शिव शंकर ने किन तीन गुणों को त्र‌िशूल रूप में कर रखा है धारण

Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Feb, 2018 01:39 PM

amazing secrets and stories of lord shiva

जब भी हम भगवान शिव का ध्यान करते हैं तो हमारे मन में उनकी एक छवि बनती है, जिसमें उनके एक हाथ में त्र‌िशूल, दूसरे हाथ में डमरु, गले में सर्प, सिर पर त्र‌िपुंड चंदन लगा होता है। कने का भाव यह है कि शिव जी के साथ यह चीजे जुड़ी हुई हैं। दु

जब भी हम भगवान शिव का ध्यान करते हैं तो हमारे मन में उनकी एक छवि बनती है, जिसमें उनके एक हाथ में त्र‌िशूल, दूसरे हाथ में डमरु, गले में सर्प, सिर पर त्र‌िपुंड चंदन लगा होता है। कने का भाव यह है कि शिव जी के साथ यह चीजे जुड़ी हुई हैं। दुनिया के हर में जगह जहां शिवालय होता है वहां श‌िव शंकर के साथ ये 4 चीजें जरुर पाई जाती है। लेकिन इनको को लेकर आज भी कितने सवाल जुड़े हुए हैं कि क्या ये समस्त चीजें शिव जी के साथ ही प्रकट हुईं थी या अलग-अलग घटनाओं के साथ यह शिव भगवान के साथ जुड़ता गई। तो आईए जानते हैं कि श‌िव के साथ इनका संबंध कैसे बना और यह श‌िव जी से कैसे जुड़ी।

 

श‌िव जी का त्र‌िशूल 
भगवान श‌िव सर्वश्रेष्ठ सभी प्रकार के अस्‍त्र-शस्‍त्रों के ज्ञाता हैं लेक‌िन पौराण‌िक कथाओं में इनके दो प्रमुख अस्‍त्रों का ज‌िक्र आता है एक धनुष और दूसरा त्र‌िशूल। भगवान श‌िव के धनुष के बारे में तो यह कथा प्रचलित है क‌ि इसका आव‌िष्कार स्वयं श‌िव जी ने क‌िया था। लेक‌िन त्र‌िशूल कैसे इनके पास आया इस व‌िषय में कोई कथा नहीं है। माना जाता है क‌ि सृष्ट‌ि के आरंभ में ब्रह्मनाद से जब श‌िव प्रकट हुए तो साथ ही रज, तम, सत यह तीनों गुण भी प्रकट हुए। यही तीनों गुण श‌िव जी के तीन शूल यानी त्र‌िशूल बने। इनके बीच सांमजस्य बनाए बगैर सृष्ट‌ि का संचालन कठ‌िन था। इसल‌िए श‌िव ने त्र‌िशूल रूप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों में धारण क‌िया। 

 

श‌िव के हाथों में डमरू 
भगवान श‌िव के हाथों में डमरू आने की कहानी बड़ी ही रोचक है। सृष्ट‌ि के आरंभ में जब देवी सरस्वती प्रकट हुई तब देवी ने अपनी वीणा के स्वर से सष्ट‌ि में ध्वन‌ि को जन्म द‌िया। लेक‌िन यह ध्वन‌ि सुर और संगीत व‌िहीन थी। उस समय भगवान श‌िव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाया और इस ध्वन‌ि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ। कहते हैं क‌ि डमरू ब्रह्म का स्वरूप है जो दूर से व‌िस्‍तृत नजर आता है लेक‌िन जैसे-जैसे ब्रह्म के करीब पहुंचते हैं वह संकु‌च‌ित हो दूसरे स‌िरे से म‌िल जाता है और फ‌िर व‌िशालता की ओर बढ़ता है। सृष्ट‌ि में संतुलन के ल‌िए इसे भी भगवान श‌िव अपने साथ लेकर प्रकट हुए थे।

 

श‌िव के गले में व‌िषधर नाग 
भगवान श‌िव के साथ हमेशा नाग होता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस नाग का नाम वासुकी है। इस नाग के बारे में पुराणों में बताया गया है क‌ि यह नागों के राजा हैं और नागलोक पर इनका शासन है। सागर मंथन के समय इन्होंने रस्सी का काम क‌िया था ज‌िससे सागर को मथा गया था। कहते हैं क‌ि वासुकी नाग श‌िव के परम भक्त थे। इनकी भक्त‌ि से प्रसन्न होकर श‌िव जी ने इन्हें नागलोक का राजा बना द‌िया और साथ ही अपने गले में आभूषण की भांत‌ि ल‌िपटे रहने का वरदान भी द‌िया। 


श‌िव के स‌िर पर चंद्र
श‌िव पुराण के अनुसार चंद्रमा का व‌िवाह दक्ष प्रजापत‌ि की 27 कन्याओं से हुआ था। यह कन्‍याएं 27 नक्षत्र हैं। इनमें चंद्रमा रोह‌िणी से व‌िशेष स्नेह करते थे। इसकी श‌िकायत जब अन्य कन्याओं ने दक्ष से की तो दक्ष ने चंद्रमा को क्षय होने का शाप दे द‌िया। इस शाप से बचने हेतु चंद्रमा ने भगवान श‌िव की तपस्या की। चंद्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर श‌िव जी ने चंद्रमा के प्राण बचाए और उन्हें अपने श‌‌ीश पर स्‍थान द‌िया। जहां चंद्रमा ने तपस्या की थी वह स्‍थान सोमनाथ कहलाता है। मान्यता है क‌ि दक्ष के शाप से ही चंद्रमा घटता बढ़ता रहता है। 

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