Edited By ,Updated: 03 Oct, 2015 02:41 PM
सनातन धर्म के वेद पुराणों में वर्णित है कि जिस समय सृष्टि की रचना हुई तो सर्व प्रथम त्रिदेवों की उत्पत्ति हुई। श्री भगवान विष्णु जी ने अपनी नाभि में से ब्रह्मा जी को प्रगट किया।
सनातन धर्म के वेद पुराणों में वर्णित है कि जिस समय सृष्टि की रचना हुई तो सर्व प्रथम त्रिदेवों की उत्पत्ति हुई। श्री भगवान विष्णु जी ने अपनी नाभि में से ब्रह्मा जी को प्रगट किया।
श्री भगवान विष्णु जी ने सृष्टि के विस्तार का कार्य ब्रह्मा जी को दिया। ब्रह्मा जी ने उनकी आज्ञा को शिरोधाय करते हुए अपने योग बल से आठ संतानों को उत्पन्न किया। जिनमें से सात सप्तऋषि कहलाए और आठवें विष्णु भक्त नारद मुनि जी।
वेदों के अनुसार इस सृष्टि का निर्माण ब्रह्मा जी ने किया। इसके परिचालन में देव, ऋषि एवं पितर अपने-अपने कार्य को सम्पूर्ण करते हैं। हर मनुष्य के अंदर अपने पूर्वजों (पितरों) के गुण योग (अंश) होते हैं। हमारे पूर्वजों में प्रथम शरीर निर्माता पिता के 26 गुण फिर उसके पिता (दादा) के 16 गुण(अंश) फिर उसके पिता(पड़दादा) के 8 गुण और अंतिम 8वें दादा का गुण शरीर में विद्यमान होता है।
जब पिता के शुक्राणुओं द्वारा जीव माता के गर्भ में जाता है तो उसके 84 अंश (गुण) होते हैं जिसमें 26 गुण (अंश) तो शुक्राणु पुरुष के स्वयं के भोजनादि द्वारा उपार्जित होते हैं। शेष 58 गुण पितरों द्वारा प्राप्त होते हैं। ऋषि पराशर जी ने मानव की आयु कलियुग में कम से कम 120 वर्ष बताई थी।