नीति आयोग के CEO बोले- देश कर रहा तरक्की, गरीबी घटकर 5% से हुई कम

Edited By jyoti choudhary,Updated: 26 Feb, 2024 05:55 PM

ceo of niti aayog said  the country is progressing poverty has reduced

नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने नवीनतम घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण का हवाला देते हुए दावा किया कि भारत में गरीबी 5 प्रतिशत से नीचे आ गई है, देश तरक्की कर रहा है। अगस्त 2022 और जुलाई 2023 के बीच आयोजित सर्वेक्षण से पता चलता है कि सरकार द्वारा...

बिजनेस डेस्कः नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने नवीनतम घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण का हवाला देते हुए दावा किया कि भारत में गरीबी 5 प्रतिशत से नीचे आ गई है, देश तरक्की कर रहा है। अगस्त 2022 और जुलाई 2023 के बीच आयोजित सर्वेक्षण से पता चलता है कि सरकार द्वारा लागू गरीबी उन्मूलन उपाय कारगर साबित हो रहे हैं। सुब्रमण्यम ने कहा कि घरेलू खपत पर सर्वेक्षण का डेटा गरीबी उन्मूलन पहल की सफलता का मूल्यांकन करने के लिए एक महत्वपूर्ण मीट्रिक है।

ग्रामीण और शहरी इलाकों में खपत ढाई गुना  

नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने बताया कि ग्रामीण और शहरी इलाकों में खपत ढाई गुना हुई है। उन्होंने बताया कि शहरी परिवारों में औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय 2011-12 के बाद से 33.5 प्रतिशत बढ़कर ₹3,510 हो गया, जबकि ग्रामीण भारत में 40.42 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो ₹2,008 तक पहुंच गया।

सर्वेक्षण के अनुसार, पहली बार ग्रामीण परिवारों ने अपने कुल खर्च का 50 प्रतिशत से भी कम भोजन पर आवंटित किया है। सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि शहरी-ग्रामीण उपभोग विभाजन 2004-05 में 91% से कम होकर 2022-23 में 71% हो गया है, जो असमानता में कमी का संकेत देता है। बीवीआर सुब्रमण्यम ने इन आंकड़ों के आधार पर कहा कि देश में गरीबी घटी है। शहरी और ग्रामीण इलाकों में समृद्धि तेजी से बढ़ रही है। गरीबी घटाने के उपाय कारगर साबित हुए हैं।

बीवीआर सुब्रमण्यम ने कहा कि गांवों में खपत शहरों के मुकाबले ज्यादा है। असमानता कम हो रही है। उन्होंने कहा कि आने वालों सालों में शहरों और गांवों में खपत बराबर हो जाएगी। भोजन में, पेय पदार्थ, प्रसंस्कृत भोजन, दूध और फलों की खपत बढ़ रही है - अधिक विविध और संतुलित खपत का संकेत।

सुब्रमण्यम ने दावा किया कि आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य देखभाल और मुफ्त शिक्षा जैसे लाभों को सर्वेक्षण में शामिल नहीं किया गया, जिससे पता चलता है कि गरीबी और अभाव लगभग गायब हो गए हैं।
 

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