Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Jul, 2017 10:26 AM
किसी नगर में एक गुरु का आश्रम था। एक बार गुरु जी अपने एक शिष्य (जो एक सम्पन्न परिवार से था) के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक जगह पर देखा कि पुराने हो चुके एक जोड़ी
किसी नगर में एक गुरु का आश्रम था। एक बार गुरु जी अपने एक शिष्य (जो एक सम्पन्न परिवार से था) के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक जगह पर देखा कि पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते वहां उतरे पड़े हैं। जूते संभवत: पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर के थे, जो अब अपना काम खत्म कर घर वापस जाने की तैयारी कर रहा था।
शिष्य को मजाक सूझा। उसने अपने गुरु से कहा, ‘‘गुरु जी, क्यों न हम ये जूते कहीं छिपाकर झाडिय़ों के पीछे छिप जाएं। जब वह मजदूर इन्हें यहां न पाकर परेशान होगा तो बड़ा मजा आएगा।’’
यह सुनकर गुरु ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘किसी गरीब के साथ इस तरह का भद्दा मजाक करना ठीक नहीं है। अगर तुम्हें मजदूर की प्रतिक्रिया देखनी ही है तो कुछ अलग भी किया जा सकता है। क्यों न हम इन जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और छिपकर देखें कि इसका मजदूर पर क्या प्रभाव पड़ता है।’’
शिष्य ने ऐसा ही किया। इसके बाद वे दोनों पास की झाडिय़ों में छिप गए। मजदूर जल्द ही अपना काम खत्म कर घर जाने के लिए वहां आ खड़ा हुआ। मगर उसने जैसे ही अपना एक पैर जूते में डाला, उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ। उसने जल्दी से जूता हाथ में लिया और उसके भीतर झांककर देखा तो पाया कि उसमें कुछ सिक्के पड़े हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने आस-पास निगाह दौड़ाई, मगर उसे वहां कोई नजर नहीं आया।
किसी को न पाकर उसने सिक्के अपनी जेब में डाल लिए। अब उसने पहनने के लिए दूसरा जूता उठाया, किंतु उसमें भी सिक्के पड़े थे। यह देखकर मजदूर भाव-विह्वल हो गया। उसने हाथ जोड़कर ऊपर की ओर देखते हुए कहा, ‘‘हे ईश्वर, समय पर मिली इस सहायता के लिए उस अनजान सहायक का लाख-लाख धन्यवाद। उसकी दया के कारण आज मेरी बीमार पत्नी को दवा और भूखे बच्चों को भरपेट रोटी मिल सकेगी।’’
मजदूर की बातें सुनकर शिष्य की आंखें भर आईं। तब गुरु जी ने उससे कहा, ‘‘क्या तुम्हारी मजाक वाली बात की अपेक्षा जूते में सिक्के डालने से तुम्हें कम खुशी मिली?’’
शिष्य बोला, ‘‘आपने आज मुझे जो पाठ पढ़ाया है, उसे जीवनभर नहीं भूलूंगा। आज मैं समझ गया हूं कि लेने की अपेक्षा देना अधिक सुखदायी है। देने का आनंद असीम है।’’