हकीकत या फसाना: धर्म ग्रंथों में नाग को देवता माना गया है !

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Dec, 2019 08:45 AM

connection of snakes with religious texts

महाभारत, रामायण से लेकर उपनिषदों, पुराणों और कई मिथक ग्रंथों में नागों को देवता के रूप में मान्यता प्राप्त है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि पृथ्वी शेषनाग के फन (सिर) पर टिकी हुई है। मान्यता है कि

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महाभारत, रामायण से लेकर उपनिषदों, पुराणों और कई मिथक ग्रंथों में नागों को देवता के रूप में मान्यता प्राप्त है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि पृथ्वी शेषनाग के फन (सिर) पर टिकी हुई है। मान्यता है कि जैसे-जैसे पृथ्वी पर पाप कर्म बढ़ते हैं, शेषनाग क्रोधित होकर फन हिलाते हैं जिससे पृथ्वी डगमगा जाती है। इसी पुरातन किंवदंती के कारण नाग को देवता समझ कर पूजा जाने लगा। वैसे तो व्यावहारिक रूप में सर्प सम्पूर्ण पृथ्वी पर मौजूद हैं। सागर से लेकर रेगिस्तान तक, पर्वत से लेकर मैदान तक सर्प जाति प्रकृति और मानव के संबंधों की अहम कड़ी है। 

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हिंदू धर्म ग्रंथों में भी नाग जाति का संबंध अनेक रूपों में अलग-अलग देवी-देवताओं के साथ बताया गया है। नाग वेदों से पहले के देवता हैं। नाग देवता का वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है। नाग पूजन का प्रचलन प्राचीन काल से चला आ रहा है। हमारे समाज में व्याप्त धार्मिक आस्थाओं के आधार पर लिंग, सर्प, अग्नि, सूर्य तथा पित्तर का बहुत महत्व है। मोहनजोदड़ो-हड़प्पा और सिंध सभ्यता की खुदाई में मिले प्रमाणों से पता चलता है कि उस काल में नाग को देवता समझ पूजा जाता था।

पुराणों में वर्णन आता है कि समुद्र मंथन में वासुकी नाग को मंदराचल के इर्द-गिर्द लपेट कर रस्सी की भांति उपयोग किया गया। भगवान भोले शंकर भंडारी नागों के देवता हैं। उनके सम्पूर्ण शरीर पर नागों का वास माना गया है।  उदाहरणार्थ, गले में नागों का हार, कानों में नाग कुंडल, सिर पर नाग मुकुट, कमर एवं छाती पर भी नाग शोभा बनते हैं। 

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भगवान शिव की स्तुति में शिवाष्टक में भी वर्णन है कि शंकर भगवान का पूर्ण शरीर सांपों के जाल से ढका है। इसी प्रकार भगवान विष्णु शेषनाग द्वारा बनाई गई शैय्या पर ही शयन करते हैं। भगवान विष्णु के ध्यान मंत्र में यही बोला जाता है ‘शांताकारम भुजंग शयनं पद्मनाम सुरेशं’। विष्णु भगवान के अवतार श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण और श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी को शेषनाग का अवतार बतलाया गया है। 

रामायण में नागों की माता का नाम सुरसा बताया गया है। इसी प्रकार महाभारत में अर्जुन द्वारा नागकन्या उलूपी से विवाह का प्रसंग मिलता है। दधीचि ऋषि की अस्थियों से बने अस्त्र से इंद्र के हाथों मारा गया वृत्रासुर भी नागराज ही था।

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वेदों में नाग का नाम अहि मिलता है। अग्नि पुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन मिलता है। नागों के एक पृथक लोक नागलोक का भी वर्णन पुराणों में मिलता है। शेषनाग के बारे में मान्यता है कि उसके हजार मस्तक हैं। शेष नाग को अनंत नाग भी कहा जाता है। मान्यता है कि जम्मू-कश्मीर में अनंतनाग शहर का नाम भी इसी कारण पड़ा। तक्षक ने शमीक मुनि के शाप के कारण राजा परीक्षित को डंसा था। उसके पश्चात् राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने नाग जाति के विनाश के लिए यज्ञ करवाया था। 

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माना जाता है कि तक्षक का राज तक्षशिला में था। ककोकट और एरावत नाग का इलाका पंजाब की इरावती नदी के आस-पास माना जाता है। ककोकट शिव के गण और नागों के राजा थे। नारद मुनि के शाप के कारण वह अग्नि में पड़े थे लेकिन राजा नल ने उन्हें बचाया था और ककोकट ने नल को ही डंस लिया था जिससे राजा नल का रंग काला पड़ गया लेकिन यह भी एक शाप के कारण ही हुआ था। तब राजा नल को ककोकट वरदान देकर अन्तर्ध्यान हो गए। शिव की स्तुति के कारण ककोकट जन्मेजय के नाग यज्ञ से बच निकले थे। उन्होंने उज्जैन में शिव की घोर तपस्या की।

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