Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Apr, 2019 02:41 PM
भोजन ग्रहण करने से पहले भगवान को याद करने के साथ-साथ पृथ्वी, आकाश, वायु, जल व अग्नि इन पांच तत्वों को याद किया जाता है। अन्न का अनादर कभी भी न करें। पूजनिय अन्न व्यक्ति में बल व तेज की
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भोजन ग्रहण करने से पहले भगवान को याद करने के साथ-साथ पृथ्वी, आकाश, वायु, जल व अग्नि इन पांच तत्वों को याद किया जाता है। अन्न का अनादर कभी भी न करें। पूजनिय अन्न व्यक्ति में बल व तेज की वृद्धि करता है, किन्तु खाया हुआ वही अपूजित अन्न दोनों का नाश करता है। भारतीय संस्कृति में भोजन करते समय कुछ नियमों का पालन किया जाता है। यह नियम कोरे अक्षर नहीं अपितु इसमें वैज्ञानिकता सिद्ध होती है।
कभी भी सिर ढक कर भोजन न करें। एकमात्र वस्त्र पहनें व दुष्टों के सम्मुख भोजन न करें। जूता, चप्पल, पहनकर भोजन न करें। ग्रास भली प्रकार कुचला हुआ ही होना चाहिए। चारपाई या खाट पर बैठकर भोजन न करें। यह विधान इसलिए बनाया गया है कि क्योंकि शिशु प्राय: बिस्तर पर मल-मूत्र का त्याग कर देते हैं। यथाशक्ति सफाई रखने पर भी वे कीटाणु नहीं मरते। अगर उसी पर भोजन किया जाए तो यह रोगों का खुला आमंत्रण है।
प्रतिदिन आचमन करके स्वस्थ मन से भोजन करें, भोजन करके भली-भांति कुल्ला करें। अपनी जूठन न किसी को दें और न ही किसी का जूठा खाएं। दिन में एक बार भोजन पर संध्या से पूर्व दूसरी बार भोजन ग्रहण न करें। भोजन को सम्मान की दृष्टि से देखें व प्रसन्नतापूर्वक भोजन करें तथा उसे देख कर उसका अभिनंदन कर खुशी प्रकट करें। अधिक मात्रा में भोजन करने से रजोगुण व तमोगुण वृत्तियां उत्पन्न होती हैं। भोजन को तब तक भली प्रकार चबाएं जब तक उसमें रस शेष हो। शास्त्रों के अनुसार आधा पेट अन्न से, चौथाई भाग पानी से भरें तथा शेष चौथाई भाग को प्राण वायु संचार के लिए खाली रहने दें।