Bhagavad Gita : श्रीकृष्ण के अनुसार जीवन में इन 3 चीजों से बचें, नरक से मिलेगी राहत

Edited By Updated: 13 Dec, 2025 01:50 PM

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भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला सिखाने वाली एक शाश्वत मार्गदर्शिका है। कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो दिव्य ज्ञान दिया, उसमें उन्होंने मानव कल्याण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण उपदेश...

Bhagavad Gita Teachings: भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला सिखाने वाली एक शाश्वत मार्गदर्शिका है। कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो दिव्य ज्ञान दिया, उसमें उन्होंने मानव कल्याण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण उपदेश शामिल किए। इन्हीं उपदेशों में श्रीकृष्ण ने स्पष्ट रूप से उन तीन आंतरिक शत्रुओं का उल्लेख किया है, जो मनुष्य को उसके आध्यात्मिक लक्ष्य से भटकाते हैं और उसे दुख तथा पतन की ओर धकेलते हैं। श्रीकृष्ण चेतावनी देते हैं कि जो व्यक्ति इन विकारों के जाल में फंस जाता है, वह आत्म-विनाश की ओर बढ़ जाता है। तो आइए जानते हैं वो कौन से 3 चीजे हैं, जिन्हें त्यागना अत्यंत आवश्यक है। 

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काम 
काम का अर्थ केवल यौन इच्छा नहीं है, बल्कि यह सभी प्रकार की अत्यधिक भौतिक इच्छाओं और कामनाओं का प्रतीक है। यह वह आसक्ति है जो हमें दुनियावी सुखों में फंसाए रखती है। जब इच्छाएं अनियंत्रित हो जाती हैं, तो वे व्यक्ति को गलत काम करने के लिए प्रेरित करती हैं। यह इच्छा कभी पूरी नहीं होती और अंततः दुख और अशांति का कारण बनती है, जिससे मन और आत्मा का पतन होता है।

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क्रोध 
क्रोध वह मानसिक अवस्था है जो इच्छाओं के पूरा न होने पर उत्पन्न होती है। यह बुद्धि को भ्रमित कर देता है और व्यक्ति को विवेकहीन बना देता है। श्रीकृष्ण के अनुसार, क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति भ्रष्ट होती है, और स्मृति भ्रष्ट होने से बुद्धि का नाश हो जाता है। जब बुद्धि का नाश हो जाता है, तो व्यक्ति पतन की ओर चला जाता है। क्रोध में लिया गया निर्णय हमेशा गलत होता है और यह संबंध, शांति और स्वास्थ्य, तीनों को नष्ट कर देता है।

लोभ 
लोभ का अर्थ है अत्यधिक लालच, यानी आवश्यकता से अधिक धन, वस्तुएँ या शक्ति जमा करने की तीव्र इच्छा। यह एक ऐसी भूख है जो कभी मिटती नहीं। लोभ व्यक्ति को स्वार्थी बना देता है और दूसरों का हक छीनने या अनैतिक तरीके से संपत्ति अर्जित करने के लिए प्रेरित करता है। यह सामाजिक और नैतिक पतन का कारण बनता है। लोभी व्यक्ति कभी संतुष्ट नहीं होता, जिससे वह सदैव मानसिक तनाव और दुख में जीता है।

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