यहां शिवलिंग का अभिषेक करती हैं सागर की लहरें

Edited By Jyoti,Updated: 15 Aug, 2020 07:26 PM

gujarat nishkala mahadev temple

अगर प्रकृति का ध्यान किया जाए तो आप पाएंगे दुनिया में कितने ही अद्भुत और चमत्कारिक रहस्य छुपे हैं जिनका एहसास करने के बाद हमारी श्रद्धा और भक्ति बढ़ जाती है।

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अगर प्रकृति का ध्यान किया जाए तो आप पाएंगे दुनिया में कितने ही अद्भुत और चमत्कारिक रहस्य छुपे हैं, जिनका एहसास करने के बाद हमारी श्रद्धा और भक्ति इनके प्रति और बढ़ जाती है। ऐसा ही एक रहस्य छिपा है गुजरात के भावनगर में कोलियाक तट से तीन कि.मी. अंदर अरब सागर में निष्कलंक महादेव का मंदिर में। जी हां, कहा जाता है ये मंदिर जिस स्थान पर स्थित है वह स्थान इतना रहस्यमयी और खूबसूरत है कि इसे देख कोई भी इसकी ओर आकर्षित हो जाए।
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दरअसल कहा जाता है भोलेनाथ के इस प्रसिद्ध स्थल की खास बात ये है कि यहां अरब सागर की लहरें रोज़ दिन में पांच शिवलिंगों का जलाभिषेक करती हैं। बताया ये भी जाता है कि शिवलिंग के पास स्थित कुंड में प्रत्येक वर्ष अक्षय तृतीया के दिन स्वयं गंगा जी प्रकट होती हैं। यही कारण है कि इस दिन यहां स्नान करने का बहुत महत्व माना जाता है। यहां आने वाले लोगों की मानें तो इस मंदिर के दर्शन मात्र से इंसान की भगवान के प्रति खुद ब खुद समर्पित हो जाती है।

मगर इस मंदिर के दर्शन कर पाना इतना आसान नहीं है, जी हां बताया जाता है कि अरब सागर में स्थित इस मंदिर के दर्शन करने के लिए लोगों को काफ़ी इंतजार करना पड़ता है। बता दें यहां हर रोज़ दोपहर 1 बजे से रात 10 बजे तक भक्तों को शिवलिंग का दर्शन करने के लिए समुद्र रास्ता देता है, इसके बाद आप शिवलिंग के दर्शन नहीं किए जा सकते।  इसके पीछे का कारण लोग ये बताते हैं कि दरअसल जब ज्वार ज्यादा होती है, तब केवल मंदिर की पताका और खंभा ही नज़र आता है। इसके दर्शन करने के लिए दर्शनार्थियों को पैदल चलकर जाना पड़ता है।
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ऐसा माना जाता है जो समुद्र में स्थित महादेव के इस मंदिर को देखता वो, रोमांचित हो जाता है कि कैसे भारी ज्वार के वक्त सिर्फ मंदिर की पताका दिखाई देती है। जैसे-जैसे पानी उतरता है वैसे-वैसे मंदिर की आकृति स्पष्ट होती जाती है। इस दृश्य को देखकर ऐसा लगता है कि मानों महादेव समुद्र के कंबल को लपेटकर तपस्या कर रहे हों। 

बता दें इस मंदिर में पांच स्वंयभू शिवलिंग स्थापित हैं, प्रत्येक शिवलिंग के समक्ष नंदी की प्रतिमा स्थापित है। एक वर्गाकार चबूतरे के हर कोने पर एक-एक शिवलिंग विराजमान हैं। इसी चबूतरे पर एक छोटा सा तालाब है, जिसे पांडव तालाब के नाम से जाना जाता है।

शिवलिंग की पूजा अर्चना करने से पहले श्रद्धालु इसी तालाब के पावन जल से स्नान आदि करते हैं। ऐसी लोक मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति किसी प्रियजन की चिता की राख शिवलिंग पर लगाकार जल में प्रवाहित करता है तो उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है। 
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तो वहीं मंदिर से जुड़ी कथाओं के अनुसार इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से भी संबंधित है। 

पौौराणिक किंवजदंतियों की मानें तो महाभारत के युद्ध खत्म होने के बाद पांडव बहुत दुखी थे। अपने ही सगे संबंधियों की हत्या करने के बाद उन्हें अपराधबोध हो रहा था। जिसके बाद पांडवों ने इसी तट पर अपराधबोध से मुक्ति के लिए तप किया था इनके तप से प्रसन्न होकर शिव जी ने  पांचों भाईयों को लिंग रूप में अलग-अलग दर्शन दिए। ऐसा कहा जाता है कि तब से ही ये पांचों शिवलिंग यहां स्थित है। 

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