अहोई अष्टमी: दीपावली के आगमन का सूचक है ये व्रत, पढ़ें प्रचलित कथाएं

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Oct, 2019 10:13 AM

ahoi ashtami vrat katha

संतान के स्वास्थ्य एवं दीर्घायु के लिए किया जाने वाला अहोई अष्टमी का व्रत दीवाली के आरंभ होने का संकेत देता है।  इस व्रत के करने से मां अहोई असीम कृपा बरसाती हैं। यह व्रत कार्तिक कृष्ण अष्टमी को मनाया जाता है।

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संतान के स्वास्थ्य एवं दीर्घायु के लिए किया जाने वाला अहोई अष्टमी का व्रत दीवाली के आरंभ होने का संकेत देता है।  इस व्रत के करने से मां अहोई असीम कृपा बरसाती हैं। यह व्रत कार्तिक कृष्ण अष्टमी को मनाया जाता है। जो बालक बार-बार बीमार पड़ जाते हैं या किसी कारणवश माता-पिता को अपनी संतान के स्वास्थ्य या आयु की चिंता रहती है तो विधिपूर्वक इस व्रत के करने से लाभ प्राप्त होता है।

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इस व्रत के करने से संतान स्वस्थ एवं दीर्घायु रहती है।  इस व्रत के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाया जाता है। शाम के पूजन के बाद अहोई माता की कथा सुनने की परम्परा है। फिर सास के पैर छूकर आशीर्वाद लेकर तारों की पूजा कर जल चढ़ाया जाता है और जल ग्रहण कर व्रत का समापन किया जाता है।

इस सम्बन्ध में प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल से एक सेठ की पत्नी चंद्रिका जो बहुत गुणवती थी, उसके कई संतानें थीं। वह सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रही थी। एक बार उसने घर की लीपापोती के लिए कुदाल से मिट्टी खोदनी शुरू की। उस जगह पर सेह की मांद थी। 

अचानक कुदाल से एक सेह के बच्चे को चोट लगी तथा उसकी मृत्यु हो गई। इससे चंद्रिका को बहुत दुख हुआ। उसे इसका पश्चाताप हुआ पर फिर भी एक-एक करके उसकी संतानें मरने लगीं। 

सारी संतानों की अकाल मृत्यु से सारा परिवार परेशान रहने लगा और सोचने लगा कि उनसे कोई पाप हो गया है जिसका दंड सारे परिवार को मिल रहा है।

एक शोक सभा में चंद्रिका ने विलाप करते हुए कहा कि जानबूझ कर उसने कोई पाप नहीं किया है तथा एक बार अचानक जब वह घर की लिपाई-पुताई कर रही थी तो उस समय कुदाल से मिट्टी उखाड़ते समय एक सेह के बच्चे की मृत्यु हो गई थी।

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तब वहां उपस्थित औरतों ने चंद्रिका को अहोई माता की पूजा के बारे में बतलाया। चंद्रिका ने सेह एवं उसके बच्चे का चित्र बनाकर पूजा-अर्चना की तथा अहोई माता से क्षमा-याचना की। तब अहोई मां ने खुश होकर उसके बच्चों को दीर्घायु होने का वरदान दिया। तभी से अहोई मां के व्रत की परम्परा चल पड़ी।

एक प्राचीन कथा के अनुसार दतिया नगर में चंद्रभान नाम का व्यक्ति रहता था। उसकी कई संतानें थीं परन्तु उनकी अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु होने लगी किसी भी संतान के न बच पाने के कारण वह सब कुछ त्याग कर वन में चला गया तथा बद्रिकाश्रम के समीप बने कुंड के पास अन्न जल त्याग कर बैठ गया। 

6 दिन वह इसी हालत में बैठा रहा। सातवें दिन आकाशवाणी हुई कि सेठ तुम्हें यह कष्ट पिछले जन्म के कर्मों के कारण मिल रहा है। इन कष्टों के निवारण के लिए अहोई मां का व्रत करो, तब मां अहोई तुम से प्रसन्न होकर तुन्हें संतान सुख तथा दीर्घायु होने का वर देगी।

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उसके पश्चात उसने अपनी पत्नी सहित अहोई माता के विधिपूर्वक व्रत किए तथा अपने पापों की क्षमा याचना की। उसकी पूजा भक्ति तथा लग्र से प्रसन्न होकर अहोई मां ने उनके संतान होने एवं दीर्घायु होने का वरदान दिया। उसके पश्चात चंद्रभान के कई संतानें हुईं जो दीर्घायु रहीं।

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