आचार्य चाणक्य से जानें, राजनीति में कौन उठा रहा है आपका फायदा?

Edited By Jyoti,Updated: 27 Nov, 2019 05:40 PM

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राजनीति ऐसा क्षेत्र हैं जहां आपके कभी नहीं समझ आता कि कौन आपका अपना कौन व आपका शत्रु है। इसीलिए तो कहा जाता है कि इस क्षेत्र में पैर जमाने के लिए कुछ लोगों का तो पूरा जीवन निकल जाता है।

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राजनीति ऐसा क्षेत्र हैं जहां आपके कभी नहीं समझ आता कि कौन आपका अपना कौन व आपका शत्रु है। इसीलिए तो कहा जाता है कि इस क्षेत्र में पैर जमाने के लिए कुछ लोगों का तो पूरा जीवन निकल जाता है। परंतु आपको बता दें भारत के इतिहास में अपने ज्ञान व अपनी नीतियों से पहचान बनाने वे आचार्य चाणक्य ने इस क्षेत्र में निके रहने की कुछ तरकीबें बताई हैं। जिसके अनुसार इस क्षेत्र के लोगों  को इस बारे में अच्छे से जानकारी होनी चाहिए कि कौन उनका सच्चा दोस्त है व कौन उनका शत्रु। तो आइए जानते हैं इनके द्वारा बताए गए राजनीति के कुछ सूत्र।

राज्‍य तथा राज चाहने वालों के बारे में आचार्य चाणक्‍य कहते हैं कि इंद्रियों पर विजय राज्य का आधार बनता है। इंद्रियों पर विजय का आधार विनय और नम्रता होता है। विद्वान व्यक्तियों के प्रति समर्पण से विनय की प्राप्ति होती है और विनयशीलता से ही अधिकतम कार्य करने की निपुणता भी आती है।

इनका मानना है कि राज्याभिलाषी लोगों को चाहिए कि वे अपने कर्तव्यों का पालन अधिक क्षमता के साथ करें। परंतु इसके लिए राज्य के पदाधिकारिओं को अपनी इंद्रियों पर भी नियंत्रण रखना चाहिए तथा अपनी आतंरिक क्षमता का विकास करना होगा। चाणक्य कहते हैं कि हर किसी की मित्रता के पीछे कोई न कोई स्वार्थ छिपा होता है। चाहे कोई माने न मानें परंतु यह एक कड़वा सत्य है।
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श्लोक-
आत्मवर्गं परित्यज्य परवर्गं समाश्रयेत् ।
स्वयमेव लयं याति यथा राजाऽन्यधर्मत:।।
अर्थ: जो व्यक्ति अपने वर्ग के लोगों को छोड़कर दूसरे वर्ग का सहारा लेता है, वह उसी तरह नष्ट होता है जैसे एक अधर्म का आश्रय लेने वाले राजा का विनाश होता है।

यथा चतुर्भि: कनकं परीक्ष्यते निघर्षणं छेदनतापताडनै:।

अर्थ: जिस तरह सोने को परखने के लिए उसे रगड़ा जाता है, काटकर देखा जाता है, आग में तपाया जाता है, पीटकर देखा जाता है कि वह शुद्ध है या नहीं। अगर सोने में किसी भी तरह की मिलावट होती है को इन कामों से सामने आ जाएगी। इसी तरह किस भी व्यक्ति के भरोसेमंद होने का पता आप चार बातों के आधार पर लगा सकते हैं।

पहला- व्यक्ति में त्याग भावना कितनी है?
दूसरा- क्या वह दूसरों की खुशी के लिए अपने सुख का त्याग कर सकता है? उसका चरित्र कैसा है? यानf दूसरों के लिए वो इंसान क्या भावनाएं रखता है?
तीसरा- उसके गुण और अवगुण देखें।
चौथा- उसके कर्मों पर ध्यान दें। क्या सामने वाला गलत तरीकों में लिप्त होकर धन अर्जित तो नहीं कर रहा।
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धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसे वसेत॥
अर्थ: जहां कोई सेठ, वेदपाठी विद्वान, राजा और वैद्य न हो, जहां कोई नदी न हो, इन पांच स्थानों पर एक दिन भी नहीं रहना चाहिए।

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