जानें, कैसे एक अपंग लड़की हवा में उड़ने लगी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 May, 2018 10:31 AM

about wilma golden rudolph

एक छात्रा ने अपने शिक्षक से कहा, ‘‘मैं भी ओलम्पिक खेलों में अपना रिकार्ड बनाना चाहती हूं।’’ यह सुनकर शिक्षक ने पूरी कक्षा के समक्ष उस पर व्यंग्य कसा जिसे सुनकर कक्षा के सभी बच्चे खिलखिला उठे।

एक छात्रा ने अपने शिक्षक से कहा, ‘‘मैं भी ओलम्पिक खेलों में अपना रिकार्ड बनाना चाहती हूं।’’ 

यह सुनकर शिक्षक ने पूरी कक्षा के समक्ष उस पर व्यंग्य कसा जिसे सुनकर कक्षा के सभी बच्चे खिलखिला उठे। शिक्षक कह रहे थे, ‘‘पहले अपने पैरों की ओर तो देखो। तुम ठीक से चल भी नहीं सकती हो और ओलम्पिक खेलों में रिकार्ड बनाना चाहती हो?’’

वह बच्ची कुछ नहीं बोल सकी और सारी कक्षा की गूंजती हंसी सुनती रही। अगले दिन कक्षा में मास्टर जी आए तो बड़े धैर्य के साथ दृढ़ और संयमित स्वरों में उस लड़की ने कहा, ‘‘मास्टर जी, यह ठीक है कि मैं अपाहिज हूं, आज मैं चल-फिर नहीं सकती, पर याद रखना कि मन में पक्का इरादा हो तो क्या नहीं हो सकता। आप आज मेरे अपाहिज होने पर हंस रहे हैं लेकिन यही अपंग लड़की एक दिन आपको हवा में उड़कर दिखाएगी।’’

उसके साथियों ने उसके मुंह से जब यह सुना तो कक्षा के कुछ शरारती बच्चे फिर हंस पड़े। उस दिन भी कक्षा में काफी देर तक उसकी खिल्ली उड़ती रही, पर उस लड़की ने ठान लिया कि हर हाल में उसे अपना सपना पूरा करना है। वह रोजाना चलने का अभ्यास करने लगी। कुछ ही दिनों में वह अच्छी तरह चलने लगी और फिर अपनी अथक मेहनत की बदौलत उसने दौड़ना भी प्रारंभ कर दिया। इस कामयाबी ने उसका हौसला बढ़ाया। बिना प्रशिक्षण के ही वह एक अच्छी धावक बन गई। 1960 के ओलम्पिक में उस लड़की ने पूरे उत्साह के साथ हिस्सा लिया और 3 पदक जीते। सुनकर सभी दंग रह गए। उस पर हंसने वालों को भी जवाब मिल चुका था।

हवा से बातें करने की महत्वाकांक्षा रखने वाली वह अपंग लड़की थी टेनेसी राज्य की ओलम्पिक धाविका- विल्मा गोल्डीन रुडॉल्फ। उसके मजबूत और पक्के इरादे ने उसे मंजिल तक पहुंचा दिया।

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