Ashadha Purnima: आज है आषाढ़ पूर्णिमा, इस शुभ मुहूर्त में करें अपने गुरु की पूजा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Jul, 2023 09:53 AM

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सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के पांचवें मानस पुत्र महर्षि भृगु जी महाराज के द्वारा रचित भृगु संहिता में गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि गुरु शब्द का पर्यायवाची नहीं है। गु का अर्थ बताया गया है अंधकार और

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Guru Purnima 2023: सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के पांचवें मानस पुत्र महर्षि भृगु जी महाराज के द्वारा रचित भृगु संहिता में गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि गुरु शब्द का पर्यायवाची नहीं है। गु का अर्थ बताया गया है अंधकार और रु का अर्थ बताया गा है रोशनी, जिसका अर्थ हुआ एक ऐसा व्यक्तित्व जो अंधकार से रोशनी की और ले जा सके। श्री भृगु जी महाराज ने एक इंसानी जीवन में तीन प्रकार के गुरु का वर्णन किया है। पहला गुरु माता को कहा गया है जो कि हमें बोलना, चलना, खाना-पीना इत्यादि प्रारम्भ में सब कुछ सिखाती है। दूसरा गुरु होता है, शिक्षा गुरु जो कि हमें अक्षर ज्ञान की शिक्षा देता है क्योंकि शिक्षा के बिना इंसान और पशु एक समान ही होते हैं। तीसरा सबसे महत्वपूर्ण होता है दीक्षा गुरु जो कि हमारे मानव जीवन को इस पूरे त्रिलोक का सार तत्व ज्ञान के रूप में देकर दीक्षित करता है और इस संसार रूपी भवसागर से पार होने का मार्गदर्शन करता है।

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Ashadha Purnima shubh muhurat: आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को ही गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा का यह पावन त्यौहार इस वर्ष 3 जुलाई 2023 को दिन सोमवार के दिन मनाया जायेगा। पूर्णिमा तिथि आरम्भ 2 जुलाई 2023 को रात्रि 8 बजकर 22 मिन्ट से समाप्ति 3 जुलाई 2023 को सांयकार 5 बजकर 9 मिनट पर रहेगा। उदया तिथि के अनुसार गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई 2023 को ही मनायी जायेगी। इस दिन गुरु शिष्य को तिलक करने की परम्परा होती है। कोई भी शिष्य पूरे साल अपने गुरु के पास जाएं या न जाये परन्तु गुरु पूर्णिमा के दिन जाकर नतमस्तक होता है, तो गुरु पूर्ण वर्ष के आर्शीवाद इसी दिन एकसाथ ही प्रदान कर देता है। जिसका प्रभाव पूर्ण वर्ष शिष्य पर बना रहता है।

महर्षि भृगु जी जीवित गुरु को मानव जीवन के लिये अति महत्वपूर्ण बताते हैं। भृगु जी समझाते हैं कि गुरू किसी व्यक्ति का नाम नहीं है बल्कि यह तो एक पदवी होती है और इंसानी जीवन के लिये इस पद की क्यों आवश्यकता होती है। गुरु रूपी पद असलियत में भगवान का ही रूप होता है। जिस प्रकार हम सूर्य को नगन आंखों से नहीं देख सकते, अगर देख लें तो अंधे हो सकते हैं। परन्तु अगर हम चंद्रमा को देख सकते हैं ओर ऐसा करने से हमारी नेत्र ज्योति में भी बढ़ौतरी हो सकती है। चंद्रमा का स्वयं का कोई प्रकाश नहीं होता, वह प्रकाश तो सूर्य का ही होता है। जिसे चंद्रमा द्वारा अवशोषित करके ठंडक में परिवर्तित करके फैलाया जाता है। ठीक उसी प्रकार हम देव आत्माओं के तप तेज के कारण उनके प्रत्यक्ष दर्शन नहीं कर सकते क्योंकि हमारी शारीरिक एवं बौद्धिक क्षमता ही नहीं है। हमें अपने इष्टदेव के दर्शन अपने गुरु के रूप में ही करने चाहिए, जो कि चंद्रमा की भांति शीतल, शांत एवं शीतलता प्रदान करने वाला होता है। शक्ति तो देव आत्माओं की ही होती है परन्तु वह शक्ति जीवित गुरु के द्वारा प्रदान की जाती है।

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गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखकर श्री हरि विष्णु जी की पूजा की जाती है। इस दिन अन्न दान, भंडारा इत्यादि किया व करवाया जाता है। इस दिन शिष्य को विधि-विधान से व्रत रखकर गुरु की पूजा अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से उसे पूर्ण वर्ष गुरु कृपा का आर्शीवाद प्राप्त होता है और गुरु कवच बनकर कदम-कदम पर अपने शिष्य की रक्षा करता रहता है।

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Sanjay Dara Singh
AstroGem Scientists
LLB., Graduate Gemologist GIA (Gemological Institute of America), Astrology, Numerology and Vastu (SSM)

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