Edited By Jyoti,Updated: 05 Nov, 2020 07:20 PM
दिवाली के त्यौहार को दीओं का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन से हर तरफ़ दीए ही दीए जग मगाते हैं। चारों ओर दीपक को रोशनी से लगभग भारत का हर कोना रौशना जाता है
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
दिवाली के त्यौहार को दीओं का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन से हर तरफ़ दीए ही दीए जग मगाते हैं। चारों ओर दीपक को रोशनी से लगभग भारत का हर कोना रौशना जाता है। तो वहीं इस पहले मनाए जाने वाले त्यौहार धनतेरस के दिन भी दीए जलाने की परंपरा है। कहा जाता है इस दिन अकाल मृत्यु से बचने के लिए यम देव को प्रसन्न करने के लिए उनके लिए दीए जलाए जाते हैं साथ ही साथ उनकी पूजा-अर्चना भी की जाती है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन कुल 13 दीपक जलाने की पंरपरा प्रचलित है। मगर इस बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं कि ये 13 के 13 दीए कहां कहां जलाए जाते हैं। अगर आपको इस बारे में नहीं पता, तो आइए अपने वेबसाइट के माध्यम से हम आपको इस बारे में खास जानकारी देते हैं।
जैसे कि हमने आपको बताया कि इस दिन यम के नाम का दीया जलाया जाता है। मगर जलाने का सही समय शायद ही किसी को पता होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसे जलाने का सही समय होता है घर के सभी सदस्यों का घर आने के, खाने-पीने और सोने के बाद। कहा जाता है इस दीप को जलाने के लिए पुराने दीपक का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे पूरी तरह से सरसों के तेल से भर लिया जाता है। इसे घर से बाहर दक्षिण को ओर मुख करके नाली या कूड़े के ढेर के पास रखा जाता है। जिसके बाद जल अर्पित कर दीपदान किया जाता है।
कुछ लोगों के घरों में धनतेरस की रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दीया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे लेकर घर से बाहर कहीं दूर रख आता है। इस दौरान घर के अन्य सदस्य इस दीये को देखते तक नही हैं, इसे यम का दीया कहा जाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घूमा कर बाहर ले जाने से मतलब होता है कि सभी बुराईयां और बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाएं।
अगर दीओं को वास्तु की दृष्टि से देखा जाए तो इन्हें जलाने से घर में सकारात्मक उर्जा का प्रवाह अधिक होता है। जिससे घर-परिवार के सद्स्यों का जीवन बेहतर व खुशहाल होता है।