सरहिंद की शौर्य गाथा- छोटे साहिबजादों ने शहीदी दे दी लेकिन धर्म नहीं त्यागा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Jan, 2024 07:50 AM

bravery story of sirhind

फतेहगढ़ साहिब वह पवित्र धरती है, जहां श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के दो छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी ने माता गुजरी जी (अपनी प्यारी दादी) समेत शहादत प्राप्त की। यह स्थान गवाह है उन

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Bravery story of Sirhind: फतेहगढ़ साहिब वह पवित्र धरती है, जहां श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के दो छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी ने माता गुजरी जी (अपनी प्यारी दादी) समेत शहादत प्राप्त की। यह स्थान गवाह है उन ऐतिहासिक पलों का, जब छोटी-छोटी उम्र के बच्चों ने देश की हुकूमत के आगे न सिर झुकाया, न ही अधीनता मानी और न ही उनकी कोई बात मानने में रुचि दिखाई। गुरु गोबिन्द सिंह जी के छोटे साहिबजादों में से बाबा जोरावर सिंह जी का जन्म मघर सुदी 3 सम्वत्, 1753 को और बाबा फतेह सिंह जी का जन्म फागुन सूद 7 सम्वत्, 1755 को आनन्दपुर साहिब में माता जीतो जी की कोख से हुआ।

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श्री आनंदपुर साहिब में जब मुगल सेना और बाईधार के राजाओं ने इकठ्ठा होकर किला आनंदगढ़ को घेरा डाल दिया तो वह काफी लम्बा चला। ऐसे में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 400 सिंह सैनिकों और परिवारों समेत 6 और 7 पौष वाली रात को आनंदपुर साहिब को छोड़ दिया और रोपड़ की तरफ रवाना हो गए। दुश्मनों ने अपनी कसमों को तोड़ते हुए गुरु जी पर हमला कर दिया।

सिरसा नदी के किनारे आकर गुरु जी का परिवार बिछुड़ गया। बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह जी और बाबा जुझार सिंह जी गुरु साहिब और सिंहों समेत चमकौर साहिब की ओर चले गए। गुरु जी की पत्नियों माता सुन्दरी जी और माता साहिब कौर जी को भाई मनी सिंह जी दिल्ली की तरफ सुरक्षित ले गए।

छोटे साहिबजादे और माता गुजरी जी रात के अंधेरे में गुरु जी से बिछुड़ गए और सिरसा नदी के साथ-साथ चलते-चलते गांव डेरा चक्क वाली जगह पर आ गए। इस जगह पर सतलुज और सिरसा नदियां इकठ्ठी होती हैं। वे एक मगाह कुंमा माशकी (भिश्ती) जो जबरदस्ती हिंदू से मुसलमान बनाया गया था, की झोंपड़ी में आ रुके। यहां से माता गुजरी जी तथा दोनों छोटे साहिबजादों को गुरु घर का एक रसोइया गंगू अपने गांव सहेड़ी ले गया। यह गांव जिला रोपड़ में मोरिंडा के पास स्थित है।

माता गुजरी जी के पास स्वर्ण मुद्राओं की थैली देख गंगू का मन बेईमान हो गया। जब सभी सो गए तो उसने थैली चुरा ली। माता जी ने सुबह थैली गायब देखी तो उन्होंने गंगू से पूछ लिया। वह साफ मुकर गया, उल्टा शोर मचाने लगा कि एक तो उसने बादशाह के बागियों को घर पर पनाह दी, दूसरा उस पर चोरी का इल्जाम लगाया जा रहा है।

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उसने मोरिंडा थाने में पहुंच कर वहां के थानेदारों जानी खान और मानी खान के पास शिकायत कर दी और दोनों साहिबजादों और माता जी को गिरफ्तार करवा दिया। उन्हें मोरिंडा ले जाया गया और वहां से सरहिन्द में वजीद खान के पास भेज दिया गया जिसने माता जी और साहिबजादों को ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया। जब अगले दिन सिपाही लेने के लिए आए तो माता जी ने साहिबजादों को आप तैयार करके कचहरी की तरफ भेजा। वजीद खान ने उनको दीन कबूल करने के लिए कहा, उनको तरह-तरह के लालच भी दिए गए, परन्तु कोई लालच उनको अपने इरादों से डिगा न सका। फिर साहिबजादों पर अत्याचार शुरू किए गए।

आखिर साहिबजादों को नींवों में चिनवा कर शहीद करने की सजा सुना दी गई। जब साहिबजादों को चिना जा रहा था, उस समय भी वजीद खान ने कहा कि अपना धर्म बदल लो।

यह सुन कर जोरावर सिंह ने कहा: ‘मौत असानूं प्यारी लगे। धर्म त्यागना काती वग्गे।’

साहिबजादों को चिन दिया गया। फिर जब यह दीवार गिर पड़ी तो साहिबजादों को छुरी के साथ जिबह करके शहीद कर दिया गया।
बाद में बाबा बन्दा सिंह बहादुर ने इन शहादतों का बदला सरहिन्द की ईंट के साथ ईंट बजाकर लिया। जहां साहिबजादों को दीवार में चिना गया था, वहां गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब और जहां उनका संस्कार किया गया, वहां गुरुद्वारा ज्योति स्वरूप साहिब बना हुआ है।

साहिबजादों की याद में इस वर्ष 26, 27, 28 दिसम्बर को शहीदी सभा का आयोजन फतेहगढ़ साहिब में होता है।

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