Holi 2024: हर्षोल्लास की अभिव्यक्ति करने वाला तथा हास-परिहास का पर्व है होली

Edited By Prachi Sharma,Updated: 24 Mar, 2024 09:10 AM

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फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रंगोत्सव पर्व होली हर्षोल्लास की अभिव्यक्ति करने वाला तथा हास-परिहास का पर्व है। इस पर्व को उत्कर्ष तक पहुंचाने वाली प्रकृति

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Holi 2024: फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रंगोत्सव पर्व होली हर्षोल्लास की अभिव्यक्ति करने वाला तथा हास-परिहास का पर्व है। इस पर्व को उत्कर्ष तक पहुंचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। फाल्गुन भारतीय पंचांग का अंतिम महीना है। इस माह की पूर्णिमा को फाल्गुनी नक्षत्र में आने के कारण ही इस माह का नाम फाल्गुन पड़ा है। हमारे त्यौहार युगों-युगों से चली आ रही हमारी सांस्कृतिक परंपराओं, मान्यताओं एवं सामाजिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

पुराणों में वर्णित एक कथानुसार, भक्त प्रह्लाद, जो भगवान विष्णु जी के अनन्य भक्त थे, उनका पिता हिरण्यकश्यप जो कि दैत्यों का राजा था, भगवान विष्णु जी का घोर शत्रु था। जब उसने अपने पुत्र को भगवान श्री हरि जी की भक्ति करते देखा, सर्वप्रथम उसने उसको ऐसा करने से रोका। जब प्रह्लाद नहीं माने तो उसने अपने पुत्र को मारने के लिए बहुत प्रयास किए। जब वह सफल नहीं हुआ तो उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने का निर्देश दिया। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गए। द्वेष और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका का दहन कर प्रेम, सद्भावना और हर्षोल्लास का प्रतीक होली पर्व प्रह्लाद अर्थात आनन्द प्रदान करने वाला पर्व है।

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ब्रज की होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। ब्रज में होली की शुरूआत बरसाना से होती है। होली उत्सव पर बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग बरसाना आते हैं। फाग होली के अवसर पर गाया जाने वाला एक लोकगीत है, जिसमें होली खेलने, प्रकृति की सुंदरता और भगवान श्रीराधाकृष्ण जी के भक्तिमय प्रेम का वर्णन होता है। 

होली का रंग-बिरंगा त्यौहार जितने प्रकार से 84 कोस में बसे पूरे ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है उतने प्रकार से विश्व में कहीं नहीं मनाया जाता। ब्रज के मंदिरों में भगवान श्री राधा-कृष्ण जी के भक्त भक्ति के रंग में रंग कर रंग और गुलाल में सराबोर होकर होली खेलने आते हैं। विशेष तौर पर बरसाना, वृंदावन, मथुरा, नंदगांव और दाऊजी के मंदिरों में अलग-अलग दिनों में होली धूमधाम से मनाई जाती है। यहां टेसू और गुलाब के फूलों से बने रंगों की फुहारें भक्तों को भिगोती रहती हैं। 

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बरसाना और वृंदावन के मंदिरों में तो फूलों की होली खेली जाती है। बरसाना की लठ्ठमार होली विश्व प्रसिद्ध है। इसे देखने देश-विदेश से लोग आते हैं। वृंदावन में रंग भरनी एकादशी से होली का विशेष शुभारंभ हो जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती जी का गुलाल से पूजन होता है। होली से पहले 8 दिनों के समय को ‘होलाष्टक’ कहा जाता है, जिसे अशुभ माना जाता है। मान्यता के अनुसार, होलिका दहन से पहले 8 दिनों तक भक्त प्रह्लाद को उनके पिता हिरण्यकश्यप ने बहुत प्रताड़ित किया था। फिर आठवें दिन होलिका ने प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाकर भस्म करने का असफल प्रयास किया गया। दूसरी कथा के अनुसार फाल्गुन मास की अष्टमी को ही शिवजी ने कामदेव को भस्म किया था और इस कारण से पूरी प्रकृति शोक में डूब गई थी। फाल्गुन की पूर्णिमा  के दिन भगवान शिव ने कामदेव को अगले जन्म में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। इन्हीं कारणों से हमारे धर्म शास्त्रों में होलाष्टक की अवधि को शुभ कार्यों के लिए उचित नहीं माना जाता। 

हमारे पर्व वैदिक सनातन संस्कृति के अन्तप्र्राण हैं। इनसे जीवन में उत्साह का संचार होता है। पौराणिक पृष्ठभूमि लिए हमारे ये पर्व हमारी सांस्कृतिक विरासत, सामाजिक सौहार्द, पवित्र भावना, समानता, आध्यात्मिक उत्कर्ष तथा देश की एकता और अखंडता के प्रतीक हैं।  

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