महाभारत काल में ऋषि पराशर ने किया था कई राक्षसों का संहार, जानें कैसे?

Edited By Jyoti,Updated: 11 Dec, 2020 01:42 PM

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जब भी ज्योतिष शास्त्र की बात होती है कि सबसे पहले ऋषि पराशर का नाम लिया जाता है क्योंकि इन्होंने ही वैदिक ज्योतिष शास्त्र का निर्माण किया था। मगर क्या आप जानते हैं इनका कुछ रहस्य महाभारत से जुड़ी हुआ है।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जब भी ज्योतिष शास्त्र की बात होती है कि सबसे पहले ऋषि पराशर का नाम लिया जाता है क्योंकि इन्होंने ही वैदिक ज्योतिष शास्त्र का निर्माण किया था। मगर क्या आप जानते हैं इनका कुछ रहस्य महाभारत से जुड़ी हुआ है। धार्मिक शास्त्रों में किए वर्णन के अनुसार ऋग्वेद के मंत्रदृष्टा और गायत्री मंत्र के महान साधक सप्त ऋषियों में से एक महर्षि वशिष्ठ के पौत्र महान वेदज्ञ, ज्योतिषाचार्य, स्सृतिकार एवं ब्रह्मज्ञानी ऋषि पराशर के पिता का नाम शक्तिमुनि और माता का नाम अद्यश्यंती था। ऋषि पराशर बाष्कल तथा याज्ञवल्क्य के शिष्य थे। धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल के दौरान पराशर ऋषि के पिता को राक्षस कल्माषपाद ने खा लिया था। आइए विस्तारपूर्वक जानते हैं इससे जुड़ी संपूर्ण कथा-
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पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक बार ऋषि पराशर के पिता शक्ति एकायन मार्ग द्वारा पूर्व दिशा से आ रहे थे। दूसरी ओर यानि (पश्चिम) से राजा कल्माषपाद आ रहे थे। जिस मार्ग से वह आ रहे थे वह रास्ता इतना संकरा था कि एक ही व्यक्ति उससे निकल सकता था। अर्थात एक का वहां से हटना आवश्यक था। परंतु राजा कल्माषपाद को राजदंड का अधिक अहंकार था, तो उधर ऋषि पराशर के पिता शक्तिमुनि को अपने ऋषि होने का अहंकार था।

शास्त्रों से जुड़ी प्रचलित मान्यताओं की मानें तो ऋषि सदैव राजा से बड़ा ही होता है। ऐसे में राजा का धर्म था कि वह वहां हट जाता। मगर राजा ने हटने की बजाए ऋषि पर कोड़े बरसवा दिए। राजा का यह कर्म राक्षसों जैसा था अत: शक्तिमुनि ने राजा को राक्षस होने का शाप दे दिया। ऋषि के शाप के कारण राजा कल्माषपाद राक्षस हो गए। जिसके बाद राक्षस बने राजा ने अपना सबसे पहला ग्रास ऋषि पराशर के पिता शक्तिमुनि को ही बनाया, जिससे ऋषि शक्तिमुनि की जीवनलीला समाप्त हो गई। उधर जब इस बात का पता पराशर ऋषि को पता चला कि राक्षस द्वारा उनके पिता को खा लिया गया है। तब उन्होंने राक्षसों के समूल नाश हेतु राक्षस-सत्र यज्ञ प्रारंभ किया।
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जिसमें एक के बाद एक राक्षस खिंचे चले आने लगे और उससे गिरकर भस्म होते गए। इस दौरान कई राक्षस स्वाहा हो गए। ये सब देख महर्षि पुलस्त्य ने पराशर ऋषि के पास पहुंचकर उनसे यह यज्ञ रोकने की प्रार्थना की और उन्होंने अहिंसा का उपदेश भी दिया। तो वहीं पराशर ऋषि के पुत्र वेदव्यास ने भी इस यज्ञ को रोकने की प्रार्थना की। उन्होंने समझाया कि बिना किसी दोष के इस तरह राक्षसों का संहार करना अनुचित है। पुलस्त्य तथा व्यास की प्रार्थना और उपदेश के बाद ऋषि पराशर ने राक्षस-सत्र यज्ञ की पूर्णाहुति देकर इसे रोक दिया। धार्मिक कथाएं हैं कि ऋषि पराशर ने निषादाज की कन्या सत्यवती के साथ उसकी कुंआरी अवस्था में समागम किया था जिसके चलते 'महाभारत' के लेखक वेदव्यास का जन्म हुआ। बाद में सत्यवती ने राजा शांतनु से विवाह संपन्न किया था।
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