Janmashtami: श्रीकृष्ण द्वारा माता-पिता को ‘बंधनमुक्त’ करना

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Sep, 2023 01:27 PM

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कंस के अंतिम संस्कार की व्यवस्था करने के बाद भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी ने जेल में जाकर अपने माता-पिता को बंधन से छुड़ाया और उनके चरणों की वंदना की परंतु वसुदेव और देवकी ने उन्हें ईश्वर समझकर हृदय से नहीं लगाया।

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Janmashtami 2023: कंस के अंतिम संस्कार की व्यवस्था करने के बाद भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी ने जेल में जाकर अपने माता-पिता को बंधन से छुड़ाया और उनके चरणों की वंदना की परंतु वसुदेव और देवकी ने उन्हें ईश्वर समझकर हृदय से नहीं लगाया। वे दोनों यही सोच रहे थे कि हम भगवान को अपना पुत्र कैसे समझें। भगवान श्री कृष्ण ने देखा कि माता-पिता को मेरे भगवद्भाव (ऐश्वर्य का) ज्ञान हो गया है इसलिए माता-पिता को मोहित करने के लिए अपनी योग माया को आदेश दिया। फिर भगवान श्री कृष्ण ने अपने बड़े भाई बलराम जी के साथ अपने माता-पिता के चरणों में झुक कर प्रणाम किया।

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उसके बाद उन्होंने कहा, ‘‘पिता जी! माताजी! हम आपके प्रिय पुत्र हैं। आप लोग हमारे लिए सदैव चिंतित रहा करते थे। दुर्भाग्यवश हमें आपके पास रहने का सौभाग्य नहीं मिला। इसलिए हमें माता-पिता के लाड़-प्यार से वंचित रहना पड़ा।’’

माता-पिता ही इस शरीर को जन्म देते हैं और इसका लालन-पालन करते हैं। यदि कोई मनुष्य जीवन भर माता-पिता की सेवा करता रहे तब भी वह उनके उपकार से उऋण नहीं हो सकता। जो पुत्र सामर्थ्य रहते भी अपने माता-पिता की सेवा नहीं करता उसके मरने पर यमदूत उसे उसके शरीर का मांस खिलाते हैं। जो अपने माता-पिता, गुरु, ब्राह्मण और शरणागत का भरण-पोषण नहीं करता वह जीता हुआ मुर्दे के समान है। पिता जी! हमारे इतने दिन व्यर्थ गए, क्योंकि दुष्ट कंस के कारण हम आपकी सेवा न कर सके। हाय पापी कंस ने आप दोनों को कितने दुख दिए। आप हमें क्षमा करें और अपनी सेवा का अवसर दें। अब हम आप दोनों को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे।’’
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विश्वात्मा श्री कृष्ण की वाणी से वसुदेव देवकी मोहित हो गए। भला भगवान की योगमाया के प्रभाव से बिना उनकी इच्छा के कौन मुक्त हो सकता है। इसलिए वसुदेव-देवकी का तत्वज्ञान क्षणभर में लोप हो गया।

जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता से क्षमा मांगी तो वसुदेव देवकी का पुत्र स्नेह पुन: उमड़ आया। उन्होंने श्रीकृष्ण बलराम को हृदय से चिपका कर प्यार किया और बार-बार उनके मुख पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी को पाकर वसुदेव और देवकी का हृदय परमानंद से भर गया। वे भगवान के स्नेहपाश में बंध कर पूर्णत: मोहित हो गए।

उनकी आंखों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी। यहां तक कि आंसुओं के कारण गला रुंध जाने से वे कुछ बोल भी न सके। आज उनके सम्पूर्ण जीवन की तपस्या का फल मिल गया। वे पुत्र प्रेम के असीम समुद्र में आकंठ डूब गए। चारों ओर से आती हुई श्री कृष्ण-बलराम की जय-जयकार उनके कानों में मधुर रस बोलने लगी।

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