वीर-वीरांगानाओं के जीवन बलिदान से अनजान युवा पीढ़ी

Edited By ,Updated: 04 Nov, 2021 04:03 AM

young generation unaware of the life sacrifice of heroic heroes

हमारा भारत देश प्राचीन काल से ही शौर्य, बलिदान, पराक्रम, साहस तथा ज्ञान के लिए विश्व मंच पर एक आदर्श पहचान रखता आया है। यहां साहस और बलिदान की गाथाओं में हर गांव व घर-घर का अंश विद्यमान

हमारा भारत देश प्राचीन काल से ही शौर्य, बलिदान, पराक्रम, साहस तथा ज्ञान के लिए विश्व मंच पर एक आदर्श पहचान रखता आया है। यहां साहस और बलिदान की गाथाओं में हर गांव व घर-घर का अंश विद्यमान है।

देश स्वतंत्रता के 75 वर्ष ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के रूप में मना रहा है। यह आजादी हमें यूं ही नहीं मिली। न जाने कितने देशभक्त फांसी के फंदे पर झूले थे और न जाने कितनों ने गोली खाई थी, तब जाकर हमने यह आजादी पाई थी। देश उन क्रांतिवीरों का ऋणी है और रहेगा, जिन्होंने देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। परंतु दुख है कि इतिहास में कुछ खास लोगों को ही जगह मिली, कई बलिदानों को नजरअंदाज कर दिया गया। 

विडंबना यह है कि आज अधिकांश लोग ऐसे हैं जो देश के वीरों और वीरांगनाओं के जीवन संघर्ष व बलिदान से अनजान हैं। आखिर ऐसा क्या है कि जिनके संघर्षों से हमने यह स्वतंत्र भारत पाया है, उनको सब भूलते से जा रहे हैं।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जहां पुरुषों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, वहीं दूसरी तरफ महिलाएं भी पीछे नहीं रहीं। रानी लक्ष्मीबाई और रानी चेनम्मा जैसी वीरांगनाओं ने अंग्रेजों से लड़ते हुए अपनी जान दे दी। ऐसी अनेक वीरांगनाएं हैं जिनसे दुश्मन थर-थर कांपते थे। ऐसी अनेक गाथाएं हमारे बुजुर्गों से हमें सुनने को मिलती हैं, जिन्हें सुनकर सीना चौड़ा हो जाता है, रौंगटे खड़े हो जाते हैं। साहस की ऐसी गाथाएं सुनकर मन में बरबस ही यह विचार कौंध जाता है कि उन्होंने कैसा संघर्ष किया होगा, मगर आज हर कोई इनके बारे में जानना नहीं चाहता, सब केवल और केवल सोशल मीडिया और अपने स्मार्टफोन में व्यस्त हैं। सारा दिन स्क्रीन पर बिता देते हैं, मगर कभी इन वीर-वीरांगनाओं के बारे में नहीं जानेंगे। दुख होता है कि किस ओर जा रहा है हमारा समाज व भविष्य। 

भारत की स्वतंत्रता के लिए जिन वीरों ने अपनी जान तक न्यौछावर कर दी, उनमें से अनेकों के नाम उन्हें ज्ञात नहीं हैं। आज के स्वतंत्र भारत के लोगों को जिन वीरों के नाम ज्ञात भी हैं, लगता है शायद वे भी उन्हें भूलते जा रहे हैं। उनके आदर्श से आज की युवा पीढ़ी अनजान है। इन विभूतियों के नाम केवल इतिहास के पन्नों तक सीमित होकर रह गए हैं। आज की वास्तविकता सबके सामने है। किसी बलिदानी के विषय में कोई जानकारी नहीं, मात्र स्मार्ट कहलाए जा रहे हैं। मगर उस स्मार्टनैस का आधार खोखला-सा प्रतीत होता है। स्मार्ट लोग नहीं, मगर हम सबके मोबाइल हैं, इस वास्तविकता को लोगों को स्वीकारना होगा। 

अपने वीर-वीरांगनाओं के विषय में जानना आवश्यक है इसलिए जरूरी है कि सरकार द्वारा सैमीनारों के माध्यम से लोगों, खासकर युवाओं में वीरगाथाओं से संबंधित पुस्तकों में रुचि पैदा की जाए। पंचायत व ग्रामीण स्तर पर युवाओं को वीर साहित्य की किताबें उपलब्ध करवाई जाएं, साथ ही शिक्षण पाठ्यक्रम में भी विषय के रूप में इन वीर गाथाओं को इतिहास व सामाजिक विषयों के अंतर्गत शामिल किया जाए। तभी देश के युवा इन वीर शख्सियतों के बारे में जान सकेंगे, अन्यथा वे किसी और ही दिशा में जा रहे हैं। रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, राजा राममोहन रॉय इत्यादि ऐसे नाम हैं, जिन्हेें सब जानते हैं, मगर  कुछ ऐसे बलिदानी हैं जिन्हें अनजान कर दिया गया, उनके बारे में भी जानने की आवश्यकता है। 

रानी चेनम्मा, झलकारी बाई, दुर्गावती बोहरा, कनकलता बरुआ, राजगुरु, सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद, लाला लाजपत राय, दादा भाई नौरोजी, तांत्या टोपे, मंगल पांडे, ऊधम सिंह व इनके अलावा भी कई ऐसे नाम हैं जिन्हें आज नाम से भी कोई नहीं जानता, काम का तो विषय ही बाद का है। आज के समाज को इस विषय पर गहन चिंतन की आवश्यकता है कि जिन्होंने हमारे लिए अपने प्राणों की कुर्बानी दी, हम उन्हें यूं ही भुलाए नहीं रख सकते। उनके बारे में सभी को पता होना चाहिए तथा उनके सम्मान में केवल जयंती या पुण्यतिथि के अवसर पर अवकाश मना कर ही खुश नहीं होना है, बल्कि उनके बलिदान से शिक्षा लेने की आवश्यकता है।-प्रो. मनोज डोगरा 
 

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