Edited By Jyoti,Updated: 01 May, 2022 03:03 PM
एक समय की बात है, किसी शहर में धार्मिक प्रवृत्ति का एक व्यक्ति रहता था। धर्म-कर्म में उसकी आस्था तो थी लेकिन उसके भीतर अहंकार भी कम नहीं था। उसकी इच्छा थी कि इस जन्म में चाहे जो करना पड़े
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एक समय की बात है, किसी शहर में धार्मिक प्रवृत्ति का एक व्यक्ति रहता था। धर्म-कर्म में उसकी आस्था तो थी लेकिन उसके भीतर अहंकार भी कम नहीं था। उसकी इच्छा थी कि इस जन्म में चाहे जो करना पड़े लेकिन मरने के बाद स्वर्ग उसे अवश्य मिले। वह अपनी कमाई का अधिकतर भाग परोपकार में लगा देता क्योंकि उसे उम्मीद थी कि ऐसा करने से स्वर्ग की प्राप्ति निश्चित है।
जैसे-जैसे उसकी परोपकार की भावना बढ़ रही थी, उसके अहंकार में भी वृद्धि हो रही थी। एक बार एक प्रसिद्ध संत उसके घर आकर रुके। वह फौरन उनकी सेवा में उपस्थित हो गया। उसने उनसे भी स्वर्ग जाने का उपाय पूछा, साथ ही स्वर्ग जाने के उद्देश्य से किए जाने वाले प्रयासों की चर्चा की।
संत ने उस व्यक्ति को ध्यानपूर्वक ऊपर से नीचे देखा और उपेक्षा से कहा, ‘‘तुम स्वर्ग जाओगे? तुम तो देखने से ही घटिया लग रहे हो। मैं नहीं मानता कि तुम कोई परोपकारी ज्ञानी व्यक्ति हो।’’
यह सुनते ही वह व्यक्ति क्रोध से भर उठा और उसने संत को मारने के लिए डंडा उठा लिया।
उसके गुस्से का संत पर कोई असर नहीं पड़ा। वह शांति से मुस्कुराते हुए बोले, ‘‘तुम में तो तनिक भी धैर्य नहीं है। इतनी अधीरता और अहंकार के होते हुए तुम स्वर्ग कैसे जाओगे?’’
व्यक्ति को संत की कही बातों का मर्म समझ में आने लगा। वह उसी समय उनके चरणों में गिर पड़ा और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने लगा।
संत ने उसे समझाया कि एक-एक करके अहंकार तथा अधीरता जैसे अपने सभी भीतरी अवगुणों से मुक्त हो जाओ। जिस दिन तुम विकारों से मुक्त हो जाओगे, उसी दिन यहीं धरती पर ही तुम्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो जाएगी। सच बात है कि हम अपने अच्छे व्यवहारों एवं दूसरों की भलाई की कामना से यहीं पर स्वर्ग जैसे वातावरण का निर्माण कर सकते हैं।