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इन 3 रास्तों से होकर पितृलोक पहुंचते हैं पूर्वज!

Edited By Jyoti,Updated: 26 Sep, 2019 01:57 PM

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जैसे कि आप सब जानते हैं कि पितृ पक्ष समाप्त होने में अब केवल 2 ही दिन रह गए हैं। अपनी वेबसाईट के माध्यम से आपको इससे जुड़ी लगभग सारी जानकारी दे चुके हैं।

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जैसे कि आप सब जानते हैं कि पितृ पक्ष समाप्त होने में अब केवल 2 ही दिन रह गए हैं। अपनी वेबसाईट के माध्यम से आपको इससे जुड़ी लगभग सारी जानकारी दे चुके हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको बताने वाले हैं कि तृप्त हो जाने वाली पुण्य आत्माएं किस मार्ग द्वारा पितृलोक आदि में प्रवेश करती हैं। बता दें अगर आप इससे जुड़ी अन्य जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं जैसे कि पितृलोक के अलावा पितरों की कौन सी गति मिलती है अर्थात मृत्यु के बाद उन्हें कहां स्थान मिलता है तो किल्क करें यहां। धार्मिक पुराणों की मानें तो आत्मा तीन मार्ग द्वारा उर्ध्व (उर्ध्व गति) या अधोलोक (अधोगति) की यात्रा करती है।

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ये हैं वो तीन मार्ग-
1. अर्चि मार्ग
2. धूम मार्ग
3. उत्पत्ति-विनाश मार्ग।

*अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक: अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए है।

*धूममार्ग पितृलोक : धूममार्ग पितृलोक की यात्रा के लिए है।

*उत्पत्ति-विनाश मार्ग : उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है। यह यात्रा बुरे सपनों की तरह होती है।

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कहा जाता है जब भी किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, आत्मा शरीर को त्याग कर उत्तर कार्यों के बाद यात्रा प्रारंभ करती है तो उसे उपरोक्त तीन मार्ग मिलते हैं। बताया जाता है उसके कर्मों के मुताबिक ही उसे इनमें से कोई एक मार्ग की यात्रा के लिए चुना जाता है।

ग्रंथों में एक श्लोक वर्णित हैं जो इस तरह हैं -
शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते ।
एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावर्तते पुनः ॥ - गीता

भावार्थ: इस श्लोक का अर्थ है जगत के ये दो प्रकार के- शुक्ल और कृष्ण अर्थात देवयान और पितृयान मार्ग सनातन माने गए हैं। इनमें एक द्वारा गया हुआ (अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 24 के अनुसार अर्चिमार्ग से गया हुआ योगी।)- जिससे वापस नहीं लौटना पड़ता, उस परमगति को प्राप्त होता है और दूसरे के द्वारा गया हुआ (अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 25 के अनुसार धूममार्ग से गया हुआ सकाम कर्मयोगी।) फिर वापस आता है अर्थात्‌ जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है॥26॥

अब आपने ये तो जान लिया की कौन कहां जाता अब बताते हैं  देवयान और पितृयान का मतलब:
ग्रंथों मे बताया गया है कि पहला जन्म साधारण जन्म है। जब पिता की मृत्यु के बाद पुत्र में ओर पुत्र के बाद पौत्र में जीवन की जो निरंतरता बनी रहती है उसे दूसरे प्रकार का जन्म माना जाता है। मृत्युपरांत पुनर्जन्म होना तीसरे प्रकार का जन्म है।

इसके अलावा कौशीतकी में ऐसे व्यक्तियों का उल्लेख है जो मृत्यु के पश्चात् चंद्रलोक में जाते हैं और अपने कार्य एवं ज्ञानानुसार वर्षा के माध्यम से पृथ्वी पर कीट पशु, पक्षी अथवा मानव रूप में जन्म पाते हैं। अन्य मृतक देवयान द्वारा अग्निलोक में चले जाते हैं।

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छांदोग्य के अनुसार ज्ञानोपार्जन करने वाले भले व्यक्ति मृत्युपरांत देवयान द्वारा सर्वोच्च पद प्राप्त करते हैं। पूजापाठ एवं जनकार्य करने वाले दूसरी श्रेणी के व्यक्ति रजनी और आकाश मार्ग से होते हुए पुन: पृथ्वी पर लौट आते हैं और इसी नक्षत्र में जन्म लेते हैं। श्राद्ध कर्म से मृतकों को सहायता मिलती है और वह सद्गति प्राप्त कर लेते हैं।
 

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