Edited By Prachi Sharma,Updated: 29 Dec, 2023 08:17 AM
अरब देश का एक व्यक्ति हाफिज भ्रमण के इरादे से घर से बाहर निकला। उसकी इच्छा थी कि दूरस्थ स्थानों को नजदीक से देखा जाए, वहां के लोगों
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Inspirational Story: अरब देश का एक व्यक्ति हाफिज भ्रमण के इरादे से घर से बाहर निकला। उसकी इच्छा थी कि दूरस्थ स्थानों को नजदीक से देखा जाए, वहां के लोगों के बारे में गहराई से जाना जाए इसलिए उसने अपने साथ किसी परिजन या मित्र को नहीं लिया।
कई दिनों तक वह सफर करता रहा। वह रात में धर्मशाला या मंदिरों में रुक जाता और अगले दिन फिर आगे की यात्रा के लिए निकल पड़ता। एक दिन उसे समय का ध्यान नहीं रहा और चलते-चलते रात हो गई। जब उसे होश आया कि गांव तो पीछे छूट गया और आस-पास घना जंगल है, तो वह परेशान हो गया। इधर-उधर वह आश्रय खोजने लगा। अंतत: उसे एक झोपड़ी दिखाई दी।
झोपड़ी का द्वार बंद था। उसने धीरे से द्वार पर दस्तक दी। भीतर से आवाज आई, ‘‘कौन है?’’
हाफिज ने कहा, ‘‘मैं हूं।’’
उसका जवाब सुनने के बाद किसी ने द्वार नहीं खोला।
फिर आवाज आई, ‘‘कौन है?’’
उसने थके हुए स्वर में कहा, ‘‘मैं हाफिज हूं।’’
लेकिन इस बार भी दरवाजा नहीं खोला गया। हाफिज हैरान रह गया कि भीतर से कोई परिचय पूछता भी है और जवाब सुनने के बाद भी दरवाजा नहीं खोलता।
उसने अंतिम बार दस्तक दी। फिर वही आवाज आई, ‘‘कौन है?’’
इस बार हाफिज ने कहा, ‘‘एक थका हुआ मुसाफिर। कृपया रात भर रहने की जगह दीजिए। सवेरे ही चला जाऊंगा।’’
इस बार भीतर से किसी ने कहा, ‘‘भाई, इस कुटिया में ‘मैं’ के लिए स्थान नहीं है, मुसाफिरों के लिए है। आ जाओ और आराम से रात बिताओ।’’
इतना कहने के बाद झोपड़ी का द्वार खुल गया।
हाफिज समझ गया कि ‘मैं’ के लिए किसी घर में कोई स्थान नहीं होता है। उचित निर्वाह में अहं सदैव बाधक होता है, चाहे वह लौकिक रिश्ता हो या पारलौकिक। अहं से स्वयं को मुक्त रखने पर ही रिश्तों में सहजता और अपनापन बना रहता है।