धर्म ग्रंथों के अनुसार 8 प्रकार की है शिव प्रतिमाएं

Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Feb, 2018 04:13 PM

according to dharam purana eight types of shiva statue

पौराणिक ग्रथों के अनुसार भोले भंडारी इस संसार में आठ रुपों में समाएं हुए हैं जो हैं शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान व महादेव। इसके आधार पर ही धर्मग्रथों में शिव जी की प्रतिमाएं में आठ प्रकार की बताई गई हैं।

पौराणिक ग्रथों के अनुसार भोले भंडारी इस संसार में आठ रुपों में समाएं हुए हैं जो हैं शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान व महादेव। इसके आधार पर ही धर्मग्रथों में शिव जी की प्रतिमाएं में आठ प्रकार की बताई गई हैं। तो आईए विस्तार में जानें भोलेनाथ की इन प्रतिमाओं के बारे में- 


शर्व
पूरे जगत को धारण करने वाली पृथ्वीमयी प्रतिमा के स्वामी शर्व है, इसलिए इसे शिव जी की शार्वी प्रतिमा भी कहा जाता है। धर्म ग्रथों में शर्व नाम का अर्थ व प्रभाव इनके भक्तों के समस्त को कष्टों को हरने वाला बताया गया है।


भीम
भीम शिव की आकाशरूपी प्रतिमा है, जो बुरे और तामसी गुणों का नाश कर जगत को राहत देने वाली मानी जाती है। इसके स्वामी भीम हैं। यह भैमी नाम से भी प्रसिद्ध है। भीम नाम का अर्थ भयंकर रूप वाले हैं, जो उनके भस्म से लिपटी देह, जटाजूटधारी, नागों के हार पहनने से लेकर बाघ की खाल धारण करने या आसन पर बैठने सहित कई तरह से उजागर होता है।


उग्र
वायु रूप में शिव जगत को गति देते हैं और पालन-पोषण भी करते हैं। इसके स्वामी उग्र है, इसलिए यह मूर्ति औग्री के नाम से भी प्रसिद्ध है। उग्र नाम का मतलब बहुत ज्यादा उग्र रूप वाले होना बताया गया है। शिव के तांडव नृत्य में भी यह शक्ति स्वरूप उजागर होता है।


भव
शिव की जल से युक्त मूर्ति पूरे जगत को प्राणशक्ति और जीवन देने वाली है। इसके स्वामी भव है, इसलिए इसे भावी भी कहते हैं। शास्त्रों में भी भव नाम का मतलब पूरे संसार के रूप में ही प्रकट होने वाले देवता बताया गया है।


पशुपति
यह सभी आंखों में बसी होकर सभी आत्माओं की नियंत्रक मानी जाती है। यह पशु यानी दुर्जन वृत्तियों का नाश और उनसे मुक्त करने वाली होती है। इसलिए इसे पशुपति भी कहा जाता है। पशुपति नाम का मतलब पशुओं के स्वामी बताया गया है, जो जगत के जीवों की रक्षा व पालन करते हैं।


रुद्र
यह शिव की अत्यंत ओजस्वी मूर्ति है, जो पूरे जगत के अंदर-बाहर फैली समस्त ऊर्जा व गतिविधियों में स्थित है। इसके स्वामी रूद्र है। इसलिए यह रौद्री नाम से भी जानी जाती है। रुद्र नाम का अर्थ भयानक भी बताया गया है, जिसके जरिए शिव तामसी व दुष्ट प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखते हैं।


ईशान
यह सूर्य रूप में आकाश में चलते हुए जगत को प्रकाशित करती है। शिव की यह दिव्य मूर्ति ईशान कहलाती है। ईशान रूप में शिव ज्ञान व विवेक देने वाले बताए गए हैं।


महादेव
चंद्र रूप में शिव की यह साक्षात मूर्ति मानी गई है। चंद्र किरणों को अमृत के समान माना गया है। चंद्र रूप में शिव की यह मूर्ति महादेव के रूप में प्रसिद्ध है। इस मूर्ति का रूप अन्य से व्यापक है। महादेव नाम का अर्थ देवों के देव होता है। यानी सारे देवताओं में सबसे विलक्षण स्वरूप व शक्तियों के स्वामी शिव ही हैं।

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