Ambedkar jayanti: जानें, भारत के पहले न्यायमंत्री से जुड़ी कुछ अनोखी बातें

Edited By Jyoti,Updated: 14 Apr, 2019 12:00 PM

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आज लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक भीमराव रामजी आम्बेडकर  जिन्हें बाबासाहब आम्बेडकर नाम से भी जाना जाता था का जन्म दिवस है।

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आज लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक भीमराव रामजी आम्बेडकर  जिन्हें बाबासाहब आम्बेडकर नाम से भी जाना जाता था का जन्म दिवस है। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि और न्याय मंत्री, भारतीय संविधान के जनक व भारत गणराज्य के निर्माता थे।
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भारत में धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक क्रांति लाने के लिए बहुत से रहबरों ने समय-समय पर अपना-अपना योगदान दिया। बहुमूल्य क्रांतिकारी उपदेशों तथा सिद्धांतों को इन रहबरों के धार्मिक ग्रंथों में से लेकर देश के संवैधानिक ग्रंथ में दर्ज करना  तथा उन्हें व्यावहारिक रूप में लागू करवाने का कार्य भारत रत्न बाबा साहिब डा. भीम राव अ बेडकर के हिस्से में आया जिसके परिणामस्वरूप भारत के हर नागरिक को समानता, स्वतंत्रता तथा आत्मस मान का अवसर प्राप्त हुआ। भारतीय संविधान में हर व्यक्ति को वोट देने और वोट प्राप्त करने का अधिकार मिला है जिससे छुआछूत तथा बेगार का खात्मा हुआ है। 

गरीबों के मसीहा बाबा साहिब डा. भीम राव अ बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के जिला इन्दौर के गांव महू में पिता राम जी तथा माता भीमा के घर हुआ। अपनी प्राथमिक शिक्षा के दौरान इन्हें अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ा तथा विदेश में पढ़ाई करने के दौरान भी उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर थी। 

उन्हें विश्वस्तरीय विद्वान बनाने के लिए पिता सूबेदार मेजर रामजी ने कई बार ऋण लिया। कोल्हापुर के महाराज शाहू छत्रपति ने डा. अ बेडकर की उच्च शिक्षा की प्राप्ति के लिए 1919 से लेकर 1923 तक सहायता करके उनका हौसला बुलंद रखा। बड़़ौदा के महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ ने उन्हें स्कॉलरशिप देकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका भेजा। बाबा साहिब ने अमेरिका जाकर अपने पिता के एक मित्र को खत लिखा कि यदि लड़कों की शिक्षा के साथ-साथ हम लड़कियों की शिक्षा की ओर भी ध्यान देने लगे तो हम जल्द ही तरक्की कर सकते हैं। 
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बाबा साहिब को भारतीय समाज में फैली जात-पात की बुराई के कारण अनेक बार अपमानित होना पड़ा परंतु उन्होंने कभी भी अपने क्रांतिकारी आंदोलन को धीमा नहीं पडऩे दिया। दलित समाज के लोगों की तरह ही भारत में महिलाओं की स्थिति भी दयनीय थी। बाबा साहिब महिलाओं की तरक्की और आजादी के लिए उन लोगों के साथ लड़े जो औरत को पांव की जूती समझते थे। 

यह उन्हीं के क्रांतिकारी संघर्ष का परिणाम है कि आज महिलाएं ऊंचे ओहदों पर  विराजमान हैं और पुरुषों के बराबर सिर उठाकर चल रही हैं। बाबा साहिब हर दुखी के दुख को  अपना समझकर उसके साथ हमदर्दी करते। मजबूर लोगों को उनके अधिकार दिलाने के लिए बगावत का बिगुल बजाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘काम करने की वास्तविक आजादी सिर्फ वहीं होती है जहां एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग पर अत्याचार न किया जाता हो, जहां बेरोजगारी न हो, जहां किसी व्यक्ति को अपना व्यवसाय खो जाने का कोई डर न हो, अपने कामों के परिणामस्वरूप जहां व्यक्ति अपने कारोबार के तथा रोजी-रोटी के नुक्सान के डर से मुक्त हो।’’

अपने अथक परिश्रम से एम.ए., पी.एच.डी., डी.एस.टी., डी.लिट. तथा बार ऐट लॉ जैसी डिग्रियां प्राप्त कर उन्होंने भारत का संविधान लिखने में योगदान दिया जिसमें छुआछूत निवारण संबंधी स त कानून बनाकर सदियों से चली आ रही गुलामी की जंजीरों को तोड़ा। वह भारत के पहले कानून-मंत्री भी बनें। 

6 दिंसबर 1956 को बाबा साहिब ने अपना आखिरी संदेश दिया, ‘‘गरीबों की भलाई करना हर पढ़े-लिखे व्यक्ति का प्रमुख कर्तव्य है। मैंने जो भी गरीब वर्ग के लिए किया अनेक मुश्किलों का सामना करके तथा विरोधियों के साथ टक्कर लेकर किया है। इस क्रांतिकारी संघर्ष को आगे बढ़ाना है, पीछे नहीं जाने देना।’’
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