Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Apr, 2018 09:38 AM
भारत भर में दलितों के सामाजिक, राजनीतिक व अन्य क्षेत्रों में हो रहे उत्थान संबंधी संघर्ष का सारा श्रेय दलितों के मसीहा युगपुरुष वीर शिरोमणि रत्न डा. भीमराव अम्बेडकर को जाता है। उन्होंने जानवरों से भी बदतर जीवन जी रहे लाखों-करोड़ों दलितों को मौलिक...
भारत भर में दलितों के सामाजिक, राजनीतिक व अन्य क्षेत्रों में हो रहे उत्थान संबंधी संघर्ष का सारा श्रेय दलितों के मसीहा युगपुरुष वीर शिरोमणि रत्न डा. भीमराव अम्बेडकर को जाता है। उन्होंने जानवरों से भी बदतर जीवन जी रहे लाखों-करोड़ों दलितों को मौलिक अधिकार दिलाकर संघर्ष की राह पर चलने को तैयार ही नहीं किया बल्कि उनमें संघर्ष की ऊर्जा का संचालन भी किया। उनके संघर्षशील जीवन की झलक से ही बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
उन्हीं के जीवन-दर्शन को आधार बनाकर समस्त दलितों का उत्थान संभव है। गरीबी की हालत में उन्होंने शिक्षा ग्रहण की और अपने मनोबल को मजबूत करते गए। तभी तो देर रात तक सड़कों पर लगे खम्भों की रोशनी में पढ़ कर उच्च पदवी प्राप्त की और अपना समस्त जीवन दलित समाज के उत्थान हेतु समर्पित कर दिया।
1907 में मैट्रिक पास होने पर बम्बई के दलितोंं ने एक सभा में बाबा साहिब को सम्मानित किया। 17 वर्ष की आयु में 9 वर्षीय रामा बाई से बिल्कुल सादे ढंग से उनकीे शादी हुई। उन्होंने 1912 में बी.ए. पास की। 1913 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने अमेरिका गए, 1915 में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी से एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। 1919 में दलितों की आवाज बुलंद करने हेतु ‘मूकनायक’ अर्थात ‘गूंगों का नेता’ पत्रिका शुरू की। 1920 में शिक्षा ग्रहण करने लंदन (इंगलैंड) चले गए। 1923 में लंदन से बैरिस्टर और डाक्टर ऑफ फिलॉस्फी की डिग्री प्राप्त करके ‘डा. भीम राव अम्बेडकर’ बनकर भारत लौटे।
उनके जीवन दर्शन का मुख्य संदेश ‘पढ़ो-जुड़ो और संघर्ष करो’ हम सबको उन्नति का मार्ग दर्शाता आ रहा है। दलितों में जिसने भी उपरोक्त वाक्य को अपनाया उसी ने मौलिक अधिकारों को प्राप्त कर स्वच्छ जीवन-यापन का आनंद प्राप्त किया। उनका कथन है कि सामाजिक क्रांति के बिना राजनीतिक क्रांति अर्थहीन है अर्थात जब तक हमारी सामाजिक व्यवस्था में सुधार नहीं होता, तब तक हमारे राजनीतिक प्रयास असफल ही रहेंगे।
बाबा साहिब ने मन में ठान लिया था कि अब दलित अधिकारों की खातिर ही लड़ना है। सबसे पहले उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अछूतों को सामाजिक न्याय दिलवाने के लिए सबको एकजुट करना होगा क्योंकि एकता के बल पर ही संघर्ष सफल हो सकता है।
19-20 मार्च 1926 को उन्होंने कोलाबा में एक विशाल महार सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें पिछड़ी जातियों के एक लाख से भी ज्यादा लोग शामिल हुए थे। बाबा साहिब ने कहा कि अब समय आ गया है कि जिन्हें समाज अछूत कहता है वे सब एक हो जाएं। तुम किसी से क्यों दबते हो, एकजुट हो जाओ। तुम सबसे बड़ी ताकत हो। दृढ़ इरादा कर लो। हमें अपने आपको बदलना है और अपने प्रति समाज का रवैया बदलना है, जो बात मुंह से निकालो वह ठोस होनी चाहिए। उसमें वजन होना चाहिए। दबी जुबान में बोलना छोड़ दो। तुम्हारे साथ अगर गलत होता है, अन्याय होता है तो ऊंची आवाज में उसका विरोध करो।
बाबा साहिब ने पूरा जीवन संघर्ष में ही बिताया। उनका कहना है कि जो कुछ मैं कर सका, वह जीवन भर मुसीबतें सहन करके विरोधियों से टक्कर लेने के बाद कर पाया हूं, जिस कारवां को आप यहां देख रहे हैं उसे मैं अनेक कठिनाइयों से यहां ला पाया हूं। अनेक अवरोध, जो इसके मार्ग में आ सकते हैं, उनके बावजूद इस कारवां को आगे बढ़ते रहना है। अगर मेरे अनुयायी इसे आगे ले जाने में असमर्थ रहे तो इसे यहीं पर छोड़ देना चाहिए, जहां यह अब है परन्तु किन्हीं भी परिस्थितियों में इसे पीछे नहीं हटने देना है। मेरी जनता के लिए मेरा यही संदेश है।’’
बाबा साहिब ने दलितों को उनके अधिकार दिलाए। अपनी योग्यता के बलबूते पर भारत का संविधान लिखा और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया। भारत की सभी पिछड़ी दलित जातियों को शिक्षा के लिए प्रेरित किया और राजनीतिक शक्ति का हथियार थमाकर उसे इतना मजबूत बना दिया कि वह अपना सदियों का खोया मान-सम्मान फिर से प्राप्त कर राष्ट्र की मुख्यधारा में सिर ऊंचा करके खड़ा हो गया है।