़क परिवहन का महत्वपूर्ण योगदान होता है तथा यह राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाओं का काम करती है। किसी भी देश में उत्पादित होने वाली वस्तुओं और सेवाओं तथा उनके एक कोने से दूसरे कोने तक आगमन  पर

आर्थिक विकास में सड़क परिवहन का महत्वपूर्ण योगदान होता है तथा यह राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाओं का काम करती है। किसी भी देश में उत्पादित होने वाली वस्तुओं और सेवाओं तथा उनके एक कोने से दूसरे कोने तक आगमन  पर उस देश के विकास की दर भी निर्भर करती है। 

भारत में सड़कों का जाल आज दुनिया के विशाल सड़क नैटवर्क में से एक है तथा भारत का कोई भी कोना बिना किसी सड़क संपर्क के नहीं है। मगर बहुत से ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से सड़कों के निर्माण पर लगाया जाने वाला धन सड़क निर्माताओं की घूसखोरी या फिर उपभोक्ताओं की लापरवाही व निष्क्रियता के कारण नष्ट हो जाता है जोकि भारत के आर्थिक विकास को ग्रस्त करता है। राष्ट्रीय उच्चमार्गों व राज्य मार्गों को छोड़ कर प्रधानमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत बनने वाली कई ऐसी सड़कें हैं जो राजनीतिक इच्छा पर बनाई जाती हैं तथा कई ऐसे क्षेत्र पिछड़ जाते हैं जहां पर सड़कें नहीं होतीं या फिर उन पर पुल नहीं होते जिसका सीधा प्रभाव देश के आर्थिक विकास पर पड़ता है। 

राजनीतिज्ञ इन संपर्क सड़कों के निर्माण का कार्य अफसरशाहों (लोक निर्माण विभाग) या किसी अन्य विभाग के माध्यम से अपने चहेते गुर्गों से करवाते हैं तथा सड़क पर लगाए जाने वाली सामग्री जैसा कि रोड़ी, बजरी, सीमैंट, बिटुमन इत्यादि की मात्रा व गुणवत्ता से खिलवाड़ किया जाता है। निर्माण की गई पुलियां कुछ ही सालों में गिर जाती हैं तथा डंगे ढह जाते हैं। सड़कों पर पहाडिय़ों से मलबा गिरता है तथा सरकार को बहुत बड़ी क्षति का सामना करना पड़ता है। एक-दो साल के बाद ही चमचमाती सड़कें टूटनी व उखड़ने लगती हैं। 

छत्तीसगढ़ के जनजातीय क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण में जब धांधलियां होने लगीं तो वहां के लोगों ने सड़क सुरक्षा में लगे पुलिस जवानों की घात लगाकर निर्मम हत्याएं करनी शुरू कर दीं। जवानों के खून से सनी सड़कों पर भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी का घृणित खेल बदस्तूर जारी है। एक अनुमान के अनुसार सड़कों के निर्माण में लगे लोग क्लर्क से लेकर चीफ इंजीनियर तक 30-35 प्रतिशत की धनराशि को घूसखोरी के रूप में हड़प जाते हैं। 

विडम्बना यह है कि इनकी कोई व्यक्ति शिकायत भी नहीं करता क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से इस काले धंधे से कोई भी व्यक्ति प्रभावित नहीं होता परंतु आहत तो पूरी अर्थव्यवस्था होती है जब आम जनमानस की जेबों से दिया गया टैक्स इन घूसखोरों द्वारा हजम कर लिया जाता है। इस धंधे में लगे नौकरशाह व अफसरशाह अपना काला धन अपने खातों में न रख कर बेनामी सम्पत्तियां खरीद कर बड़े-बड़े शहरों में महल-बंगले बना लेते हैं। इन लोगों की पीठ पर राजनीतिज्ञों का भी पूरा हाथ होता है क्योंकि उनके मुंह पर भी ये लोग कालिख पोतते रहते हैं। ये लोग पुलिस की पकड़ में भी बहुत कम आते हैं क्योंकि पुलिस का विजीलैंस विभाग इतना पंगु बना दिया होता है कि न तो उनके पास किसी के टैलीफोन टैप करने की सुविधा होती है और न ही पर्याप्त मात्रा में स्टाफ होता है तथा औपचारिकताओं के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हो पाता। 

दुर्घटनाओं की बात करें तो एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2019 में कुल 4,37,396 सड़क दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 1,54,372 लोगों की मौत हुई तथा 4,39,362 लोग जख्मी हुए। यह ठीक है कि बहुत-सी दुर्घटनाएं मानवीय त्रुटियों के कारणों से होती हैं मगर दूसरा बड़ा कारण यह भी रहता है कि सड़कों की न तो गुणवत्ता अच्छी होती है और न ही उनका रखरखाव। इसके अतिरिक्त वांछित मात्रा में पर्याप्त संकेत बोर्ड भी नहीं लगाए होते व सड़कों पर लोगों द्वारा खुले छोड़े गए गाय-पशु भी दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। शराब पीकर, तेज रफ्तारी व लापरवाही से गाड़ी चलाना तथा अन्य नियमों की अवहेलना करना तो आम बात है तथा पुलिस भी तो कहां-कहां तैनात की जाए जिससे इन बिगड़ैल चालकों पर शिकंजाकसा जा सके।

इसके अतिरिक्त घायल हुए व्यक्तियों को तुरंत प्राथमिक सहायता नहीं मिल पाती जिसके परिणामस्वरूप उनकी होने वाली उत्पादकता नष्ट हो जाती है। सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले या गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त होने वाले लोगों की औसत आयु 15-64 वर्ष के बीच होती है जिन पर किसी भी देश की उत्पादकता और विकास दर का नकारात्मक प्रभाव पड़ता ही है। दुर्घटनाओं के बढ़ने के लिए पुलिस को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है मगर जिन लोगों ने सड़कों की गुणवत्ता से खिलवाड़ किया होता है उन्हें कभी भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता जोकि एक बहुत बड़ी त्रासदी है। कुछ बिगड़ैल व रसूखदार ऐसे लोग भी हैं जो सड़कों को गंदा करना या फिर सड़कों पर लगे विभिन्न प्रकार के गैजेट को क्षतिग्रस्त करने में अपनी शान समझते हैं। 

हाल ही में नववर्ष की पूर्व संध्या पर अटल टनल (मनाली) जोकि लेह-लद्दाख को जोड़ती है तथा जिसको बनाने के लिए करोड़ों रुपए लगाए गए हैं तथा जो दूरदराज में फंसे हुए लोगों के लिए एक जीवन रेखा है तथा जो हमारे देश के बहादुर सैनिकों की गति को सुगम व सरल बनाने के लिए बनाई गई है, का सैलानियों ने जो भद्दा मजाक किया उसका वर्णन करना शर्मनाक है। वास्तव में भारतीयों की मानसिकता ही ऐसी है कि वे नियमों की अवहेलना करना अपना बड़प्पन समझते हैं तथा सड़कों की स्वच्छता व दूसरों को होने वाली कठिनाइयों से उनके स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ता।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड)
 

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