भगवान को दें उधार, भारी दिव्य सूद के साथ मिलेगा वापस

Edited By ,Updated: 11 Jan, 2017 07:34 AM

importance of charity

पृणीयादिन्नाधमानाय तव्यान् द्रीघीयांसमनु पश्येत पन्थाम। ओ हि वर्तन्ते रथ्येव चक्रान्यमन्यमुप तिष्ठन्त राय:।।  —ऋ0 10/117/5 शब्दार्थ-

पृणीयादिन्नाधमानाय तव्यान् द्रीघीयांसमनु पश्येत पन्थाम।
ओ हि वर्तन्ते रथ्येव चक्रान्यमन्यमुप तिष्ठन्त राय:।। 
—ऋ0 10/117/5


शब्दार्थ- तव्यान=धन से बढ़े हुए समृद्ध पुरुष को चाहिए कि वह नाधमानाय=मांगने वाले सत्पात्र को पृणीयात् इत=दान दे ही; पन्थाम=सुकृत मार्ग को द्राघीयांसम=दीर्घतम अनुपश्येत= देखे। इस लंबे मार्ग में राय:=धन संपत्तियां उ हि=निश्चय से रथ्या: चक्रा: इव=रथ- चक्रों की भांति आ वर्तन्ते=ऊपर-नीचे घूमती रहती हैं बदलती रहती हैं और अन्यं अन्यं उपतिष्ठन्ते = एक को छोड़ कर दूसरे के पास जाती रहती है। 

ऋषि:—आर्पिरसो भिक्षु:।। देवता—धनान्नदानप्रशंसा।। छन्द:—विराट्त्रिष्टुप्।।

धन को जाते हुए कितनी देर लगती है? व्यापार में घाटा हो जाता है, चोर-लुटेरे धन लूट ले जाते हैं, बैंक टूट जाते हैं, घर जल जाता है आदि सैंकड़ों प्रकार से लक्ष्मी मनुष्य को क्षण भर में छोड़कर चली जाती है। वास्तव में लक्ष्मी देवी बड़ी चंचल हैं। वह मनुष्य कितना मूर्ख है जो यह समझता है कि बस, यदि मैं दूसरों को धन दान नहीं करूंगा तो और किसी प्रकार मेरा धन मुझसे पृथक नहीं हो सकेगा।


अरे, धन तो जब समय आएगा तो एक पल भर में तुझे कंगाल बनाकर कहीं चला जाएगा। इसलिए हे धनी पुरुष! यदि इस समय तेरे शुभकर्मों के भोग से तेरे पास धन-संपत्ति आई हुई है तो तू इसे यथोचित-दान में देने में कभी संकोच मत कर। जीवन-मार्ग को तनिक विस्तृत दृष्टि से देख और सत्पात्र को दान देने में अपना कल्याण समझे, अपनी कमाई समझे।


सच्चा दान करना, सचमुच जगत्पति भगवान को उधार देना है जो बड़े भारी दिव्य सूद के साथ फिर वापस मिलता है। जो जितना त्याग करता है वह उससे न जाने कितना गुणा अधिक प्रतिफल पाता है, यह ईश्वरीय नियम है। दान तो संसार का महान सिद्धांत है, पर इस इतनी साफ बात को यदि लोग नहीं समझते हैं, तो इसका कारण यह है कि वे मार्ग को दूर तक नहीं देखते। जीवन-मार्ग कितना लंबा है, यह संसार कितना विस्तृत है और इस संसार में जीवों को उनके कब के शुभ-अशुभ कर्मों का फल उन्हें कब मिलता है, यह सब-कुछ नहीं दिखाई देता। इसीलिए हमें संसार में चलते हुए वे अटल नियम भी दिखाई नहीं देते जिनके अनुसार सब मनुष्यों को उनके शुभ-अशुभ कर्मों का फल अवश्यमेव भोगना पड़ता है।


यदि इस संसार की गति को हम तनिक भी ध्यान से देखें तो पता लगेगा कि धन-संपत्ति इतनी अस्थिर है कि यह रथ चक्र की भांति घूमती-फिरती है- आज इसके पास है तो कल दूसरे के पास है, परंतु हम अति क्षुद्र दृष्टि वाले हैं और इसलिए इस ‘आज’ में ही इतने ग्रस्त हैं कि हम ‘कल’ को देखते हुए भी नहीं देखते। संसार में लोगों को नित्य धननाश होता हुआ देखते हुए भी अपने धननाश के एक पल पहले तक भी हम इस घटना के लिए कभी तैयार नहीं होते और इसीलिए तनिक-सा धननाश होने पर रोते-चीखते भी हैं। यदि हम मार्ग को विस्तृत दृष्टि से देखें तो इन धनागमों और धननाशों को अत्यंत तुच्छ बात समझें। यदि संसार में प्रतिक्षण चलायमान, घूमते हुए इस धन-चक्र को देखें, इस बहते हुए धनप्रवाह को देखें, तो हमें धन जमा करने का तनिक भी मोह न रहे।

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!