Atharvaveda updesh: अथर्ववेद का उपदेश: समय के हर पल का सदुपयोग कीजिए

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Jan, 2024 08:51 AM

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वेद की ऋचाओं (पद्य में रचे हुए वेद के श्लोकों को ऋचा कहते हैं) में मानव जीवन निर्माण की संपूर्ण सामग्री वर्णित है। ये ऋचाएं सम्पूर्ण मानव जाति की मार्गदर्शक हैं। अथर्ववेद की एक ऋचा में काल (समय) के सदुपयोग का संदेश देते हुए कहा गया है कि -

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Atharvaveda updesh: वेद की ऋचाओं (पद्य में रचे हुए वेद के श्लोकों को ऋचा कहते हैं) में मानव जीवन निर्माण की संपूर्ण सामग्री वर्णित है। ये ऋचाएं सम्पूर्ण मानव जाति की मार्गदर्शक हैं। अथर्ववेद की एक ऋचा में काल (समय) के सदुपयोग का संदेश देते हुए कहा गया है कि - 

‘कालो अश्वो वहति सप्तरश्मि: सहस्राक्षो अजरो भूरिरेता:। तमारोहन्ति कवयो विपश्चित: तस्य चक्रा भुवनानि विश्वा।।

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समय रूपी महाबली घोड़ा चल रहा है और यह सम्पूर्ण जगत रूपी रथ को अपनी सात रस्सियों के माध्यम से खींच कर लिए जा रहा है। 
इस ब्रह्मांड के सब प्रकार के जगतों में सात तत्व काम कर रहे हैं। सात लोक, प्राणियों में सात प्राण, सात धातुएं ही इस काल रूपी घोड़े की रस्सियां हैं, जिनसे यह संसार इस समय रूपी घोड़े से जुड़ा हुआ है। 

इस काल की महाशक्ति से जुड़कर इस ब्राह्मांड के सभी लोक, मनुष्य, प्राणी चक्र की तरह घूम रहे हैं। यह समय रूपी घोड़ा जड़ तथा चेतन समस्त जगत को चला रहा है। 

ब्रह्मांड, असंख्य वर्षों की आयु वाले सौरमंडल भी जीर्ण-शीर्ण होकर इस अनंत काल में लीन हो गए। यह काल रूपी अश्व कभी भी जीर्ण न होने वाला अत्यंत वेगवान है तथा प्रति क्षण क्रियाशील है। 

मानव के जन्म से लेकर मृत्यु तक उसके पास अपने कार्यों को संपूर्ण करने के लिए तथा जीवन को आनंदमय बनाने के लिए समय सबसे बड़ी पूंजी है।
 
इस मन्त्र में मनुष्य को पूर्ण विवेक तथा सद्ज्ञान से अलंकृत होकर इस समय रूपी घोड़े पर आरूढ़ होने का उपदेश दिया गया है। मनुष्य को सचेत करते हुए कहा गया है कि समय के एक-एक क्षण का सदुपयोग अनिवार्य है। श्लोक के अगले भाग में कहा गया है कि जो ज्ञानी तथा विवेकी हैं, जो क्रियाशील भूत और भविष्य के प्रति सचेत हैं, ऐसे मनस्वी ही इस समय रूपी घोड़े पर सवार होते हैं। आत्मिक विभूतियों से युक्त जागरूक साधक ही इस घोड़े पर सवार होने में सक्षम बनते हैं। 

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समय का यह अश्व प्रतिपल गतिशील है और सम्पूर्ण जड़ तथा चेतन जगत में यह शाश्वत रूप से चलायमान है। अज्ञानी, चंचल वृत्ति मनुष्य तथा तामसिकता के अंधकार में धंसे नीच दृष्टि वाले इस महाशक्ति काल के महत्व को नहीं पहचान पाते, इसलिए ऐसे अकर्मण्य मानसिकता के व्यक्ति अपने जीवन पथ से विचलित हो जाते हैं। वास्तव में समय एक महाशक्ति है, इस सत्य को आत्मसात करके जीवन यापन करने वाले ही यशस्वी एवं तेजस्वी बनते हैं। 

वेद हमें जीवन के हर क्षण का सदुपयोग करने तथा इस काल रूपी महाशक्ति को व्यर्थ न करने की प्रेरणा प्रदान करता है। काल की गतिशीलता तथा विशालता को देखते हुए सदैव दिव्य दृष्टि से समय के अनुसार अपने जीवन में हमें श्रेष्ठ कर्म करते रहना चाहिए। 

महान ऋषियों, साधकों तथा विश्वविख्यात महापुरुषों ने इसी काल रूपी शक्ति के महत्व को अपने जीवन में आत्मसात करके प्रतिष्ठा और यश प्राप्त किया। कहीं हमारी थोड़ी-सी अज्ञानता तथा असावधानी से यह समय का चक्र हमें अपने पैरों से न रौंद दे, इससे पहले हमें जागरूक होने की आवश्यकता है। 

मानसिक एवं आत्मिक शक्तियों के माध्यम से हम इस समय रूपी घोड़े पर सवार होने में समर्थ बनें, इसी में अमूल्य मानव जीवन की सफलता का रहस्य विद्यमान है। 

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