निर्जला एकादशी पर अन्न क्यों नहीं खाना चाहिए?

Edited By ,Updated: 27 May, 2015 01:15 PM

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सामान्यता भारतीय सौर वर्ष में चौबीस एकादशियां आती हैं, परंतु अधिकमास की दो एकादशियों सहित 26 एकादशी व्रत का विधान है परंतु सभी एकादशियों में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी सर्वाधिक फलप्रदाय समझी जाती है क्योंकि

सामान्यता भारतीय सौर वर्ष में चौबीस एकादशियां आती हैं, परंतु अधिकमास की दो एकादशियों सहित 26 एकादशी व्रत का विधान है परंतु सभी एकादशियों में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी सर्वाधिक फलप्रदाय समझी जाती है क्योंकि ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखने से वर्ष भर की एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी कहा जाता है। पंचाग अनुसार वृष व मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है।

 निर्जला अर्थात बिना जल व अन्न ग्रहण किए। निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ ही जल का संयम भी जरुरी है। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। अतः निर्जला एकादशी व्रत कठिन तप के समान महत्त्व रखता है। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

धार्मिक मतानुसार व्यक्ति मात्र निर्जला एकादशी का व्रत करके वर्ष भर की पच्चीस एकादशी का फल पा सकता है। अन्य पच्चीस एकादशी के व्रत भंग होने के दोष भी निर्जला एकादशी के व्रत करने से दूर हो जाते हैं।

पौराणिक मतानुसार वेदव्यासजी ने पांडवों को निर्जला एकादशी व्रत का संकल्प कराया था। वेदव्यासजी अनुसार सभी 26 एकादशियों में अन्न खाना वर्जित है। एकादशी पर सर्व पाप अन्न में बसते हैं। अतः एकादशी पर अन्न खाने से, पाप के फल का भागी होना पड़ता है। भीमसेन को छोडकर कुंती सहित चारों पांडव एकादशी व्रत का पालन करते थे। भीमसेन जी के अनुसार उनके उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती थी, जो की मात्र आत्याधिक मात्र मे भोजन करके ही शांत होती थी। अतः भीमसेन एकादशी व्रत का पालन नहीं करते थे।

इस एकादशी को भीमसेन एकादशी व पांडव एकादशी कहे जाने के पीछे भी पौराणिक वृतांत है। व्यासजी ने भीमसेन से कहा यदि आप नरक को दूषित समझते हैं व आपके लिए स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है तो आपको दोनों पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन नहीं करना चाहिए। भीमसेन बोले कि मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूं। अतः मैं पूरे वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूं। जिससे स्वर्ग की प्राप्ति हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूं, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइए। मैं उसका यथोचित रूप से पालन करूंगा। इस पर व्यासजी ने भीमसेन को निर्जला एकादशी का वृतांत सुनाया। जिसे भीमसेन जी मे पूर्ण किया। इसी कारण इस एकादशी को भीमसेन एकादशी कहते हैं।

निर्जला एकादशी तिथि के सूर्योदय से अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल व भोजन का त्याग किया जाता है। इसके बाद दान, पुण्य कर व्रत का विधान पूर्ण होता है। इस दिन विधिवत भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन जल से भरे कलश पर सफ़ेद वस्त्र ढककर व उस पर चीनी तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दिया जाता है।

सामर्थ्य अनुसार अन्न, जल, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी, पंखी व फलादि का दान किया जाता है। शास्त्रानुसार इस दिन स्नान, दातुन व कुल्ला के अलावा पानी का सेवन नहीं क्या जाता। परंतु फलों का रस, दूध, फल, पनीर, आलू, घी, मूंगफली सैंधा नमक, काली मिर्च का सेवन किया जा सकता हैं। शास्त्रानुसार सदाचारी ब्राह्मण व अपने गुरु-आज्ञा से ही एकादशी व्रत के दिन कुछ भी खाया जा सकता है। 8 वर्ष से छोटी आयु या 80 वर्ष से वृद्ध को इससे छूट है।

नोट
: वर्ष 2015 मे निर्जला एकादशी का व्रत शुक्रवार दिनांक 29.05.15 को है।

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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