कृत्रिम हीरे ने छीनी सूरत के नेचुरल हीरों की चमक

Edited By jyoti choudhary,Updated: 06 Nov, 2023 01:26 PM

artificial diamonds snatched away the shine of surat s natural diamonds

सूरत के उपनगर कटारगाम में हीरा तराशने के कई कारखाने हैं। वहीं एक गली में जूनागढ़ के 24 वर्षीय अरुण चौटालिया (मूल नाम नहीं दिया गया है) पीपल के पेड़ के नीचे सोच में खोए बैठे थे। वह दीवाली पर घर जाने की सोच रहे थे। लेकिन इस साल उनकी दीवाली फीकी रहेगी...

नई दिल्लीः सूरत के उपनगर कटारगाम में हीरा तराशने के कई कारखाने हैं। वहीं एक गली में जूनागढ़ के 24 वर्षीय अरुण चौटालिया (मूल नाम नहीं दिया गया है) पीपल के पेड़ के नीचे सोच में खोए बैठे थे। वह दीवाली पर घर जाने की सोच रहे थे लेकिन इस साल उनकी दीवाली फीकी रहेगी क्योंकि इस बार त्योहार पर घर ले जाने के लिए उनके पास पैसे कम हैं। यह भी पक्का नहीं है कि लौटने पर उन्हें दोबारा काम मिल ही जाएगा।

चौटालिया के पास पहले खूब काम रहता था और वह हर महीने करीब 25,000 रुपए कमा लेते थे। मगर पिछले तीन महीने से उतना काम नहीं रह गया है और बमुश्किल 8 से 10 हजार रुपए महीना ही मिल रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘पहले एक-एक पाली में 12 घंटे तक काम मिलता था लेकिन हीरातराशी का काम घट जाने से दिन भर में 6 घंटे का ही काम मिल रहा है। अक्टूबर में मैं सिर्फ 6,000 रुपए कमा पाया। मुझे दीवाली पर घर जाना है और मेरे हाथ में गिने-चुने पैसे ही बचे हैं।’

तीन अन्य कारीगरों के साथ 5,000 रुपए महीने का किराया देकर जिस छोटी सी खोली में वह रहते थे, उसे भी खाली कर दिया है क्योंकि कारखाने के मालिक ने यह नहीं बताया कि त्योहार से लौटने पर उन्हें काम पर रखेंगे या नहीं।

डायमंड वर्कर्स यूनियन, गुजरात के अध्यक्ष रमेश जिलारिया ने कहा कि करीब 500 छोटी-मझोली हीरा इकाइयों ने अपने कारीगरों को दीवाली से पहले ही घर जाने के लिए कह दिया है। हीरा कारीगार का मेहनताना उनके काम की मात्रा पर निर्भर करता है और कुछ हजार से लेकर कुछ लाख रुपए तक हो सकता है। छुट्टी पर जाने का मतलब है कि उन्हें कोई पैसा नहीं मिलेगा।

करीब 15 किलोमीटर दूर हजीरा राजमार्ग के पास गुजरात डायमंड बोर्स रत्न एवं आभूषण पार्क है, जिसमें प्राकृतिक और कृत्रिम हीरे की कई इकाइयां हैं। रासायनिक भाप जमाकर हीरा (सीवीडी) बनाने वाली ग्रीनलैब डायमंड्स में हीरा तराशने वाले 45 वर्षीय कुर्जीभाई मकवाना को इस दीवाली केवल एक हफ्ते की छुट्टी मिल रही है। कुर्जीभाई सीवीडी तराशकर हर महीने 2 लाख रुपए कमाते हैं। उन्होंने कहा, ‘हमारी छुट्टियां दीवाली से ठीक पहले शुरू होंगी और हफ्ते भर बाद काम पर लौटना है। अभी काफी काम है और हम 10 से 12 घंटे तक काम कर रहे हैं।’

