भगवान शिव ने संपूर्ण मनोरथों की सिद्धि के लिए प्रतिपादित किया मंत्र

Edited By ,Updated: 17 Feb, 2015 11:19 AM

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फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी, महाशिवरात्रि पर्व के नाम से जगत प्रसिद्ध है। भगवान शिव के भक्तों के लिए यह सबसे पवित्रतम् दिन है। शिव का अर्थ है कल्याण। अत: शिवरात्रि कल्याण की रात्रि है। शिवरात्रि का महाव्रत शुभफलदायी तथा आत्मा को पवित्र...

फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी, महाशिवरात्रि पर्व के नाम से जगत प्रसिद्ध है। भगवान शिव के भक्तों के लिए यह सबसे पवित्रतम् दिन है। शिव का अर्थ है कल्याण। अत: शिवरात्रि कल्याण की रात्रि है। शिवरात्रि का महाव्रत शुभफलदायी तथा आत्मा को पवित्र करने वाला महाव्रत है। शिव भक्त इस पुनीत दिन शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ा कर जलाभिषेक करते हैं तथा रात्रि को चार प्रहर का जागरण कर पूजा-अर्चना करते हैं तथा शिव महापुराण की कथा का श्रवण करते हैं। श्री गीता जी में भगवान स्वयं कहते हैं कि सम्पूर्ण प्राणियों के लिए जो रात्रि है, उस नित्य ज्ञानस्वरूप परमानंद की प्राप्ति में स्थितप्रज्ञ योगी जागता है। 

इस दिन ॐ नम: शिवाय’ षडक्षर मंत्र जोकि संपूर्ण विद्याओं का बीज है, का कल्याणकारी मंत्र जाप करना चाहिए। शिव पुराण में स्वयं भगवान शिव ने संपूर्ण देहधारियों के, संपूर्ण मनोरथों की सिद्धि के लिए इस मंत्र को प्रतिपादित किया है। यह मंत्र महान अर्थ से परिपूर्ण है। 

महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव के दिव्य अवतरण का पर्व है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही शिवरात्रि कहलाती है। शिव पुराण की ईशान संहिता में वर्णित है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को आदिदेव भगवान शिव कोटि सूर्य के समान प्रभाव वाले शिवलिंग रूप में प्रकट हुए। कोटि रुद्र संहिता में भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंगों का वर्णन है- सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमेश्वर, विश्वनाथ, त्रयम्बकेश्वर, रामेश्वर, नागेश्वर तथा घुसेश्वर ज्योर्तिलिंगों के दर्शन मात्र से जीव पापमुक्त हो जाता है।

मां सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में भगवान शिव का अपमान करने पर, जब स्वयं को योगाग्रि में भस्मीभूत कर दिया, तब भगवान शिव के आदेश से वीरभद्र द्वारा दक्ष के यज्ञ का न केवल विध्वंस किया बल्कि उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया। देवताओं की प्रार्थना पर आशुतोष भगवान शिव ने दक्ष को पुन: जीवनदान दिया। तब दक्ष ने अपने अक्षम्य अपराध की क्षमा मांगी। तब मां सती ने हिमालय तथा मैना के घर पार्वती जी के रूप में जन्म लिया। मां पार्वती जी ने तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। तब शिवरात्रि के दिन ही शिव-पार्वती का विवाह हुआ।  

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