आइए फ्री में खरीदें खुशियां

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 May, 2018 07:00 PM

come buy happiness for free

मनीष ऑफिस से घर की ओर जा रहा था। फुटपाथ पर एक छोटी-सी डलिया लिए एक बूढ़ी औरत बैठी थी, शायद कुछ बेच रही थी। मनीष पास गया तो देखा कि छोटी-सी डलिया में वह बूढ़ी औरत संतरे बेच रही थी।

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मनीष ऑफिस से घर की ओर जा रहा था। फुटपाथ पर एक छोटी-सी डलिया लिए एक बूढ़ी औरत बैठी थी, शायद कुछ बेच रही थी। मनीष पास गया तो देखा कि छोटी-सी डलिया में वह बूढ़ी औरत संतरे बेच रही थी। देखो कैसा जमाना है लोग मॉल जाकर महंगा सामान खरीदना पसंद करते हैं, कोई इस बेचारी की तरफ देख भी नहीं रहा, मनीष मन ही मन यह बात सोच रहा था। बाइक रोककर मनीष बुढ़िया के पास गया, बोला- अम्मा 1 किलो संतरे दे दो। 
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बुढ़िया की आंखों में उसे देख़कर एक चमक-सी आई और तेजी से वह संतरे तोलने लगी। पैसे देकर मनीष ने थैली से एक संतरा निकाला और खाते हुए बोला-अम्मा संतरे मीठे नहीं हैं और यह कहकर उसने एक संतरा उस बुढ़िया को दे दिया, वह संतरा चख़कर बोली-मीठा तो है बाबू। मनीष बिना कुछ बोले थैली उठाए चलता बना। 
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अब यह रोज़ का क्रम हो गया, मनीष रोज़ उस बुढ़िया से संतरे खरीदता और थैली से एक संतरा निकालकर खाता और बोलता-अम्मा संतरे मीठे नहीं हैं, और कहकर बचा संतरा अम्मा को देता। बुढ़िया संतरा खाकर बोलती-मीठा तो है बाबू। बस फिर मनीष थैली लेकर चला जाता। कई बार मनीष की बीवी भी उसके साथ होती थी। वह यह सब देख़कर बड़ा आश्चर्यचकित होती थी। 
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एक दिन उसने मनीष से कहा-सुनो जी, ये सारे संतरे रोज़ इतने अच्छे और मीठे होते हैं फिर भी तुम क्यों रोज़ उस बेचारी के संतरों की बुराई करते हो।

मनीष हल्की मुस्कान के साथ बोला- उस बूढ़ी मां के सारे संतरे मीठे ही होते हैं लेकिन वह बेचारी कभी खुद उन संतरों को नहीं खाती। मैं तो बस ऐसा इसलिए करता हूं कि वह मां मेरे संतरों में से एक खा ले और उसका नुक्सान भी न हो। 

उनके रोज़ का यही क्रम पास ही सब्जी बेचती मालती भी देख़ती थी। एक दिन वह बूढ़ी अम्मा से बोली- यह लड़का रोज़ संतरा खरीदने में कितना चिकचिक करता है। रोज़ तुझे परेशान करता है, फिर भी मैं देखती हूं कि तू उसको एक संतरा फालतू तोलती है, क्यों?
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बूढ़ी बोली- मालती, वह लड़का मेरे संतरों की बुराई नहीं करता बल्कि मुझे रोज़ एक संतरा खिलाता है और उसको लगता है कि जैसे मुझे पता नहीं है लेकिन उसका प्यार देखकर खुद ही एक संतरा उसकी थैली में फालतू चला जाता है। 

विश्वास कीजिए दोस्तो, कभी-कभी ऐसी छोटी-छोटी बातों में बहुत आनंद भरा होता है। खुशियां पैसे से नहीं खरीदी जा सकतीं, दूसरों के प्रति प्रेम और आदर की भावना जीवन में मिठास घोल देती है। हां, एक बात और-‘देने में जो सुख है वह पाने में नहीं।’ दोस्तो, हमेशा याद रखना कि खुशियां बांटने से बढ़ती हैं। 
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