ऐसे समझे पूरा गणितः 26 रुपए/लीटर मिलने वाला कच्चा तेल कैसे बन जाता है 78 रुपए का पेट्रोल?

Edited By jyoti choudhary,Updated: 08 Jun, 2018 05:06 PM

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पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छूने के बीच उद्योग मण्डल एसोचैम का कहना है कि आम आदमी से जुड़ी इस समस्या से निपटने के लिए तेल पर लागू करों में कटौती करना ही सबसे अच्छा उपाय है।

बिजनेस डेस्कः पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छूने के बीच उद्योग मण्डल एसोचैम का कहना है कि आम आदमी से जुड़ी इस समस्या से निपटने के लिए तेल पर लागू करों में कटौती करना ही सबसे अच्छा उपाय है। एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डी.एस.रावत ने आज कहा कि देश में तेल के दामों में हालिया समय में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। इससे आम जनता को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। हालात को सम्भालने के लिए पेट्रोल और डीजल पर लागू करों में कटौती करना सर्वश्रेष्ठ उपाय है। 

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पेट्रोल को GST में लाना चाहिए
रावत ने जोर देकर कहा कि इसके अलावा पेट्रोल और डीजल को माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत लाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि करों में कटौती करने से हमारा निर्यात भी अधिक प्रतिस्पर्धी बनेगा, चालू खाते का घाटा भी कम होगा। साथ ही इससे देश की करेंसी की गिरावट को भी सम्भालने में मदद मिलेगी।

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ये रहा पूरा गणित

रावत ने भारत में तेल के दाम तय किए जाने की गणित का खुलासा करते हुए बताया कि एक लीटर कच्चा तेल आयात करने की कुल लागत करीब 26 रुपए होती है। उस कच्चे तेल को पेट्रोलियम कम्पनियां खरीदती हैं। वे उसमें प्रवेश कर, शोधन का खर्च, माल उतारने की लागत और मुनाफा जोड़कर उसे डीलर को 30 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से बेचती हैं। उन्होंने बताया कि उसके बाद तेल पर केन्द्र सरकार 19 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से उत्पाद कर वसूलती है। उसके बाद इसमें 3 प्रति रुपए लीटर के हिसाब से डीलर का कमीशन जुड़ता है और फिर सम्बन्धित राज्य सरकार उस पर वैट लगाती है। उसके बाद ढाई गुना से ज्यादा कीमत के साथ तेल ग्राहक तक पहुंचता है।

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2014-2016 के बीच करों में 9 बार हुई बढ़ोतरी

रावत ने कहा कि वर्ष 2013 में जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल थी, तब देश में उत्पाद कर 9 रुपए प्रति लीटर था, जो अब 19 रुपए है। वर्ष 2014 के बाद कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट के बावजूद उपभोक्ताओं को इसका फायदा इसलिए नहीं मिल सका क्योंकि सरकारों ने करों में बेतहाशा बढ़ोतरी कर दी। नवम्बर 2014 से जनवरी 2016 के बीच तेल पर कर की दरों में 9 बार बढ़ो़री हुई है। 

केंद्र व राज्‍य सरकारों की भरी झोली
उन्होंने कहा कि हाल में आई रिपोर्टों के मुताबिक केन्द्र सरकार ने तेल पर उत्पाद कर के रूप में रोजाना 660 करोड़ रुपए कमाए हैं। वहीं, राज्यों की यह कमाई 450 करोड़ रुपए प्रतिदिन की रही। रोजाना दाम तय होने की व्यवस्था लागू होने के बाद हाल में करीब एक सप्ताह के दौरान पेट्रोल के दामों में करीब ढाई रुपए और डीजल के दाम में लगभग दो रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है। इस अवधि में केन्द्र सरकार ने इससे 4600 करोड़ रुपए और राज्य सरकारों ने 3200 करोड़ रुपए कमाए हैं।  

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