कुर्जीभाई को हाल में खूब शोहरत मिली, जब उनका तराशा 7.5 कैरट सीवीडी हीरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका की प्रथम महिला जिल बाइडन को उपहार में दिया। भारत खुद को सीवीडी डायमंड हब के रूप में स्थापित करने की को​शिश कर रहा है। अमेरिका और यूरोप जैसे बड़े बाजारों में प्राकृतिक हीरे की मांग घट गई है मगर प्रयोगशाला में तैयार कृत्रिम हीरे की मांग अच्छी खासी है। कृत्रिम हीरे की कीमत प्राकृतिक हीरे की तुलना में महज 10 फीसदी होती है। यही वजह है कि सूरत में सीवीडी की 4-5 बड़ी इकाइयां खुल गई हैं लेकिन चिंता की बात यह है कि 21 से 24 अरब डॉलर कारोबार वाले सूरत के हीरा केंद्र के 6,000 से ज्यादा कारखानों में तकरीबन 8 लाख कारीगर काम करते हैं और इस उद्योग को 2008 की मंदी तथा कोविड महामारी जैसे हालात का सामना करना पड़ रहा है।

प्राकृतिक हीरे के कारोबारी श्री रामकृष्ण एक्सपोर्ट्स के श्रेयांश ढोलकिया ने कहा कि पहले रूस-यूक्रेन युद्ध और अब इजरायल-हमास संकट से कारोबार पर असर पड़ा है। अमेरिका और यूरोप सबसे प्रमुख बाजार हैं लेकिन वहां मांग घट गई है। आंकड़े भी यही कहानी बताते हैं। रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल से सितंबर 2023 के बीच तराशे गए हीरों का कुल निर्यात 28.76 फीसदी (रुपए में 25.12 फीसदी) घटकर 870.22 करोड़ डॉलर रह गया। इस दौरान कच्चे हीरे का आयात भी एक साल पहले की समान अव​धि के मुकाबले 20.81 फीसदी घटकर 746.1 करोड़ डॉलर रह गया।

तराशे गए प्रयोगशाला वाले हीरों के निर्यात में भी गिरावट दर्ज की गई। अप्रैल से सितंबर 2023 की अवधि में इसका कुल अनंतिम निर्यात करीब 26.28 फीसदी घटकर 69.56 करोड़ डॉलर रह गया। ढोलकिया ने कहा कि प्रयोगशाला वाले हीरों के खरीदार आभूषण उद्योग के साथ फैशन उद्योग में भी मिल सकते हैं। इसलिए इसके बाजार में काफी संभावनाएं दिख रही हैं।

ग्रीनलैब डायमंड्स के निदेशक संकेत पटेल ने कहा कि उनके पास 850 हीरा कारीगरों के नाम पड़े हैं, जो रोजगार चाहते हैं। उन्होंने कहा, ‘हमारे पास 24 मेगावॉट का सौर ऊर्जा संयंत्र और 17 मेगावॉट का पवन ऊर्जा संयंत्र हैं, जिनसे हमारे कारखानों को चौबीस घंटे बिजली मिलती है।’ उनके संयंत्र में करीब 1,000 मशीन हैं, जिनसे हर महीने 1,25,000 कैरट सीवीडी हीरे का उत्पादन किया जा सकता है।

जीजेईपीसी के क्षेत्रीय चेयरमैन (गुजरात) दिनेश नवेदिया ने कहा कि सूरत में श्रमिक समस्या को सीवीडी हीरे से बड़ी मदद मिलती है। उन्होंने कहा, ‘अमेरिका, यूरोप, चीन जैसे प्रमुख बाजारों में तैयार हीरा उत्पादों की मांग घट गई है। मगर प्रयोगशाला वाले हीरे की मांग बढ़ रही है, जिससे श्रमिक समस्या से निपटने में मदद मिल सकती है। भारत भी अपने मेक इन इंडिया अ​भियान के तहत सीवीडी हीरे का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बनना चाहता है।’

कामा ज्वैलरी के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक कोलिन शाह ने कहा कि सोने की कीमतें बढ़ रही हैं और लोगों को महंगाई की मार भी झेलनी पड़ रही है। ऐसे में उनकी जेब खाली है। उन्होंने उम्मीद जताई कि दिसंबर से जनवरी के दौरान ही हीरे की मांग बढ़ सकती है। ऐसे में सूरत को अब 2024 का बेसब्री से इंतजार है।
 

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