Edited By Jyoti,Updated: 10 Jun, 2019 12:01 PM
10 जून यानि आज धूमावती जयंती का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन देवी पार्वती के स्वरूप की धूमावती के पूजन का विधान होता है।
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10 जून यानि आज धूमावती जयंती का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन देवी पार्वती के स्वरूप की धूमावती के पूजन का विधान होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मां धूमावती जयंती मनाई जा रही है। महान ज्योतिषियों विद्वानों के अनुसार इस दिन देवी की पूजा के साथ-साथ इनकी स्तुति का पाठ करना बहुत लाभकारी होता है। इससे प्रसन्न होकर मां धूमावती अपने भक्तों के सारे दुख हर लेती हैं। मान्यता है जो भी जातक देवी की पूजा शुद्ध मन और श्रद्धा से आगे बताई जाने वाली स्तुति का पाठ करता है उसकी बड़ी से बड़ी समस्याओं का हल निकल जाता है । इसके साथ ही ये भी कहा जाता शक्ति पाठ करने वाले व्यक्ति के सामने बड़ी से बड़ी ताकत भी ठहर नहीं पाती। पौराणिक ग्रंथों में देवी मां धूमावतीस को सर्वोच्च तेज़ प्रदान करने वाली माना जाता जाती हैं। तो आइए जानते हैं धूमावती जयंती के दिन मां धूमावती की किस स्तुति का पाठ करना चाहिए-
धूमावती स्तुति-
विवर्णा चंचला कृष्णा दीर्घा च मलिनाम्बरा
विमुक्त कुंतला रूक्षा विधवा विरलद्विजा
काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा
सूर्पहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता
प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा काल्हास्पदा
शत्रु का विनाश तथा कर्ज और आर्थिक समस्या से मुक्ति दिलाता है मां धूमावती कवच।
।।धूमावती कवचम्।।
श्रीपार्वत्युवाच
धूमावत्यर्चनं शम्भो श्रुतम् विस्तरतो मया।
कवचं श्रोतुमिच्छामि तस्या देव वदस्व मे।।1।।
श्रीभैरव उवाच
शृणु देवि परङ्गुह्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे।
कवचं श्रीधूमावत्या: शत्रुनिग्रहकारकम्।।2।।
ब्रह्माद्या देवि सततम् यद्वशादरिघातिन:।
योगिनोऽभवञ्छत्रुघ्ना यस्या ध्यानप्रभावत:।।3।।
ॐ अस्य श्री धूमावती कवचस्य पिप्पलाद ऋषि: निवृत छन्द:, श्री धूमावती देवता, धूं बीजं, स्वाहा शक्तिः, धूमावती कीलकं, शत्रुहनने पाठे विनियोग:।।
ॐ धूं बीजं मे शिरः पातु धूं ललाटं सदाऽवतु।
धूमा नेत्रयुग्मं पातु वती कर्णौ सदाऽवतु।।1।।
दीर्ग्घा तुउदरमध्ये तु नाभिं में मलिनाम्बरा।
शूर्पहस्ता पातु गुह्यं रूक्षा रक्षतु जानुनी।।2।।
मुखं में पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम्।
सर्वा विद्याऽवतु कण्ठम् विवर्णा बाहुयुग्मकम्।।3।।
चञ्चला हृदयम्पातु दुष्टा पार्श्वं सदाऽवतु।
धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा।।4।।
प्रवृद्धरोमा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा।
क्षुत्पिपासार्द्दिता देवी भयदा कलहप्रिया।।5।।
सर्वाङ्गम्पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी।
इति ते कवचम्पुण्यङ्कथितम्भुवि दुर्लभम्।।6।।
न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे।
पठनीयम्महादेवि त्रिसन्ध्यन्ध्यानतत्परैः।।7।।
दुष्टाभिचारो देवेशि तद्गात्रन्नैव संस्पृशेत्।।8।।
।।इति भैरवीभैरवसम्वादे धूमावतीतन्त्रे धूमावतीकवचं सम्पूर्णम्।।