Edited By Prachi Sharma,Updated: 27 May, 2025 03:00 PM

Inspirational Story: एक राजा का दरबार लगा था। सबको राज कवि की प्रतीक्षा थी। उनके आए बगैर राजा कोई काम नहीं करते थे। आखिरकार राज कवि आए। राजा ने रोज की तरह उठकर उन्हें प्रणाम किया।
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Inspirational Story: एक राजा का दरबार लगा था। सबको राज कवि की प्रतीक्षा थी। उनके आए बगैर राजा कोई काम नहीं करते थे। आखिरकार राज कवि आए। राजा ने रोज की तरह उठकर उन्हें प्रणाम किया।
राज कवि ने राजा से कहा, “आपके शत्रु चिरंजीव हों।” यह सुनकर पूरी सभा दंग रह गई। यह विचित्र आशीर्वाद सुनकर राजा भी नाराज हो गए पर उन्होंने क्रोध पर नियंत्रण कर लिया। इस बात को वहां उपस्थित लोगों ने भांप लिया। कई दरबारी ऐसे भी थे जो राज कवि से जलते थे। वे मन ही मन प्रसन्न हो गए कि अब राज कवि राजा की नजरों में गिर जाएंगे और उनका महत्व कम हो जाएगा। हो सकता है कि वे दंडित भी किए जाएं।

राज कवि ने भी इस बात को ताड़ लिया कि राजा उनसे नाराज हैं। उन्होंने तुरन्त कहा, “महाराज क्षमा करें। मैंने आपको कुछ दिया पर आपने लिया नहीं।” राजा ने पूछा, “कौन सी चीज?” राज कवि बोले, “मैंने आपको आशीर्वाद दिया पर लगता है आपने लिया नहीं।”
राजा ने कहा, “आप मेरे शत्रुओं को मंगल कामना दे रहे हैं।”

इस पर राज कवि ने समझाया, “राजन मैंने यह आशीर्वाद देकर आपका हित ही चाहा है। जब आपके शत्रु जीवित रहेंगे तो आप में बल, बुद्धि, पराक्रम और सावधानी बनी रहेगी। राजा को सदा सावधान रहना चाहिए। सावधानी तभी रह सकती है जब शत्रु का भय हो। शत्रु होने पर ही होशियारी आती है। उसके न रहने पर हम निश्चिंत और असावधान हो जाते हैं इस प्रकार मैंने आपके शत्रुओं को नहीं, आपको मंगलकामना दी है।” यह सुनकर राजा प्रसन्न हो गए। उन्होंने राज कवि से क्षमा मांगी।
