परदेस में सुख नहीं

Edited By ,Updated: 08 Feb, 2015 12:47 PM

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कुमुदिनी के पत्तों के मध्य विकसित उसके पराग कणों से मस्त हुआ भौंरा, जब भाग्यवश किसी दूसरी जगह पर जाता है तो वहां .....

अलिरयंनलिनीदलमध्यग: कमलिनीमकरन्दमदालस:।
विधिवशात् परदेशमुपागत: कुटजपुष्परसं बहु मन्यते।।

अर्थ : कुमुदिनी के पत्तों के मध्य विकसित उसके पराग कणों से मस्त हुआ भौंरा, जब भाग्यवश किसी दूसरी जगह पर जाता है तो वहां मिलने वाले कटसरैया के फूलों के रस को भी अधिक महत्व देने लगता है।।15।।

भावार्थ : इस पद का भाव है कि परदेश सुखकर नहीं होता।परदेश में भौंरे की भांति आदमी को अनेक कष्टों को झेलना पड़ता है।वहां जो मिल जाए,उसी पर संतोष करना पड़ता है। 

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