Edited By jyoti choudhary,Updated: 02 Jan, 2024 06:12 PM
अमेरिकी ब्रोकरेज कंपनी गोल्डमैन सैक्श ने मंगलवार को कहा कि मजबूत पूंजी प्रवाह के साथ भारत का वैश्विक स्तर पर लेन-देन से संबद्ध बही-खाता उम्मीद की तुलना में कहीं अधिक मजबूत है। इसको देखते हुए चालू खाते का घाटा (कैड) मौजूदा वित्त वर्ष 2023-24 में कम...
मुंबईः अमेरिकी ब्रोकरेज कंपनी गोल्डमैन सैक्श ने मंगलवार को कहा कि मजबूत पूंजी प्रवाह के साथ भारत का वैश्विक स्तर पर लेन-देन से संबद्ध बही-खाता उम्मीद की तुलना में कहीं अधिक मजबूत है। इसको देखते हुए चालू खाते का घाटा (कैड) मौजूदा वित्त वर्ष 2023-24 में कम रहेगा और इसके जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के एक प्रतिशत पर रहने का अनुमान है। इससे 39 अरब डॉलर का भुगतान अधिशेष की स्थिति होगी।
गोल्डमैन सैक्श ने एक रिपोर्ट में कहा कि चालू खाते का घाटा कम होने, मजबूत पूंजी प्रवाह, पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार और कम विदेशी कर्ज के साथ देश का वैश्विक स्तर पर लेन-देन से संबद्ध बही-खाता अनुकूल रहेगा। रिपोर्ट के अनुसार, इसके साथ, अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के इस साल नीतिगत दर में कटौती को देखते हुए बाह्य मोर्चे पर भारत की स्थिति बेहतर रहने की उम्मीद है। ब्रोकरेज कंपनी ने इन चीजों को देखते हुए चालू खाते के घाटे (कैड) के अनुमान को संशोधित कर इसके जीडीपी का एक प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है, जो पहले 1.3 प्रतिशत था। वहीं 2024-25 के लिए इसके 1.3 प्रतिशत रहने की संभावना जताई गई है, जबकि पहले इसके 1.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था।
रिपोर्ट में इसके लिए अन्य बातों के अलावा कच्चे तेल के दाम के अनुमान को 90 डॉलर प्रति बैरल से घटाकर 81 डॉलर प्रति बैरल किये जाने तथा सेवा निर्यात के उम्मीद से बेहतर रहने को बताया है। गोल्डमैन सैक्श ने इक्विटी पूंजी प्रवाह बेहतर रहने के साथ कुल मिलाकर पूंजी प्रवाह अच्छा रहने का अनुमान जताया है। इसकी वजह फेडरल रिजर्व के नीतिगत दर में कटौती का चक्र शुरू करने की संभावना, बॉन्ड के जेपी मॉर्गन के वैश्विक सरकारी बॉन्ड सूचकांक में शामिल होने से क्षेत्र में बेहतर निवेश प्रवाह तथा उच्च एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) है। इस पूंजी प्रवाह से 2024 में पहले के कर्ज की परिपक्वता अवधि पूरी होने के साथ शुद्ध कंपनी डॉलर कर्ज प्रवाह कम करने में मदद मिलेगी। कुल मिलाकर, भुगतान संतुलन के मोर्चे पर 2023-24 में 39 अरब डॉलर के अधिशेष की स्थिति होगी। हालांकि, अगले वित्त वर्ष में इसके कम होकर 27 अरब डॉलर रहने का अनुमान है।