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अक्षय नवमी पर ब्रजमंडल में मचेगी परिक्रमा करने की होड़

Edited By Jyoti,Updated: 22 Nov, 2020 04:45 PM

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मथुरा: अक्षय नवमी के नाम से मशहूर कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को ब्रजमंडल के विभिन्न तीर्थस्थलों में श्रद्धालुओं के बीच परिक्रमा करने की होड़ लग जाती है। इस बार अक्षय नवमी का पर्व 23 नवम्बर को मनाया जा रहा है। का

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मथुरा:  इस बारअक्षय नवमी का पर्व 23 नवम्बर को मनाया जा रहा है। गोपाष्टमी पर गाय माता की पूजा करने के बाद प्रत्येक वर्ष अक्षय नवमी दिन ब्रजमंडल के विभिन्न तीर्थस्थलों में श्रद्धालुओं के बीच परिक्रमा करने की होड़ लग जाती है। कार्तिक महात्म्य के विष्णु खण्ड का जिक्र करते हुए ब्रज के महान संत बलराम बाबा ने बताया कि महाप्रलय के बाद जब धरती से मानव,दानव,सर्पों,वनस्पतियों आदि की समाप्ति हो गई तो ब्रम्हा जी ने भगवान विष्णु का आशीर्वाद लेने के लिए जप किया । काफी समय के बाद भगवान विष्णु ने ब्रम्हा जी को यह अहसास कराया कि वे उनके ऊपर प्रसन्न हो गए हैं तथा उनकी मुराद अब पूरी होगी। उस समय ब्रम्हा जी ने प्रसन्नता से न केवल गहरी सांस ली बल्कि प्रसन्नतावश उनके नेत्रों से आंसू निकल पड़े जिनके जमीन पर गिरने से वह आंवला बन गया।   

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मान्यता है कि सृष्टि की पहली वनस्पति आंवला बना। इसके बाद जब ब्रम्हा जी ने मानव की संरचना की तो देवता उस स्थान पर आए जहां पर आंवले का वृक्ष उग आया था। कहा तो यह भी जाता है कि जब देव आंवला के पेड़ के पास गए तो आकाशवाणी हुई कि यह आंवला का पेड़ है। देश के कुछ भागों में इसे अमरदकी का वृक्ष भी कहा जाता है।यह भी कहा जाता है कि अक्षय नवमी के दिन इसका स्मरण मात्र से गोदान करने का फल मिलता है तथा इसके देखने मात्र से फल दूना और उसके फल को खाने से पुण्य तीन गुना हो जाता है। यह पाप मोचक भी होता है।  शास्त्रों के अनुसार आंवले की जड़ में भगवान विष्णु, जड़ के कुछ ऊपर के भाग में ब्रम्हा जी, तने में भगवान शिव, इसकी डालेां में 12 सूर्य तथा इसकी छोटी छोटी टहनियों में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है।  
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उन्होंने बताया कि अक्षय नवमी को कुष्मंद नवमी भी कहते है तथा एक अन्य प्रसंग के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने कुष्माण्ड राक्षस का बध किया था तथा उसके अत्याचारों से सभी को मुक्ति दिलाई थी। उन्होंने बताया कि इस दिन दान पुण्य का भी बड़ा महत्व है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन दिन सतयुग की शुरूवात हुई थी।  संत बलराम बाबा ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि इस पावन दिवस पर ब्रज के विभिन्न तीर्थधाम में मुख्य विग्रह की परिक्रमा करने से न केवल मोक्ष की प्राप्ति होती है बल्कि व्यक्ति के कष्ट दूर हो जाते हैं मगर अनुष्ठान का भावपूर्ण होना आवश्यक है। ब्रजमंडल की बात करें में मथुरा, वृन्दावन , गोवर्धन, बरसाना की परिक्रमा करने के लिए देश के विभिन्न भागों से आकर लोग यहां के किसी धाम की परिक्रमा कर अपने जीवन को धन्य करते हैं क्योंकि धार्मिक ग्रन्थों में यहां तक कहा गया है कि अक्षय नवमी अक्षय तृतीया की तरह ही फलदायिनी है। 
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