Home sweet home चाहते हैं तो अपनाएं वास्तु के ये नियम

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Apr, 2022 09:24 AM

how to make home sweet home

वर्तमान में वास्तु का प्रभाव जिस प्रकार से बढ़ा है, उसने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है। वास्तु की ऊर्जा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आपकी सहायता कर सकती है। हमारी ऊर्जा दो प्रकार की होती है- शारीरिक ऊर्जा व मानसिक ऊर्जा। शारीरिक

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Home Sweet Home: वर्तमान में वास्तु का प्रभाव जिस प्रकार से बढ़ा है, उसने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है। वास्तु की ऊर्जा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आपकी सहायता कर सकती है। हमारी ऊर्जा दो प्रकार की होती है- शारीरिक ऊर्जा व मानसिक ऊर्जा। शारीरिक ऊर्जा की कमी से जीवन के सभी क्षेत्रों में शिथिलता एवं सुस्ती अनुभव करेंगे। ठीक इसी प्रकार मानसिक ऊर्जा की कमी हमें नकारात्मक सोच वाला बना सकती है, चाहे वह व्यवसाय का क्षेत्र हो या स्वास्थ्य अथवा प्रेम। यह ऊर्जा प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करती है, इसलिए वास्तुदोष होने पर हमें किसी वास्तुविद से वास्तुदोष निवारण करा लेना चाहिए, ताकि हमारे आवास में ऊर्जा का संतुलन हो सके, जो हमारे जीवन को ऊर्जावान कर सके व जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उत्तरोत्तर वृद्धि कर सके।

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Which Vastu is good for House: वास्तु विद्या भारतीय भवन निर्माण की कला है, जो प्राचीनकाल से चली आ रही है और आवास, कार्यस्थल, मंदिर और अन्य प्रकार के भवनों के निर्माण की मार्गदर्शक है। उससे हमें प्रकृति के नियमों के साथ सामंजस्य बनाते हुए अच्छी तरह रहने और अनुकूल वातावरण तैयार करने की जानकारी मिलती है। वास्तु के निर्माण से जुड़े हुए सभी पहलुओं, जैसे भूमि चयन, भवन निर्माण सामग्री, निर्माण की तकनीक, कक्ष द्वार, खिड़कियों की स्थिति सहित उनकी बातों की विस्तृत जानकारी होती है।

भारतीय भवन निर्माण कला आधुनिक भवन निर्माण कला से कई कदम आगे है। इसमें केवल निर्माण सामग्री एवं उसके भौतिक गुणों का वर्णन ही नहीं वरना यह हमें मनुष्य और पदार्थ (निर्माण सामग्री) की आतंरिक और बाह्य प्रक्रिया को समझाता है। 

इस तरह वास्तु ही वह विषय है जो हमारी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक और भौतिक सामग्रियों तथा वातावरणीय समरसता जैसी सभी आवश्यकताओं से प्रत्यक्ष जुड़ा है। यह विषय बहुत ही रुचिकर, विस्तृत और हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालने वाला है। 

वास्तु की शुरूआत भूमि चयन प्रक्रिया से आरंभ होती है कि वह जातक के लिए कैसी रहेगी। इस प्रक्रिया के बाद भूमि शोधन, दिशा शोधन, वास्तु अनुरूप कक्षों की प्लानिंग, किचन, पूजाघर, टैंकर, बोरिंग या कुआं, स्टोर व सीढ़ियों आदि का निर्माण उचित स्थान पर करना चाहिए। इससे पूर्व कार्य प्रारंभ किस दिशा में करवाना चाहिए, नींव खुदवाना आदि के शुभ मुहूर्त विधि बार आदि का विशेष ध्यान रखें।

वास्तु विद्या अनुरूप मकान बनवाने से कुवास्तुजनित कष्ट तो दूर हो जाते हैं, परन्तु प्रारब्धजनित कष्ट तो भोगने ही पड़ते हैं। जैसे औषधि लेने से कुपथ्यजन्य रोग तो मिट जाता है किंतु प्रारब्धजन्य रोग नहीं मिटता, वैसे ही कुवास्तुजनित दोष दूर करना भी हमारा कर्तव्य है।

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Vastu Tips For your Home नव निर्माण में निम्र बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए :
नव निर्माण करते समय भवन को यथासंभव चारों ओर खुला स्थान छोड़कर बनाना चाहिए।

भवन के पूर्व एवं उत्तर में अधिक तथा दक्षिण व पश्चिम में कम जगह छोडऩी चाहिए।

भवन की ऊंचाई दक्षिण एवं पश्चिम में अधिक होनी चाहिए।

बहुमंजिला भवनों में छज्जा, बालकनी व छत उत्तर एवं पूर्व की ओर छोडऩी चाहिए।

पूर्व एवं उत्तर की ओर अधिक खिड़कियां तथा दक्षिण एवं पश्चिम में कम खिड़कियां होनी चाहिएं।

नैऋत्य कोण का कमरा गृहस्वामी का होना चाहिए।

आग्नेय कोण में पाठशाला होनी चाहिए।

ईशान कोण में पूजा का कमरा होना चाहिए।

स्नानगृह पूर्व की दिशा में होना चाहिए। यदि यहां संभव न हो तो आग्नेय या वाव्य कोण में होना चाहिए परन्तु पूर्व के स्नानघर में शौचालय नहीं होना चाहिए। शौचालय दक्षिण अथवा पश्चिम में हो सकता है।

बरामदा पूर्व औराध्या उत्तर में होना चाहिए।

बरामदे की छत अन्य सामान्य छत से नीची होनी चाहिए। 

दक्षिण या पश्चिम में बरामदा नहीं होना चाहिए। अगर दक्षिण, पश्चिम में बरामदा आवश्यक हो तो उत्तर व पूर्व में उससे बड़ा, खुला व नीचा बरामदा होना चाहिए।

पोर्टिको की छत की ऊंचाई बरामदे की छत के बराबर या नीची होनी चाहिए।

भवन के ऊपर की (ओवरहैड) पानी की टंकी मध्य पश्चिम व मध्यम पश्चि में नैऋत्य के बीच कहीं भी होनी चाहिए। मकान नैऋत्य सबसे ऊंचा होना ही चाहिए। 

घर का बाहर का छोटा मकान (आऊट हाऊस) आग्नेय या वायव्य कोण में बनाया जा सकता है परन्तु वह उत्तरी या पूर्वी दीवार को न छुए तथा उसकी ऊंचाई मुख्य भवन से नीची होनी चाहिए।

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