अधिक मास: आज से शुरू करें ये काम, मिलेगी हर पाप से मुक्ति

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 May, 2018 08:03 AM

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पंचांग के अनुसार वर्ष 2018 में दो ज्येष्ठ माह होंगे। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से साल के 365 दिनों में ही ये तिथियां भी शामिल होंगी। पंचांगानुसार तीन वर्षों तक तिथियों का क्षय होता है। तिथियों का क्षय होते-होते तीसरे वर्ष एक माह बन जाता है।

पंचांग के अनुसार वर्ष 2018 में दो ज्येष्ठ माह होंगे। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से साल के 365 दिनों में ही ये तिथियां भी शामिल होंगी। पंचांगानुसार तीन वर्षों तक तिथियों का क्षय होता है। तिथियों का क्षय होते-होते तीसरे वर्ष एक माह बन जाता है। इस कारण हर तीसरे वर्ष में अधिक मास होता है। अधिक मास को मलमास, पुरुषोत्तम मास आदि नामों से पुकारा जाता है। जिस चंद्र मास में सूर्य संक्राति नहीं होती, वह अधिक मास कहलाता है और जिस चंद्र मास में दो संक्रांतियों का संक्रमण हो रहा हो उसे क्षय मास कहते हैं। इसके लिए मास की गणना शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्या तक की गई है। अधिक मास में शुभ कार्य नहीं किए जाते लेकिन धार्मिक अनुष्ठान कथा आदि के लिए यह महीना उत्तम माना जाता है।  

विशेष बात यह है कि दो ज्येष्ठ वाले अधिक मास का योग 10 साल बाद आ रहा है। इसके पूर्व वर्ष 2007 में ज्येष्ठ में अधिक मास का योग बना था। वर्ष 2018 के बाद 2020 में अधिक होगा।

मलमास का महत्व 
यह व्रत करने वाले को भूमि पर सोना चाहिए। एक समय सात्विक भोजन करना चाहिए। भगवान पुरुषोत्तम यानी श्रीकृष्ण या विष्णु भगवान का श्रद्धापूर्वक पूजन, मंत्र-जाप एवं हवन करना चाहिए। हरिवंश पुराण, श्रीमद् भागवत, रामायण, विष्णु स्तोत्र, रुद्राभिषेक के पाठ का अध्ययन, श्रवण आदि करें।

अधिक मास की समाप्ति पर स्नान, दान, जप आदि का अत्यधिक महत्व है। व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ श्रद्धानुसार दान भी करना चाहिए। इस मास में वस्त्र, अन्न, गुड़-घी का दान एवं विशेषकर मालपुए का दान करना चाहिए।

मलमास में यह नहीं करें !
कुछ नित्य कर्म, कुछ नैमित्तिक कर्म और कुछ काम्य कर्मों  विवाह, मुंडन, नव वधु प्रवेश, यज्ञोपवीत संस्कार, नए वस्त्रों को धारण करना, नवीन वाहन खरीद, बच्चे का नामकरण संस्कार आदि निषिद्ध हैं।

अधिक मास में क्या करें ?
जिस दिन मलमास शुरू हो रहा हो उस दिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान सूर्य नारायण को पुष्प, चंदन अक्षत मिश्रित जल से अर्घ्य देकर पूजन करें। अधिक मास में शुद्ध घी के मालपुए बनाकर प्रतिदिन कांसी के बर्तन में रखकर फल, वस्त्र, दक्षिणा एवं अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करें। 

संपूर्ण मास व्रत, तीर्थ स्नान, भागवत पुराण, ग्रंथों का अध्ययन विष्णु यज्ञ आदि करें। जो कार्य पूर्व में ही प्रारंभ किए जा चुके हैं, उन्हें इस मास में किया जा सकता है। इस मास में मृत व्यक्ति का प्रथम श्राद्ध किया जा सकता है। रोग आदि की निवृत्ति के लिए महामृत्युंजय, रूद्र जपादि अनुष्ठान किए जा सकते हैं। इस मास में दुर्लभ योगों का प्रयोग,  संतान जन्म के कृत्य, पितृ श्राद्ध, गर्भाधान, पुंसवन सीमंत संस्कार किए जा सकते हैं।  

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